पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला किया था, कि तमिल नाडु में मेडिकल सीट हासिल करने के लिए 12 वी के अंक नहीं बल्कि नीट की परीक्षा को माना जाएगा। इसके बाद अनीता नाम की एक छात्रा, जिसे मेडिकल सीट नहीं मिल सकी, ने आत्महत्या कर ली थी।
अनीता दरअसल गरीब घर की एक होशियार छात्रा थी। अनीता ने 12 वी की परीक्षा में अच्छे अंक हासिल किये थे, और मेडिकल कॉलेज में दाखिले का इंतज़ार कर रही थी। चूँकि अनीता स्टेट बोर्ड से पढ़ी थी और अच्छी कोचिंग ना मिलने से नीट में अच्छे अंक नहीं ला पायी। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि तमिल नाडु में मेडिकल सीट के लिए 12 वी के अंक मान्य नहीं होंगे।
अदालत के इस फैसले से तमिल नाडु में लाखों बच्चों के सपने टूट गए, जो मेडिकल कॉलेज में दाखिले का इंतज़ार कर रहे थे। इससे दुखी होकर अनीता ने अपनी जान दे दी। इसके बाद विपक्षी पार्टियों और जनता ने सरकार को इसका जिम्मेदार बताया। सरकार ने हालाँकि आर्थिक सहायता देने का वायदा किया। जब शहर की कलेक्टर लक्ष्मी प्रिया अनीता के घर 7 लाख रूपए का चेक देने गयी, तो उसके परिवार ने यह वापस लौटा दिया।
दरअसल तमिल नाडु में ज्यादातर बच्चे स्टेट बोर्ड में पढ़ते हैं। बच्चों का मानना है कि नीट की परीक्षा सीबीएसई के सिलेबस को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। ऐसे में गरीब बच्चे, जो कोचिंग नहीं ले पाते हैं, वे मेडिकल सीट से वंचित रह जाते हैं।