अमेरिका और अफगानिस्तान के चरमपंथी समूह तालिबान के मध्य शांति वार्ता को चार दिन हो गए है। 17 साल से जंग के हालातों से जूझ रहे देश में दोनो पक्ष शांति स्थापित करने मे प्रयास कर रहे हैं। साथ ही अफगान सरकार के साथ सीधे बातचीत के लिए कोशिश जारी है। अमेरिकी विशेष शांति दूत जलमय ख़लीलज़ाद क़तर में तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
इस वार्ता के पहले दो दिनों का मुख्य फोकस अफगानिस्तान से विदेशी सेनाओं को वापसी की योजना पर था और यह सुनिश्चित करना था कि तालिबान अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ कोई शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं करेगा।
अधिकारी ने रायटर्स न्यूज़ एजेंसी से कहा कि गुरुवार को सुलह प्रक्रिया के तंत्र और अफगान में अंदरूनी बातचीत दो प्रमुख बातचीत के विषय होंगे, जिन पर चर्चा की जाएगी। अफगानिस्तान के उच्च शांति परिषद के सदस्यों की टीम ने कहा कि वे दोहा से सकारात्मक खबर की अपेक्षा कर रहे हैं। यह टीम शांति प्रयासों को मुक्कमल करती है लेकिन सरकार का प्रतिनिधित्व नही करती है।
काबुल के प्रवक्ता सईद हसन तहिरी ने कहा कि ” जब बातचीत लंबी चलती है तो वह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण स्टेज पर पंहुच जाती है और इसमे शामिल लोग सकारात्मक परिणाम के कातिब होते हैं। उम्मीद है यह बातचीत आंतरिक अफगानी बातचीत के मार्ग को खोलेगी।
तालिबानी नेता ने कहा कि अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून को वापस लाने के लिए हम लड़ेंगे, हम शांति प्रक्रिया के प्रयासों के लिए अमेरिका के साथ बातचीत करेंगे।
तालिबान के सदस्य ने कहा कि हम जनवरी में अमेरिकी प्रतिबिधियों से पहले मुलाकात करेंगे और अबू धाबी में अधूरी रह गयी बातों को दोबारा शुरू करेंगे। बहरहाल, यह स्पष्ट है कि हम अफगान सरकार से कोई बातचीत नहीं करेंगे।
अमेरिका का कहना है कि आखिरी समझौता तो अफगान सरकार के नेतृत्व में ही होना चाहिए। अफगान सरकार ने का कि समझौता तो उनके ही नेतृत्व में होगा, यह तालिबान को समझ लेना चाहिए।
नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है।