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    भारत अफगानिस्तान सम्बन्ध

    भारत और अफ़ग़ानिस्तान आपस में गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध साझा करते हैं। 2011 में हुए रणनीतिक साझेदारी समझौते (एसपीए) ने दोनों देशों के बीच के रिश्ते को और मज़बूती दी जोकि अफ़ग़ानिस्तान का 1979 में हुए सोवियत आक्रमण के बाद पहला ऐसा समझौता है।

    अधिकारिक तौर पर भारत अफगानिस्तान से सीमा साझा करता है। हालाँकि, जम्मू कश्मीर का यह इलाका अब पाकिस्तान के कब्जे में है। भारत अफगानिस्तान सीमा की लम्बाई करीबन 106 किमी है।

    भारत से बड़ी संख्या में लोग अफ़ग़ानिस्तान के लंबे चले गृह युद्ध और उसकी तालिबान से लड़ाई में हुई बर्बादी से उबरने में मदद कर रहे हैं। वे इसके लिए कई तरह के पुनर्निर्माण कार्यों और मानवीय सहायता में लगे हुए हैं।

    इस लेख के ज़रिये हम भारत-अफ़ग़ान सम्बन्धो पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

    इतिहास

    भारत-अफ़ग़ान रिश्तों की कहानी सिन्धु घाटी सभ्यता के समय से जुड़ी हुई है। सिकंदर के छोटे से समय के कब्ज़े के बाद सेलुसिड साम्राज्य ने आज के दिन जाने जाने वाले अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया, जिसे 305 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य को गठबंधन संधि के अंदर दे दिया गया।

    मौर्य साम्राज्य ने यहाँ बुद्ध धर्म स्थापित किया और हिंदू कुश से दक्षिण तक के इलाके को नियंत्रित किया। मौर्य साम्राज्य की गिरावट महाराजा अशोक की मृत्यु के 60 सालों के अंदर दिखने लगी और इस क्षेत्र पर विभिन्न साम्राज्यों ने समय-समय पर आक्रमण किया। 7वीं सदी में अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम के आगमन से पहले इस इलाके ने बुद्ध, हिंदू और पारसी धर्मों को देखा।

    10वीं से लेकर 18वीं सदी तक फिर यहाँ आक्रमणकर्ताओं के द्वारा इस इलाके पर नियंत्रण के लिये हमले होते रहे। मुग़लों के दौर में आई राजनैतिक अस्थिरता से कई अफ़ग़ान लोगों ने भारत की तरफ़ पलायन किया।

    भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और अलग पश्तून इलाके की आज़ादी की मांग के दौरान दोनों क्षेत्र के लोगों ने एक-दूसरे के प्रति गहरी सहानुभूति दिखाई। अब्दुल गफ्फार खान और खान साहिब जैसे लोग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय समर्थक थे।

    अब्दुल गफ्फार खान और जवाहरलाल नेहरु

    जनवरी सन् 1950 में भारत-अफ़ग़ानिस्तान ने 5 साल की मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किये जिसने दोनों देशों के बीच हमेशा के लिए शांति और सहयोग स्थापित किया। इसी के साथ दोनों के बीच राजनयिक सम्बन्धों की शुरुआत भी हो गई।

    सोवियत आक्रमण और तालिबान का वक्त

    भारत सोवियत समर्थित अफ़ग़ानिस्तान को मान्यता देने वाला दक्षिण एशिया में अकेला देश था और उसने राष्ट्रपति नजीबुल्ला के कार्यकाल में मानवीय सहायता अफ़ग़ान लोगों तक पहुंचाई। यह मानवीय सहायता 1989 में सोवियत रूस के अफ़ग़ानिस्तान से वापस जाने के बाद भी चलती रही।

    भारत ने अंतराष्ट्रीय समूह के साथ मिलकर नयी बनी गठबंधन सरकार का समर्थन जारी रखा किंतु यह सम्बन्ध अफ़ग़ानिस्तान में नए गृह युद्ध से समाप्त हो गए जब पाकिस्तान समर्थित तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान का शासन अपने हांथों में ले लिया। तालिबानी सरकार को मान्यता सिर्फ़ पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने दी।

    1999 में एयर इंडिया के विमान के अपहरण के दौरान विमान, अफ़ग़ानिस्तान के कांधार में ठहरा रहा जिसे तालिबान से समर्थन प्राप्त था। इसके बाद भारत, तालिबान विरोधी उत्तरी गठबंधन के मुख्य समर्थकों में से एक बन गया।

