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    सिख धर्म के 10 गुरु

    सिख धर्म दुनिया मे एक बड़ा धर्म है। यह धर्म भारत मे स्थापित हुआ और दुनिया भर मे इसका प्रचार सिख गुरूओं द्वारा किया गया।

    सिख धर्म की शुरूआत गुरू नानक जी ने की थी और वह सिख धर्म के पहले गुरू थे।

    विषय-सूचि

    सिख धर्म के पहले गुरु गुरू नानक

    गुरू नानक
    गुरू नानक

    गुरू नानक का जन्म 1469 मे हुआ था। गुरू नानक की मृत्यु 70 वर्ष की आयु मे हुई थी। गुरू नानक का जन्म तालवंडी पाकिस्तान मे हुआ था और उनका देहांत करतापुर रावी पाकिस्तान मे हुआ।

    नानक साहब का जन्म उस समय पाकिस्तान मे हुआ। गुरू नानक के पिता का नाम मेहता कल्याण चंद था व उनकी माता का नाम माता तरिपता जी था। गुरू नानक की धर्म पत्नी का नाम माता सुलाखनी था।

    गुरू की शादी के बाद उन्हे अपनी पत्नी से दो पुत्र थे। उन्के बड़े बेटे का नाम बाबा श्री चंद था और छोटे पुत्र का नाम बाबा लक्ष्मी दास था। गुरू नानक का जन्म एक हिंदु धर्म मानने वाले परिवार मे हुआ।

    शुरूआत से ही गुरू नानक ने जातिवाद का विरोध किया। गुरू नानक को यह पसंद नही था कि लोगो को उनकी जाति के हिसाब से इज्जत दी जाए।

    गुरू नानक का मानना था कि सभी को प्रेम और भाईचारे से जीवन व्यतीत करना चाहिए। उनका मानना था कि हम सभी के अंदर अच्छाईयां है और सभी प्ररेणा व भक्ति का स्त्रोत है। हमे देश, जाति, रंग आदि के आधार पर विभाजन नही करना चाहिए। एकता मे रहने से हमे सच्चाई, प्रेम, शांति आदि का अनुभव होगा।

    गुरू नानक को यह ज्ञान 30 वर्ष की आयु मे प्राप्त हुआ। उस समय एक नदी के अंदर गुरू नानक ने तीन दिनो तक तपस्या की और ज्ञान की प्राप्ति की। ज्ञान को प्राप्त करने के पश्चात् गुरू नानक को जीवन की सच्चाई पता चली। साथ ही उन्हे जीवन के अर्थ के बारे मे भी पता चला। प्रकृति की सच्चाई और ताकत का अहसास भी उन्हे इसी दौरान हुआ।

    ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण बातो को उन्होने जाप जी साहिब नाम के एक भजन मे तबदील किया। इस गीत के संर्दभ मे उन्होने बताया कि इंसानियत का क्या महत्व है। इस धार्मिक पथ का नया रास्ता जाप जी साहिब से शुरू हुआ। अगले 15 वर्षो तक नानक साहिब ने भारत, एशिया, परशिया का दौरा किया और अपने ज्ञान को साझा किया।

    नानक ने सभी धर्माे के सभी लोगो को पास लाने की कोशिश की। अपनी यात्रा के दौरान जीवन देने वाले और हम सबके निर्माता के लिए गुरू नानक ने बहुत से गीत गााए। यात्रा करने के बाद नानक ने एक किसान के रूप मे जीवन व्यतीत किया। गुरू नानक के पास जो शिष्य ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे नानक उन्हे पढ़ाया करते थे।

    सिख धर्म के दूसरे गुरु गुरू अंगद

    गुरू अंगद
    गुरू अंगद

    सिख धर्म के दूसरे गुरू के नाम पर गुरू अंगद का नाम लिया जाता है। उनका जन्म सराई माता नाम के स्थान पर हुआ जो भारत मे मौजूद है। उनके पिता का नाम फेरू माल जी था और उनकी माता का नाम दया कौर जी था। माता खिवी से गुरू अंगद का विवाह हुआ। उनके दो पुत्र थे दससू जी और दत्तू जी व दो पुत्रिया थी बीबी अमरो जी और बीबी अनोखी जी।

