पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने मंगलवार को कहा कि “वह अफगानिस्तान की सरकार के साथ सीधे बातचीत के लिए तालिबान को मनाने का प्रयास करेंगे और अफगानिस्तान की 18 वर्षों की जंग को खत्म करने के लिए शांति समझौते को मुकम्मल करने के लिए आग्रह करेगी।”
तालिबान और अफगानी सरकार के बीच बातचीत
यूएन के मुख्यालय में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि “हमने सोचा था कि अफगानिस्तान में समझौते पर दस्तखत होने वाले हैं। हम ट्वीट के जरिये पता लगा कि समझौते को रद्द कर दिया गया है। मैंने इसके सन्दर्भ में राष्ट्रपति ट्रम्प से बातचीत की है हम अफगानी सरकार के साथ तालिबान को वार्ता करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देंगे।”
खान ने युद्ध से जूझ रहे देश में संघर्ष को खत्म करने के लिए एक राजनीतिक समाधान को हासिल करने की उम्मीद व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि “जब अमेरिका अफगानी सरजमीं से वापस जायेगा तो हमें एक उचित राजनीतिक समाधान होने की उम्मीद है, नहीं तो अफगानी सरजमीं पर अराजकता का माहौल उत्पन्न हो जायेगा।”
उन्होंने मौजूदा स्थिति की साल 1980 में सोवियत के खिलाफ मुजाहिद्दीन के संघर्ष से तुलना की है। खान ने कहा कि “1979 में सोवियत ने अफगानिस्तान में घुसपैठ की। साल 1980 -81 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में आज़ादी के संघर्ष का समर्थन करने का निर्णय लिया था। सोवियत के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया जा चुका था। समस्त विश्व से जिहाद के लिए मुस्लिमो को आमंत्रित किया गया था।”
उन्होंने कहा कि “अल कायदा की तरह सबही मुजाहिद्दीन समूहों ने सोवियत को शिकस्त देने के लिए पाकिस्तान में प्रवेश किया। उन्हें प्रशिक्षण पाकिस्तान देता था लेकिन फंड अमेरिका द्वारा मुहैया किया जाता है। मेरे विचार यह है क्जी जब सोवियत गए तो अमेरिकियों को भी अपना बोरिया बिस्तर उठाकर जाना था। हम भी इन समूहों के साथ चले गए और इअसे हमने इन समूहों का सफाया किया।”
खान ने कहा कि “संघर्षो की किसी भी चीज से खत्म नही किया जा सकता है। अफगानिस्तान में संकट का दौरा है और आप रिकॉर्ड में दर्ज कर सकते हैं कि यह जंग हमें कही नहीं ले जाएगी।” अमेरिका और तालिबान बीते तीन महीनो से अफगानी शान्ति समझौते पर चर्चा कर रहे थे। हालाँकि तालिबान अफगानी सरकार से सीधे बातचीत को ख़ारिज करता है और उसे अमेरिका के के हाथो की कठपुतली कहता है।