नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)| विश्व कप के लिए इंग्लैंड पहुंचने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने स्थानीय समर्थकों को लेकर कहा था कि उनकी टीम बड़ी संख्या में स्टेडियम पहुंचने वाले भारतीयों को अपने लिए ‘एडवांटेज’ के रूप में उपयोग में लाने की कोशिश करेगी।
विराट का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अब खेलों में एक कहावत आम हो गई है कि मैच खिलाड़ियों की बदौलत ही नहीं, दर्शकों की बदौलत भी जीते जा सकते हैं। समर्थक विपक्षी टीम पर मनोवैज्ञानिक दबाव कायम करते हैं और इसके कारण टीमों और खिलाड़ी अहम मौकों पर बिखर जाते हैं।
खेल कोई भी हो, इसमें कोई शक नहीं कि हमेशा से दर्शकों की भूमिका अहम रही है। यह अलग बात है कि पहले वे खेल देखने आते थे लेकिन अब वे अतिरिक्त खिलाड़ी के तौर पर अपरोक्ष रूप से खेल में शामिल होकर एक लिहाज से नतीजों को भी प्रभावित करने लगे हैं।
किसी भी टीम के लिए दर्शक कितने अहम होते हैं, इसे समझने के लिए दो उदाहरण काफी हैं। कहीं और जाने की जरूरत नहीं। वर्ष 2018 में आईपीएल के मैच राजनीतिक कारणों से चेन्नई में नहीं हुए। तब चेन्नई सुपर किंग्स ने रेलगाड़ी किराए पर लेकर अपने हजारों प्रशंसकों को पुणे पहुंचाने का काम किया, जो अपनी टीम को चियर करते नजर आए।
इसी तरह, फुटबाल के पेशेवर लीग आईएसएल में खेलने वाली सभी टीमें कोच्चि में खेलने से डरती थीं, क्योंकि उन्हें पता होता था कि कोच्चि के 12 खिलाड़ियों के अलावा 50 हजार के करीब दर्शक 12वें खिलाड़ी की भूमिका अदा करते हैं और उनके कारण दूसरी टीमों को वहां खेलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आईएसएल में खेलने वाली टीमों के कई कोचों ने इसका जिक्र किया है।
ब्रिटेन में आईसीसी विश्व कप जारी है और वहां रहने वाला दक्षिण एशियाई समाज अपनी टीमों के लिए कुछ ऐसा ही करता दिखाई दे रहा है। ब्रिटेन में लाखों की संख्या में दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका) के लोग रहते हैं और इनकी बदौलत ये टीमों उन टीमों पर भारी पड़ती दिख रही हैं, जिनके ‘अपने’ ब्रिटेन में नहीं रहते।
आंकड़ों की बात करें तो साल 2011 की सरकारी जनगणना के मुताबिक ब्रिटेन की जनसंख्या 6 करोड़ से अधिक है और इसमें अच्छी खासी संख्या दक्षिण एशयाई लोगों की है। ब्रिटेन की जनसंख्या में 7.1 प्रतिशत (करीब 31 लाख) एशियाई लोग हैं। इसी तरह वेल्स (इंग्लैंड के साथ विश्व कप का संयुक्त मेजबान) में तकरीबन 50 हजार से अधिक लोग एशियाई मूल के हैं और इनमें सबसे अधिक संख्या दक्षिण एशियाई लोगों की है।
ब्रिटेन में रहने वाले दक्षिण एशियाई समुदाय की बात करें तो 2.3 प्रतिशत (करीब 15 लाख) भारतीय, 1.9 प्रतिशत (करीब 12 लाख) पाकिस्तानी, 0.7 फीसदी (करीब 4.5 लाख बांग्लादेशी) और 0.36 फीसदी (करीब 2.5 लाख श्रीलंकाई) लोग शामिल हैं। इसके अलावा करीब 15 हजार अफगानी भी यहां रहते हैं।
ये सभी मिलकर अपनी टीमों को सपोर्ट करने के लिए घंटों रेल और सड़क मार्ग से सफर करते हैं और मैच के दिन चेहरे रंगवाकर, ढोल-नगाड़ों के साथ अपनी-अपनी टीम की जर्सी में स्टेडियम में मौजूद रहते हैं।
इंग्लैंड रवाना होने से पहले और इंग्लैंड पहुंचने के बाद संवाददाता सम्मेलन में कोहली ने इन स्थानीय फैन्स को लेकर कहा था, “यहां पहुंचकर अच्छा लग रहा है। हमारा यहां बहुत बड़ा फैन बेस है। साथ ही हजारों लोग भारत से भी यहां आएंगे। हम जहां भी खेलते हैं, 50 फीसदी लोग भारतीय होते हैं। इससे हम पर दबाव ही होता है और साथ ही हमें गर्व भी होता है। आशा है कि विश्व कप के दौरान हम दर्शकों के समर्थन को अपने लिए ‘एडवांटेज’ के रूप में उपयोग में ला सकेंगे।”
यही नहीं, अपने पहले मैच में वेस्टइंडीज के हाथों शर्मनाक हार झेलने वाली पाकिस्तानी टीम के कप्तान सरफराज अहमद ने भी मेजबान इंग्लैंड को हराने के बाद स्थानीय समर्थकों का शुक्रिया अदा किया था।
सरफराज ने कहा था, “हमारे स्थानीय समर्थक शानदार हैं। इनकी बदौलत हम टूर्नामेंट में वापसी करने में सफल रहे। ये हमारे लिए मानसिक बल पैदा करते हैं। मैं इन सबका तहे-दिल से धन्यवाद करना चाहूंगा।”
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच साउथम्पटन में बुधवार को हुए मुकाबले में 14 हजार भारतीय प्रशंसक मैदान में मौजूद थे। इंग्लैंड में स्टेडियमों की जितनी क्षमता होती है, उसके लिहाज से यह एक बहुत बड़ी संख्या है। इसी तरह, बांग्लादेश और न्यूजीलैंड के बीच लंदन में हुए मैच में हजारों की संख्या में बांग्लादेशी प्रशंसक हर बदलते समीकरण पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे।
भारत ने अपना पहला मैच बड़े अंतर से जीता लेकिन बांग्लादेश दो विकेट से हार गया। बेशक उसकी हार हुई लेकिन 82 रन बनाकर मैन ऑफ द मैच चुने गए न्यूजीलैंड के सीनियर बल्लेबाज रॉस टेलर ने मैच के बाद माना कि दर्शकों के कारण बांग्लादेश टीम ने उनकी टीम पर काफी हद तक दबाव बना दिया था।
इंग्लैंड मे निश्चित तौर पर सबसे अधिक समर्थन मेजबान टीम को मिल रहा है और उसके बाद दक्षिण एशियाई टीमों का स्थान आता है। श्रीलंका और अफगानिस्तान के क्रिकेट प्रेमी किसी और से कम नहीं हैं। वे संख्या में बेशक कम हैं लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी नहीं है। रही बात, भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान की तो ये टीमों अपने समर्थकों की बदौलत दूसरी टीमों पर मनोवैज्ञानिक आधार पर भारी पड़ती दिख रही हैं।