    गुरू अंगद ने गुरू नानक की शिक्षा का प्रचार किया। उन्होने अपने निजी जीवन के आधार पर कई गीत भी लिखे थे। लोगो को गीत याद कराने के लिए और गुरू अंगद ने इन्हे गुरूमुखी भाषा मे लिखा।

    गुरूमुखी का अर्थ है गुरू के मुख से यह भाषा बोलने मे आसान है और समझने मे भी। गुरूमुखी को दुनिया का पहला टेप रिकोर्ड भी कहा जा सकता है। गुरू अंगद के विचारो को स्वीकार करके माता खिवी ने लंगर बनाने की शुरूआत की लंगर को सामुदयिक भोज भी बोला जाता है।

    भारत देश मे सभी धर्म के लोग एक साथ मिल जुल कर भोजन नही करते। यही कारण है जिसकी वजह से गुरू नानक ने सामाजिक भोज का आयोजन किया था। सामाजिक भोज मे सभी दर्जे के लोग और सभी जाति के लोग एक साथ मिल कर भोजन करते है।

    सिख धर्म के तीसरे गुरु गुरू अमरदास

    गुरू अमरदास
    गुरू अमरदास

    गुरू अमरदास को सिख धर्म के तीसरे गुरू के नाम से जाना जाता है। उनकी जन्म बसरके भारत मे हुआ था। इनके पिता का नाम तेज भान जी था और माता का नाम माता लक्ष्मी जी था। इनका विवाह माता मनसा देवी से हुआ और इनके भी दो बेटे-बेटी थे। बेटो का नाम मोहन जी और मोहरी जी था तथा बेटीयो का नाम बीबी धानी जी और बीबी भानी जी था।

    जिस समय गुरू अमरदास ने गुरू की गद्दी संभाली उस वक्त वे बुढ़े हो चुके थे। पिछले दो गुरूओ के ज्ञान का विस्तार अमरदास ने किया। आनंद साहिब नाम का गीत इन्होने ही बनाया था और अपने निजी अनुभव उस गीत मे साझा किए थे।

    अमृत जिन भक्तो ने लिया है वे दिन मे पाच बार आनंद साहिब का पाठ करते है। कई मंत्रियो को इन्होने सिख धर्म की शिक्षा का अध्यन कराया और उसे प्रचारित किया।

    अपने गुरू काल मे अमरदास ने 52 महिलाओ और 22 पुरूषो को शिक्षा देकर उसका प्रचार करने के लिए भेजा। महिलाओ का सम्मान करना, सामानता इत्यादि गुरू अमरदास ने सिखाए।

    सिख धर्म के चौथे गुरु गुरू रामदास

    गुरू रामदास
    गुरू रामदास

    गुरू रामदास सिख धर्म के चैथे गुरू के रूप मे स्थापित हुए। इनका जन्म लाहौर मे हुआ जो अब पाकिस्तान मे मौजूद है। उनके पिता का नाम हरिदास जी सोढी था और माता का नाम माता दया कौर जी था। गुरू अमरदास की पुत्री बीबी भानी जी से इनका विवाह हुआ।

    गुरू रामदास ने मनुष्य जीवन के आधार पर कई गीतो का निर्माण किया। लावन भी रामदास द्वारा बनाया गया था। लावन की सिखो की शादी मे गाया जाता है।

    इस गीत का निर्माण उन्होने अपनी शादी के दिन किया था। गुरू रामदास ने अमृतसर शहर की स्थापना की और हरमिंदर साहिब गुरूद्वारे की नीव रखी। स्वर्ण मंदिर मे चारो ओर दरवाजे है।

    इन दरवाजो को सामानता का प्रतीक माना गया है और यह दर्शाया गया है कि यह मंदिर हर धर्म के लोगो और हर जाति के लोग के लिए खुला है। गुरू रामदास ने लोगो को अपना व्यवसाय शुरू करने की प्ररेणा दी थी।

