भारतीय रेलवे अब अधिक से अधिक इको फ्रेंडली यानी पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की ओर अग्रसर है, इसी क्रम में भारतीय रेलवे अब लकड़ी के स्लीपर को हटा कर उनकी जगह कंपोजिट स्लीपर इस्तेमाल करने का विचार बना रहा है।
कम्पोजिट स्लीपर लकड़ी के स्लीपर की अपेक्षा अधिक भारी होते हैं, लेकिन इसी साथ वे लकड़ी के स्लीपर की तुलना में अधिक मजबूत भी होते हैं।
रेलवे के एक अधिकारी ने इस बाबत जानकारी देते हुए कहा है कि “भारतीय रेलवे फिलहाल सीमित हिसाब से कम्पोजिट स्लीपर का उपयोग करने जा रहा है, इनका उपयोग मुख्य रूप से गर्डर पुल पर ही किया जाएगा।”
रेलवे ने पहली बार कम्पोजिट स्लीपर का इस्तेमाल 2003 में मुरादाबाद सेक्शन में किया था।
इसी के साथ अधिकारी ने कहा है कि वर्ष 2016 में 10 ज़ोन को ये स्लीपर उपयोग के लिए दिये गए थे, लेकिन अभी तक किसी भी ज़ोन से इसे लेकर कोई भी शिकायत नहीं आई है।
अधिकारी ने बताया है कि स्टील व फाइबर प्लास्टिक से बने कम्पोजिट स्लीपर की कीमत करीब 25 हज़ार रुपये पड़ती है, जबकि चैनल स्लीपर 7 हज़ार रुपये का पड़ता है। इस तरह कीमत इस मामले में बड़ा रोल अदा कर सकती है।