अफगानिस्तान में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत रुस्तम शाह मोहम्मद ने कहा कि अफगान शान्ति और सुलह प्रक्रिया को चाहने से पूर्व पाकिस्तान को भारत पर केंद्रित अपनी नीतियों की समीक्षा कर लेनी चाहिए। ‘द अफगान कॉन्फ्लिक्ट:इमर्जिंग डायनामिक्स एंड इंपैक्ट ऑन पाकिस्तान’ यानी अफगान विवाद के पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल अफेयर्स में आयोजित सेमिनार में राजदूत ने कहा कि “सिर्फ विदेशी बलों को अफगान में जारी 18 वर्षों की जंग के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए।”
अफगान की अस्थिरता से पाक प्रभावित
मोहम्मद ने पूछा जंग ने क्या दिया है? अफगानिस्तान की अस्थिरता से जितना पाकिस्तान ने भुगता है उतना विश्व के किसी देश नहीं झेला होगा और अफगानिस्तान की स्थिरता से पाकिस्तान के ज्यादा किसी अन्य देश फायदा नहीं होगा। हाल ही में जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के साथ व्यापार अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से उसकी सरजमीं के इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी जिसे इस्लामाबाद ने ठुकरा दिया था।
पूर्व राजदूत ने बताया कि “अगर पाकिस्तान इस व्यापार के लिए अनुमति प्रदान कर देता तो भारत और अफगानिस्तान दोनों इस्लामाबाद पर निर्भर हो जाते, लेकिन अब भारत और अफगानिस्तान को मज़बूरन अन्य मार्ग ढूंढना पड़ रहा है। पाकिस्तान ने निर्णय ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार को भी प्रभावित किया है।”
पूर्व राजदूत ने कहा कि “अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का निर्णय अच्छी सद्भावना का संकेत था क्योंकि जनता संघर्ष से थक चुकी है लेकिन यह कदम कई सवालों को छोड़ रहा था मसलन देश की व्यवस्थित प्रणाली को कौन संभालेगा, क्या तालिबान और अफगान सरकार के बीच सीजफायर होगा और मुख्यधारा में आने के लिए तालिबान क्या शर्ते रखेंगे?”
शान्ति की प्रक्रिया लम्बी
उन्होंने कहा कि “इस विवाद का समाधान हासिल करने में अभी काफी अड़चने शेष है। काबुल सरकार ने हमेशा तालिबान को अपने पास आने की चाहत रखी है लेकिन बाद मे सरकार की वैधता को मान्यता देने से इंकार कर दिया था। बीते कुछ वर्षों से रूस, चीन और ईरान ने तालिबान के साथ रिश्ते सुधारे हैं। उन्हें भय है कि विदेशी सैनिको की वापसी से अफगान अव्यवस्थित हो जायेगा और ड्रग्स का अनियंत्रित उत्पादन किया जायेगा।”
मोहम्मद ने कहा कि “देश में कार्यरत विभिन्न ताकत के केन्द्रो के कारण पाकिस्तान अपाहिज हो गया है और इसका कारण उसकी नीतियों की अस्पष्टता है। पाकिस्तान भारत की भूमिका पर पाबन्दी लगाने पर अधिक फोकस कर रहा है और अफगान शांति को तवज्जो नहीं दे रहा है।”
उन्होंने कहा कि “पाकिस्तान मांग कर स्पष्टीकरण दे रहा है कि अफगानिस्तान की सरजमीं इस्लामाबाद के खिलाफ इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी लेकिन अफगानिस्तान में सबसे बड़े अनुदानकर्ताओं में भारत शामिल हैं और क्षेत्र की ताकत है। दोनों देशों के फायदे के लिए भारत और पाकिस्तान को मिलकर अफगानिस्तान में संयुक्त प्रोजक्ट करने चाहिए। भारत को केंद्र में रखने वाले दृष्टिकोण की समीक्षा होनी चाहिए क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं है।”
रूस और अमेरिका सहित विदेशी मुल्क अफगान में शांति के लिए काबुल सरकार और तालिबान के बीच मध्यस्थता कर रहे हैं। इन प्रयासों के बावजूद तालिबान ने बीते हफ्ते आकमक अभियान की शुरुआत की थी।