श्रीलंका के प्रधानम्नत्री रानिल विक्रमसिंघे ने शनिवार को कहा कि “रणनीतिक हम्बनटोटा बंदरगाह की सुरक्षा और संचालन की जिम्मेदारी का प्रबंधन उनका राष्ट्र कर रहा है न कोई अन्य राष्ट्र। एशिया-यूरोप राजनितिक मंच की तीसरी बैठक में रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि “कई लोग हम्बनटोटा बंदरगाह को चीनी सैन्य बेस मानते हैं। मैं मानता हूँ वहां सैन्य शिविर है ,लेकिन वह श्रीलंका की नौसेना का है।”
विक्रमसिंघे का बयान
कोलोंबो पेज के मुताबिक उन्होंने कहा कि “सैन्य शिविर की स्थापना के बाद उस पर श्रीलंका का एडमिरल का नियंत्रण होगा। किसी भी देश का जहाज वहां आ सकता है लेकिन संचालन पर नियंत्रण हमारा है।” श्रीलंका के पीएम के मुताबिक, कोलोंबो ने सभी देशो के साथ मित्रपूर्ण और सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बरकरार रखे हैं और वह मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय ट्रेंड्स से वाकिफ है।
रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि “हमारे इतिहास से भारत हमारा साझेदार है। हमने सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में जापान को ज्वाइन किया है। अमेरिका के विरोध के बावजूद हमने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चीन को मान्यता दी और पहली बार उनके साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। हम इन हालातो को कायम रखेंगे हमें किसी की प्रतिद्वंदिता में शामिल नहीं होना है।”
हंबनटोटा बंदरगाह
दिसंबर 2017 में श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को चीन की मर्चेंट पोर्ट्स होल्डिंग लिमिटेड को 99 वर्षो के लिए किराए पर दे दिया था। यह कदम भारत के लिए बेहद चिंताजनक था। अधिकारीयों के मुतबिक, समझौते के तहत द चीन मर्चेंट पोर्ट्स होल्डिंग लिमिटेड और श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी इस बंदरगाह और इसके निवेश क्षेत्र को संयुक्त रूप से मालिक होंगी।
इस संयुक्त व्यापार में चीनी कंपनी की 70 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि श्रीलंका की शेष 30 फीसदी भागीदारी है। चीनी कंपनी जल्द ही हंबनटोटा में एक सीमेंट प्लांट की स्थापना करेगी जबकि चीन का इस बंदरगाह पर पहले ही नियंत्रण है। श्रीलंका के विकास रणनीतियों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के मामले के उप मंत्री नलिन बांद्रा ने जनवरी में कहा कि “इस साल चीनी कंपनी हंबनटोटा में एक सीमेंट प्लांट की स्थापना करेगी। पहली बार चीनी सीमेंट कंपनी सीधे तौर पर स्थानीय बाजार में प्रवेश करेगी।”
भारत भी श्रीलंका में कर रहा निवेश
भारतीय कंपनी अकॉर्ड समूह और ओमान मंत्रालय ने संयुक्त रूप से एक उद्यम के जरिये श्रीलंका की आयल रिफाइनरी में 3.85 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की है।
ऐसा माना जा रहा था कि चीन भारत के इस निवेश पर आपत्ति जाहिर कर सकता है। लेकिन चीनी विदेश मंत्रालय नें इस बारे में कहा था कि भारत के श्रीलंका में निवेश पर चीन को कोई आपत्ति नहीं है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा था कि “श्रीलंका में भारतीय निवेश पर हमारा रुख खुला हुआ है। इससे सम्बंधित जानकारी अभी मेरे पास नहीं है। लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि श्रीलंका और चीन के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग है। हबनटोटा बंदरगाह हमारे फलदायी सहयोग के एक अन्य उदहारण है।”