अफगानिस्तान में 17 सालों से जारी संघर्ष पर पूर्ण विराम के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। भारत को अफगानिस्तान मसले के समाधान में पाकिस्तान की भूमिका पर संदेह है और उन्होंने अपनी चिंता को अमेरिका के समक्ष प्रस्तुत की है।
तालिबान के साथ बैठक
भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास कार्यों को अंजाम दिया है जो भारत की अफगान में सकारात्मक भूमिका क प्रदर्शन करता है। तालिबान ने अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों में अपना आधिपत्य स्थापित कर रखा है। रूस में 9 नवम्बर को आयोजित तालिबान से साथ शांति वार्ता में भारत ने गैर अधिकारिक स्तर के प्रतिनिधियों को भेजा था।
अबू दाभी में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ज़लमय खलीलजाद और तालिबान प्रतिनिधियों की बातचीत पर भारतीय अधिकारियों की नज़र थी। इस बैठक में पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई के प्रतिनिधि समूह भी मौजूद है। अफगानिस्तान की सरकार ने भी बातचीत के लिए वरिष्ठ वार्ताकार के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि समूह को यूएई भेजा था, लेकिन तालिबान ने उनसे बातचीत करने के लिए इनकार कर दिया था।
पाकिस्तान की भूमिका
भारत ने इस बात पर भी गौर फ़रमाया कि ज़लमय खलीलजाद यूएई से सीधे पाकिस्तान गए और सेनाध्यक्ष जावेद कमर बाजवा से मुक्त की, उसके बाद काबुल के लिए रवाना हुए थे। जानकारों के मुताबिक अफगानिस्तान में सुलह प्रक्रिया एक लम्बी अवधि तक संपन्न होगी लेकिन हालिया प्रक्रिया को अमेरिका और रूस का समर्थन है।
भारत की चिंता है कि पाकिस्तान इस मसले को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेगा, ताकि अफगानिस्तान में भारत की पकड़ को कमजोर कर सके। इस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा कि अमेरिका इस कार्यप्रणाली पर स्थिर रहे क्योंकि अगनिस्तान की सुरक्षा हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है।
पाकिस्तान का डर
अफगानिस्तान में अल कायदा, लश्कर ए तैयबा और आईएस के बाबत व्यक्ति ने कहा कि हमें नहीं लगता कि अमेरिका जल्द ही अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाएगा और अफगान को छोड़ देगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की सरजमीं पर दोबारा आतंकवाद को पनाह न देने की अमेरिका ने प्रतिबद्धता दिखाई थी।
इस मसले से सम्बंधित अन्य जानकार ने कहा कि पाकिस्तान इस यथास्थिति का अंत चाहता है। पाकिस्तान को लगता है कि भारत अमेरिका के साथ अपने मज़बूत संबंधों का फायदा उठाकर अफगानिस्तान में अपनी पैंठ बढ़ाएगा। हालांकि भारतीय अधिकारियों ने डोनाल्ड ट्रम्प की रणनीति पर बभी सवाल उठाये है जो जानते हैं कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए भारत काफी मशक्कत कर रहा है।
जानकार ने कहा कि सभी साझेदारों को मालूम है कि अफगानिस्तान के भविष्य के लिए भारत से बेहतर कोई नहीं है। हमने चाहबार बंदरगाह से अफगानिस्तान के लिए व्यापार और पारगमन मार्ग का निर्माण किया हैं। उन्होंने कहा कि अफगान सरकार को मालूम है कि भारत उनके विकास और कल्याण का वास्तविक साझेदार हैं और कोई खेल नहीं खेल रहा है। उन्होंने कहा कि तालिबान के साथ सत्ता साझेदारी से सम्बंधित कोई समझौता भी होता है तो भी अमेरिका को आतंकी समूह को छूट नहीं देनी चाहिए।