    2000 के बाद

    2001 में अमरीका के नेतृत्व में उत्तरी गठबंधन की सेनाओं ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को उखाड़ फेंकने के लिए आक्रमण किया और इस दौरान भारत ने अपनी ख़ुफ़िया सेवाएं दी और अन्य तरह की सहायता मुहैया कराई।

    अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के तालिबान से मुक्त हो जाने के बाद भारत ने दोबारा अफ़ग़ानिस्तान से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। इसके बाद से ही भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को लगातार मानवतावादी सहायता और आर्थिक मदद दी है।

    आंकड़े बताते हैं कि साल 2000-2017 के बीच भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को लगभग 4400 करोड़ रुपयों की आर्थिक मदद दी है। यह क्षेत्रीय तौर पर सबसे ज़्यादा और अन्तराष्ट्रीय तौर पर 5वीं सबसे बड़ी मदद है। भारत अफ़ग़ानिस्तान को हवाई रास्ते से जोड़ना, पावर स्टेशन निर्माण, स्वस्थ्य और शिक्षा में निवेश जैसे कार्य कर रहा है।

    इसके अलावा उसकी सरकारी अधिकारियों, पुलिस और राजनयिकों की ट्रेनिंग में भी मदद कर रहा है। 2009 में भारत के बॉर्डर रोड्स आर्गेनाईजेशन ने एक बड़े सड़क निर्माण प्रोजेक्ट के अंतर्गत अफ़ग़ानिस्तान के निमरोज़ राज्य में देलाराम से ज़रांज को जोड़ने वाली सड़क का निर्माणकार्य पूरा किया।

    अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोनों के बीच कई और महत्वपूर्ण समझौते हुए जिससे आपसी रिश्तों में काफ़ी गर्मी दिखी। 2006 में राष्ट्रपति करज़ई के भारत दौरे में ग्रामीण विकास, शिक्षा और मानकीकरण को लेकर तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। उसी वर्ष, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को दिये जाने वाले राहत पैकेज को 150 मिलियन डॉलर से बढ़ाकार 750 मिलियन डॉलर कर दिया। 2007 में अफ़ग़ानिस्तान ‘सार्क’ देशों का 8वां सदस्य बना।

    2011 में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को ढाई लाख टन गेहूँ दान में दिया। 2011 में रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर के वक्त सैन्य सहयोग पर भी सहमती बनी जिससे अफ़ग़ान सुरक्षा बलों को भारतीय सैनिकों की तरफ़ से ट्रेनिंग दी जा रही है।

    2015 में वर्त्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान का दौरा किया जिस दौरान भारत ने उसे 3 एमआई-25 लड़ाकू हेलिकॉप्टर दान में दिये। 25 दिसंबर 2015 को 90 मिलियन डॉलर की लागत से बना, भारत द्वारा निर्मित, अफ़ग़ानिस्तान के संसद भवन का प्रधानमंत्री मोदी एवं मौजूदा अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने उद्घाटन किया।

    अशरफ घानी और नरेन्द्र मोदी

    290 मिलियन डॉलर का भारत की मदद से बना सलमा डैम का प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति गनी ने पिछले साल 4 जून को उद्घाटन किया, जिसे बाद में अफ़ग़ानिस्तान के मंत्रिमंडल ने ‘भारत-अफ़ग़ानिस्तान फ्रेंडशिप डैम’ का नाम दे दिया।

    द्विपक्षीय व्यापार की बात की जाए तो यह 2013-14 के आंकड़ों के मुताबिक 683 मिलियन डॉलर ही है जोकि अपनी मुमकिन क्षमता से कम है। इसमें मुख्यतः कपड़े, अनाज, मशीनरी, डेरी उत्पाद शामिल हैं। व्यापार को बढ़ाने के मद्देनज़र भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को पिछले साल ही संचालन योग्य बनाया है तथा दिल्ली-काबुल और मुंबई-काबुल एयर कॉरिडोर खोला है जिससे की उत्पादों का तेज़ परिवहन हो सके।

    राहत और पुनर्निर्माण कार्यों के बीच कई बार अफ़ग़ानिस्तान में भारतीयों और भारत से जुड़े ठिकानों पर हमले होते रहे हैं। इसमें भारत के काबुल स्थित दूतावास को भी कई दफ़े निशाना बनाया गया जिसमे कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी है। इन हमलों के अधिकतर पाकिस्तान से जुड़े होने की बातें सामने आती रही हैं। इन सब खतरों के बावजूद भारत ने कभी अपने हाँथ पीछे खीचने की बात नहीं सोची बल्कि हमेशा ही अफ़ग़ानिस्तान को सहायता और उसके साथ सहयोग को और ज़्यादा मज़बूत करने की कोशिश की है।

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