    सिख धर्म के पांचवे गुरु गुरू अरजन

    गुरू अरजन
    गुरू अरजन

    गुरू अरजन को पांचवा गुरू माना जाता है। वे उम्र मे सबसे कम थे। उनका जन्म गोंडिवाल के इलाके मे हुआ। गुरूद्वारे देहरा साहिब जो पाकिस्तान मे स्थति है वहा उन्होने अपना जीवन त्यागा। इनकी माता का नाम माता भानजी था और पत्नी का नाम माता गंगाा जी था। माता गंगा का एक पुत्र था जिसका नाम हरोबिंद था और यह भी बाद मे एक गुरू बने। गुरू अरजन ने स्वर्ण मंदिर के निमार्ण का काम पूरा कराया।

    अदी ग्रंथ गुरू अरजन द्वारा लिखी गई थी और बाद मे यह गुरू ग्रंथ साहिब के बाद पढी जाने लगी। गुरू अरजन ने कुछ गीत लिखे और उनमे हिंदु, सूफी और सिख धर्म के पुराने गीतो को शामिल किया। गुुरू अरजन की किताब अदी ग्रंथ को उन्होने जीवन की सच्चाई और शाबाद गुरू के ज्ञान से जोडा।

    अदी ग्रंथ की रचना के समय गुरू अरजन ग्रन्थ साथ रख कर सोते थे। ग्रन्थ मे सिख गुरूओ के उपदेशो का वर्णन है। समय के साथ साथ गुरू अरजन के समाज मे वृद्धि हुई। मुगल राजा जहांगीर ने अरजन के समाज को भंग करने की कोशिश की और पांच दिन व पांच रातो तक गुरू अरजन को कठोर सजा दी। अपने समाज की रक्षा करने के लिए गुरू अरजन ने यह सजा स्वीकारी।

    गुरू अरजन को गर्म धातु मे बांधा गया और लगातार उनपर गर्म मिट्टी डाली गई। गुरू अरजन ने इस सजा को मुस्कुराते हुए सहा। इस कठोर सजा के बाद उन्हे इज्जात मिली की वे एक नदी मे स्नान कर सकते है। नदी मे जैसे ही उन्होने कदम रखा वे अदृश्यति हो गए और कभी उनका शरीर नही मिला।

    सिख धर्म के छठे गुरु गुरु हरगोबिन्द

    गुरु हरगोबिन्द
    गुरु हरगोबिन्द

    हरोबिंद का छटे गुरू के रूप मे देखा जाता है। इनका जन्म भारत के वडाली इलाके मे हुआ और इनकी मृत्यु किरातपुर मे हुई। इनके पिता गुरू अरजन थे व माता गंगाा जी थी। इनकी तीन पत्नीया थी माता नानकी जी, माता दामोदरी जी और माता महान देवी जी। गुरू हरोबिंद के पांच पुत्र और एक पुत्री थी।

    गुरू अरजन की मृत्यु के बाद सिख समुदाय मे एक बडा बदलाव आया। 100 वर्षो से सिख समुदाय ने सहनशीलता और शांति को अपनाया। परंतु गुरू अरजन के बलिदान के बाद सिख समुदाय मे एक बडा बदलाव आया। गुरू हरोबिंद ने हथियारो का इस्तेमाल सीखा और सिखाया। ऐसा करने से सिख समुदाय अपनी रक्षा करने मे संभव हुआ।

    सिख धर्म के अनुसार वे अपने आप को बचाते है हमला नही करते। समय के साथ साथ सिख समुदाय अपनी रक्षा करने लगा। गुरू हरोबिंद ने गाटका नाम की एक क्रिया शुरू की और आकाल तक्खत को बनवाया। बाद मे इस क्रिया का मिरी पिरी कहा गया।

