केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की मृत्यु ने बैंगलोर की राजनीती में भाजपा के लिए शून्यता की स्थिति पैदा कर दी है। अनंत कुमार लगातार 6 बार से बेंगलुरु (साउथ) में भाजपा का परचम बुलंद किये हुए थे। अब उनके नहीं रहने पर कांग्रेस के पास मौका होगा भाजपा के इस गढ़ पर वापस कब्ज़ा करने का।
कांग्रेस लम्बे समय से बैंगलोर पर आँखे गड़ाए है। शहर के तीनो लोकसभा सीट बेंगलुरु- नॉर्थ, साउथ और सेन्ट्रल भाजपा के पास हैं। मई में हुए विधानसभा में कांग्रेस ने शहर के 28 विधानसभा सीटों में से 15 पर कब्ज़ा किया था। अब अनंत कुमार के जाने के बाद पैदा हुए राजनितिक शून्यता को कांग्रेस भरने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार ‘यदि भाजपा ने अनंत कुमार के परिवार के किसी सदस्य को टिकट दिया तो ही ये सीट उनके पास रह पाएगी।’
अनंत कुमार ने 1996 में पहला संसदीय चुनाव जीता था, तब उन्होंने कर्नाटक की उम्मीदवार वरललक्ष्मी गुंडु राव को हराया था। तब से लेकर 2014 तक ये सीट अनंत के पास ही रही। 2014 में उन्होंने इनफ़ोसिस के सीओ-फाउंडर और टेक्नोक्रेट नंदन नीलेकणि को हराया। बेंगलुरु जैसे साइबर सिटी में एक राजनेता के हाथों एक टेक्नोक्रेट की हार इस बार की और इशारा करती है कि वो राजनेता अपने क्षेत्र में कितना लोकप्रिय था।
कुमार की बनाई जमीन मई में हुए विधानसभा चुनाव में थोड़ी सी कांग्रेस की और खिसक गई। पार्टी को जयनगर विधानसभा सीट भी गंवानी पड़ी।
हालांकि अपने गैर-लाभकारी संगठन ‘अदम्य चेताना’ के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय कुमार की पत्नी तेजशविनी अनंत कुमार ने चुनावी राजनीति में प्रवेश करने में अभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है लेकिन पार्टी कार्यकर्ता उन्हें ही अनंत का स्वाभिविक उत्तराधिकारी मानते हैं।
हालांकि कर्नाटक की राजनीति जाति केंद्रित है लेकिन शहरी केंद्र-विशेष रूप से बेंगलुरु में वोटिंग पैटर्न राज्य के अन्य हिस्सों से अलग हैं। राज्य के मतदाताओं में राज्य और राष्ट्रीय स्तर के चुनाव में अलग अलग पार्टियों के लिए वोटिंग की प्रवृत्ति रही है। कांग्रेस के लिए कर्नाटक को हर कीमत पर हासिल करना महत्वपूर्ण था ताकि वो दिल्ली में अपनी उम्मीदों को जीवित रख सके। इसकी कीमत उसने बड़ी पार्टी होते हुए भी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री स्वीकार कर के चुकाई।
राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में एक ब्राह्मण दिनेश गुंडू राव की ताजपोशी को बेंगलुरू (साउथ) जैसे सीटों को हासिल करने के लिए पार्टी के सामाजिक समीकरण को बदलने की रणनीति के रूप में देखा गया। बेंगलुरु (साउथ) में बड़ी संख्या में मिडिल क्लास हिंदू परिवार हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बेंगलुरू (साऊथ) में 88.23% हिंदू, 7.03% मुस्लिम और 4.12% ईसाई और अन्य हैं।
सिद्दरमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पिछड़ी जातियों पर फोकस रखा था लेकिन जेडीएस के साथ कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने सामाजिक संतुलन साधने के लिए रणनीति को थोड़ा परिवर्तित किया है। कुमारस्वामी सरकार ने ‘कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड’ के लिए 25 करोड़ रुपये का फंड जारी किया तो पुरे राज्य में शंकराचार्य जयंती धूमधाम से मनाया गया।
राजनितिक विश्लेषकों के अनुसार सहानुभूति वोट उपचुनाव में काम आता है आम चुनावों में नहीं और कांग्रेस के पास एक मौका है अनंत कुमार की अनुपस्थिति में बेंगलुरु में अपने पाँव जमाने का।