सरकार की नजर में भारत में अंतरजातीय विवाह अंतरधार्मिक विवाह से अति महत्वपूर्ण और जरूरी है। इन्हीं बातों को अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उसका अर्थ होगा कि सरकार जातीय तानेबाने को तोड़ने के लिए तो तैयार है लेकिन धार्मिक तानेबाने को नहीं।
केंद्र की सरकार अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहना राशि के तहत करीब ढाई लाख रुपए देने को तैयार है लेकिन अंतरधार्मिक विवाहों पर फ़िलहाल कुछ भी खर्च करने के मूड में नहीं है।
सरकार की तरफ से सामाजिक न्याय और अधिकतारिता राज्यमंत्री विजय सांपला ने लोकसभा को बताया कि जातीय भेदभाव, ऊंचनीच को खत्म करने के लिए और सामाजिक समरसता को बनाये रखने के लिए अंतरजातीय विवाहों का होना जरूरी है। अंतरजातीय विवाह का मतलब उन विवाहों से है जिसमे पति या पत्नी में से कोई एक अनुसूचित जाति से आते हो।
इसमें कोई दो राय नहीं की सरकार का अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन करना अपने आप में एक बड़ा और सुंदर और असरदार कदम है लेकिन क्या जातीय बंधनों को तोड़ने मात्र से समाज में ऊंच नीच का भाव ख़त्म हो जाएगा? सरकार से जब गौरव गोगोई ने पूछा कि अंतरधार्मिक शादियों से संबंधित आपके पास क्या योजना है तो उन्होंने बताया कि फिलहाल हमारे पास अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर कोई भी योजना नहीं है।
गौरतलब है कि देश में अंतरजातीय विवाहों की तरह ही अंतरधार्मिक विवाहों का मुद्दा भी अहम है। दोनों ही परिस्थितियों में विवाहित जोड़ों को मुश्किलों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अंतरजातीय विवाहों के मामले तो फिर भी ठीक है लेकिन अंतरधार्मिक विवाहों की स्थिति गंभीर है।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर इतनी बेफिक्र कैसे है? कहीं सरकार अंतरधार्मिक विवाह के मामले में इस वजह से कोई फैसला लेने से तो नहीं डर रही क्यूंकि लोकसभा चुनाव आने वाले है?