    गुरू हरोबिंद ने अपने समुदाय की रक्षा के लिए बहुत सी लडाईयां लडी।

    सिख धर्म के सातवे गुरु गुरू हर राॅय

    गुरु हर राय
    गुरु हर राय

    गुरू हर राॅय सिख धर्म के सातवे गुरू थे। ये गुरू हरोबिंद के पोते थे। इनका जन्म किरातपुर मे हुआ। इनके पिता का नाम गुरूदित्ता जी था और माता का नाम माता निहाल कौर जी था। गुरू हर राॅय की पत्नी का नाम माता किशन कौर था इन्हे माता सुलाखनी के नाम से भी जाना जाता था।

    एक बालक के रूप मे जब वह अपने दादा के साथ घूम रहे थे। तो उनके शरीर के स्पर्श के कारण एक गुलाब टूट गया। उनके दादा ने उन्हे उपदेश दिया कि वह जीवन मे कभी भी लड़ाई का मार्ग न अपनाए।

    अपनी और बाकी भक्तो की सुरूक्षा के लिए रक्षक लेकर आगे यात्रा करे।

    गुरू हर राॅय ने अपने बागीचे मे औषधीयो लगा रखी थी और वे अपने उपचार के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हे शिकार का भी बहुत शौक था परंतु वे जानवरो का कैद करते और उन्हे चिड़िया घर मे रखते।

    सिख धर्म के आठवे गुरु गुरू हर किशन

    गुरू हर किशन
    गुरू हर किशन

    सिख धर्म के आठवे गुरू के तौर पर हर किशन का नाम लिया जाता है। गुरू हर किशन ने गुरू की उपाधि पांच वर्ष की आयु मे निभायी और उनका देहांत आठ वर्ष की आयु मे हुआ। इनका जन्म किरातपुर भारत मे हुआ और अपना अंतिम समय इन्होनें दिल्ली के बंगला साहिब मे बिताया। इन्के पिता गुरू हर राॅय थे और माता किशन कौर थी।

    जब गुरू की गद्दी के लिए नाम तय किया जा रहा था तब कई लोगो ने इसका विरोध किया। लाल चंद नाम के एक व्यक्ति ने भी इसका विरोध किया और उन्हे शास्त्रो पर बहस करने की चुनौती दी।

    लाल चंद एक अशिक्षित, मूक और बहरे व्यक्ति को लेकर आए उसका नाम छज्जू राम था। हर किशन ने छज्जू राम के पैर छुए और अचानक से ही छज्जू राम को शास्त्रो का सारा ज्ञाप प्राप्त हुआ। इस घटना के कारण लाल चंद ने गुरू से माफी मांगी और अपना विरोध वापस लिया।

    चेचक की महामारी के कारण उनकी मृत्यु हुई। दिल्ली के उस इलाके मे जाकर गुरू ने एक पानी की पवित्र धारा को गिराया जिससे सभी की बिमारी दूर हो जाए और चेचक की बिमारी को अपने अंदर विलीन किया।

    सिख धर्म के नौवे गुरु गुरू तेग बहादुर

    गुरू तेग बहादुर
    गुरू तेग बहादुर

    अमृतसर मे जन्मे गुरू तेग बहादुर सिख धर्म के नोवे गुरू बने। यह गुरू हरो बिंद के सबसे छोटे बेटे थे। नानकी जी इनकी माता का नाम था। तेग बहाुदर का विवाह गुजरी जी से हुआ और इनके पुत्र का नाम गुरू गोबिंद सिंह था।

    बचपन से ही गुरू गोबिंद सिंह शांत स्वभाव के थे। गुरू की उपाधी संभालने से पहले गुरू तेग बहादुर ने कठोर तपस्या की। इतिहास के समय मे मुगल राजा ने एक योजना की शुरूआत की और हिंदओ को मुस्लमान बनाने की कोशिश और जान से मारने की धमकी दी थी। इस घटना के बाद हिंदु लोगो का एक समूह तेग बहादुर के पास आया।

    गुरू तेग को पता था यह उनकी मौत का न्योता है परंतु उन्होने मद्द करने की ठानी। गुरू तेग बहादुर ने राजा के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि अगर वे तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन कराने मे सफल हुए तो सभी हिंदु अपना धर्म बदलेंगे वर्ना नहीं।

