भारत ने बीते हफ्ते रोहिंग्या शरणार्थियों के एक अन्य बैच को वापस म्यांमार भेज दिया है। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार के विशेषज्ञों ने भारत को जबरन रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के कार्य को बंद करने के लिए है, यह अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। यूएन मानवाधिकार के पांच विशेषज्ञों ने मंगलवार को रोहिंग्या पिता और उसके दो बेटो के जबरन प्रत्यर्पण की योजना पर बयान जारी किया है।
पाँचों विशेषज्ञों ने संयुक्त बयान में कहा कि “भारत द्वारा जबरन रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने की जारी प्रक्रिया से हम बेहद निराश है। म्यांमार में वे संजातीय और धार्मिक पहचान के कारण हमलों के खतरे, हिंसा और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। हमने भारतीय विभागों के साथ अपनी चिंताये जाहिर की हैं।”
साल 2014 में विदेशी कानून का उल्लंघन करने के जुर्म में गिरफ्तार एक ही परिवार के पांच सदस्यों को भारत ने इस वर्ष जनवरी में वापस म्यांमार भेज दिया था। इसी प्रकार अक्टूबर 2018 में सात रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस मुल्क भेज दिया था जब शीर्ष अदालत ने उनके निर्वासन पर स्टे लगाने की अर्जी को ख़ारिज कर दिया था।
भारत का दावा है कि स्वैच्छा के आधार पर ही रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजा गया था। जानकारों और दक्षिणपंथ संगठनों के मुताबिक, म्यांमार के हालातो के कारण यह मालूम कारण मुश्किल है कि क्या रोहिंग्या ने पारदर्शी प्रत्यर्पण प्रक्रिया को स्वीकार किया था।
रिपोर्ट के अनुसार इस परिवार का मुखिया मोहम्मद इमाम हुसैन के लावा म्यंमार की सरकार ने दो बच्चों की पहचान की पुष्टि नहीं की है। स्थानीय मीडिया के अनुसार अन्य तीन रोहिंग्या मुस्लिमों को मोरेह के जरिये 28 मार्च को भेजा गया था। विशेषज्ञों की टीम ने कहा कि “म्यांमार में रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी भारत में शरणार्थियों की स्थिति के संकल्प की विफलता को दर्शाती है।” शरणार्थी स्टेटस डेटर्मिनेशन पर भारतीय कानून और प्रशासनिक प्रक्रिया पर जानकारों ने गंभीर चिंता जाहिर की है।
जानकारों ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत नॉन रेफोलेमेंट या वापस भेजने के सिद्धांत का स्मरण करवाया। जिसके तहत किसी भी शरणार्थी को जबरन उसके मुल्क वापस नहीं भेजा जा सकता है जब तक यह यकीन न हो जाये कि वहां शोषण, उत्पीड़न और अन्य हिंसात्मक कार्रवाई जो मानव अधिकार का उलंघन करती हो, खत्म हो गयी है।
भारत लम्बे समय से कई वैश्विक मंचो पर नॉन रेफोलेमेंट का तरफ़दार रहा है, लेकिन साल 2017 में भारत की स्थिति बदल गयी। सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत में 40000 रोहिंग्या शरणार्थी है। भारत के सुरक्षा बलो द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिए जाने की वारदाते निरंतर बढ़ रही है। जिसने यूएन का ध्यान भी आकर्षित किया है।
जानकारों ने कहा कि “सिस्टम का इस्तेमाल कर भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लेने के घटनाओं से हम भी चिंतित है। अपने मुल्क से भागकर जिस देश में उन्होंने शरण ली है वहां उन्हें भेदभाव और सहिषुणता की अस्वीकृत हालातों से जूझना पड़ रहा हैं।”