महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अपनी कुर्सी से इस्तीफा दे दिया है। उनके खिलाफ पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह द्वारा लगाए गए जबरन वसूली के आरोप में मुंबई हाई कोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश के बाद उन्होंने उद्धव ठाकरे की सरकार के हित मंत्रालय को छोड़ने का फैसला किया है। अनिल देशमुख राज्य मंत्रालय में अपनी कुर्सी पक्की करने में सक्षम रहे थे चाहे महाराष्ट्र में किसी की भी सरकार सत्ता में हो।
अनिल देशमुख जो नागपुर जिले में काटोल के पास वाडविहिरा गांव के निवासी थे। 1995 में वह एक स्वतंत्र विधायक के रुप में आए थे। जो तत्कालीन शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार को समर्थन भी दे रहे थे, जिसमें भाजपा भागीदार थी और उन्हें राज्य मंत्री भी बनाया गया था। 1999 में उन्होंने शिवसेना और भाजपा सरकार से नाता तोड़ लिया और नवगठित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे। 2001 में वह कैबिनेट मंत्री भी रहे थे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चुप क्यों?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले पर खामोश है। अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोपों के चलते विपक्षी दल भाजपा ने ठाकरे की सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने ठाकरे की चुप्पी पर सवाल उठाए है।
देवेंद्र फडणवीस ने कहां की पूरे प्रकरण में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे खामोश क्यों हैं?
फडणवीस ने संवाददाताओं से कहा कि देशमुख के इस्तीफे की उम्मीद थी और उनके पास कोई और दूसरा विकल्प भी नहीं था। देवेंद्र फडणवीस ने यह भी कहा कि देशमुख को पहले दिन से ही अपनी नैतिकता को याद रखना चाहिए था।
भाजपा नेता फडणवीस ने यह भी कहा कि एक इस्तीफा आ गया है और दूसरा आने की भी आशंका है, लेकिन उन्होंने किसी का नाम लिए बिना यह दावा किया है।
निष्पक्ष जांच की मांग
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो सीधा-सीधा कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर सीबीआई जांच के आदेश के बाद उद्धव ठाकरे ने शासन का नैतिक अधिकार खो दिया है। उन्होंने निष्पक्ष जांच होने की भी मांग की है। यह भी कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है और उद्धव ठाकरे की सरकार दो मोर्चों पर फंसी हुई है। पहला सचिन वाझे प्रकरण और दूसरा उगाही प्रकरण और यह एक बड़े लूट के षड्यंत्र की ओर इशारा भी करता है।