    गुरू तेग बहादुर और अन्य तीन सिखो को कारागार मे बंद कर दिया गया और उनको कठोर सज़ा दी गई। कुछ समय बाद तीनो सिखों की मृत्यु हो गई परंतु गुरु तेग को और ज्यादा सज़ा दी गई। राजा को यह गुरू तेग ने साफ कर दिया था कि वह अपना धर्म नही बदलेंगे। सजा देने वालो से गुरू तेग ने एक सवाल किया कि हम यहा अपना समय व्यर्थ क्यो कर रहे है चलो ध्यान लगााते है। जब राजा का यह विश्वास हुआ कि वह अपना धर्म नही बदलेंगे तो राजा ने यह आदेश दिया कि उनका सिर काट दिया जाए।

    अपने अंतिम समय मे गुरू ने एक चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि उनके मरने के पश्चात् वह चिट्ठी राजा को दे दी जाए। उस चिट्ठी मे लिखा था यह सबसे बड़ा जादू है मैनें अपना सिर दिया परंतु भक्ति नहीं।

    सिख धर्म के दसवें गुरु गुरू गोबिंद सिंह

    गुरू गोबिंद सिंह
    गुरू गोबिंद सिंह

    गुरू गोबिंद सिंह का नाम पहले गुरू गोबिंद राॅय था। गुरू गोबिंद सिंह सिख धर्म के दसवे गुरू थे। इनकी जीवन काल 42 वर्षो का था। गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना मे हुआ और जीवन के अंतिम दिन उन्होने नैनडीड मे बिताए। इनके पिता का नाम गुरू तेग बहादुर था व माता का नाम माता गुजरी जी था।

    इनकी तीन बीविया थी और उन्के नाम थे माता जीतो, माता सुंदरी और माता साहिब कौर। गुरू गोबिंद सिंह के चार बेटे थे अजित सिंह, जूझर सिंह, ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह।

    गुरू गोबिंद सिंह के पिता की मृत्यु तब हुई थी जब गुरू गोबिंद 9 वर्ष के थे। समय के साथ साथ सिखो को अनेक बार लडाई के लिए बुलाया गया। यह लडाईया औरंजेब के अत्याचार के खिलाफ हुआ करती थी। गुरू गोबिंद सिंह को अमृत का पाठन करने के लिए सिखो ने आदेश दिया और इसी प्रकार गुरू गोबिंद सिंह का जन्म हुआ।

    खालसा समुदाय का आदेश मानना गया और महिलाओ और पुरूषो को सामानता और शांति से रहने के लिए कहा गया और अपने हक के लिए लड़ने के लिए उन्हे तैयार किया गया। जिससे वह अपनी रक्षा कर सके दूसरो की रक्षा कर सके और शांति से जीवन व्यतीत कर सके।

    लड़ाई के कारण गुरू गोबिंद सिंह के दो पुत्रो की मृत्यु हो गई और अन्य दो पुत्रो का राजा ने हिरासत मे ले लिया। एक पुत्र का जीवित ही दिवार मे चिनवा दिया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अपने पुत्रो के जाने के बाद भी गुरू गोबिंद सिंह ने भक्ति का पथ नही छोडा। सिख समुदाय के लोगो ने यह सोचा की उनके पुत्रो की लाश की ढूंढा जाए और उनका अंतिम संस्कार किया जाए। परंतु गुरू गोबिंद सिंह का मानना था लडाई मे मरे हुए सभी योद्धा उनके पुत्र है सभी का अंतिम संस्कार होना चाहिए।

    गुरू गोबिंद सिंह का मानना था दिव्य शाक्ति को उनके पुत्रो को वापस भेजना होगा। गुरू गोबिंद सिंह के दादा द्वारा बनाई हुई अदी ग्रंथ खो गई। गुरू गोबिंद सिंह ने एक जगह लोगो का एकत्र करके अदि ग्रंथ का पाठ पढाया जो भी उनहे याद था। इसी समय के बीच गुरू ग्रंथ साहिब की रचना हुई। सन् 1708 मे गुरू गोबिंद सिंह ने गुरू की उपाधी सीरि ग्रन्थ साहिब का सौंप दी।

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