Mon. Dec 23rd, 2024
    हनुमान-बेनीवाल

    राजस्थान में चुनाव से ठीक एक महीने पहले भाजपा से अलग हुए जाट नेता हनुमान बेनीवाल ने अपनी नयी पार्टी ‘राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी’ का गठन कर लिया।

    राजस्थान में मुश्किलों से जूझ रही भाजपा के लिए ये एक अच्छी खबर हो सकती है। बेनीवाल की नयी पार्टी न सिर्फ विधानसभा बल्कि 2019 लोकसभा के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है।

    वसुंधरा की छत्रछाया में अपने लिए कोई राजनितिक भविष्य ना देख बेनीवाल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था। बेनीवाल ने पार्टी बनाने के साथ ही ये भी घोषणा कर दी कि वो भाजपा और कांग्रेस दोनों का विकल्प बनने की कोशिश में हैं।

    बेनीवाल का मुख्य उद्देश्य भाजपा में राजे के वर्चस्व को ख़त्म कर भाजपा और राजस्थान में खुद को नए पावर सेंटर के रूप में खुद को स्थापित करना है।

    राजस्थान में 7 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। बेनीवाल जाट नेता है और राजस्थान की जाट राजनीति में उनका काफी दखल है। अगर बेनीवाल की नयी पार्टी भाजपा विरोधी जाट वोटों को अपने पाले में करने में सफल रही तो इन चुनावों में भाजपा को कम और कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा।

    बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वो राजस्थान चुनाव में किंगमेकर बन कर उभरेंगे। अगर ऐसा होता तो उनकी पहली पसंद भाजपा होगी लेकिन सिर्फ उसी सूरत में जब भाजपा वसुंधरा के अलावा किसी अन्य विकल्प पर विचार करे।

    बेनीवाल खुद को राजस्थान के जाट वोटों का एकलौता क्षत्रप मानते हैं। राजस्थान की राजनीति में एक पुरानी कहावत है ‘जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को’

    वर्तमान परिदृश्य में राजस्थान में जाटों का कोई भी सर्वमान्य नेता नहीं है। ऐसी स्थिति में बेनीवाल उस खाली जगह में खुद को स्थापित करना चाहते हैं। राजस्थान में 12 से 14 प्रतिशत जाट वोटर हैं। बेनीवाल इन्ही वोटरों के दम पर आगामी चुनाव में किंग मेकर बनने का सपना देख रहे हैं।

    वर्तमान चुनाव में वसुंधरा सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। ऐसे में वसुंधरा से नाराज जाटों के पास कांग्रेस के पास जाने का ही विकल्प था लेकिन बेनीवाल ने अपनी पार्टी बना कर खुद को अपने समुदाय में एक विकल्प के तौर पर पेश किया है। अगर जाट एकमुस्त होकर बेनीवाल के पाले में जाते हैं तो कांग्रेस की उम्मीदों को झटका लग सकता है और भाजपा की उम्मीदों को पंख।

    लेकिन बेनीवाल के लिए भी सबकुछ इतना आसान नहीं है। बेनीवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस की ओर जाते जाटों को अपनी और खींचना है। बेनीवाल जानते हैं कि जाट अशोक गहलोत को पसंद नहीं करते और इसलिए वो सबसे ज्यादा हमले गहलोत पर ही कर रहे हैं।

    लेकिन राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट के उद्भव के बाद बेनीवाल के लिए आसान कुछ नहीं। पायलट और जाटों के बीच कोई बड़ा मसला नहीं है। कांग्रेस ने भले ही राजस्थान में किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है लेकिन आलाकमान कई अवसरों पर ये सिंग्नल देता रहा है कि पायलट युवा है और उनमे मुख्यमंत्री बनने की काबिलियत है। ये कांग्रेस की रणनीति है जाट वोट बैंक को गहलोत से दूर कर पायलट की तरफ लाने की।

    बेनीवाल की पार्टी के साथ सबसे बड़ी मुश्किल है उनका सामाजिक आधार का सिमित होना। बिहार में लालू यादव, यूपी में मायावती और अखिलेश की तरह बेनीवाल की पैठ अन्य समुदायों में नहीं है।
    लालू, अखिलेश और मायावती को उनके परंपरागत वोट के अलावा मुस्लिमो के वोट भी मिलते हैं जिससे उनका एक व्यापक जनाधार है अपने राज्यों में लेकिन बेनीवाल के पास इसी जनाधार की सबसे ज्यादा कमी है। वोट बैंक के नाम पर उनके पास सिर्फ जाट वोटबैंक है। ये 12 से 14 प्रतिशत वोट किसी को हारने के लिए तो काफी है लेकिन चुनाव जिताने के लिए नाकाफी।
    ये तय है कि अगर विधानसभा चुनाव में वसुंधरा हारती है तो अमित शाह उन्हें दूसरा मौका नहीं देंगे। इन चुनावों के बाद लोकसभा की तैयारियां शुरू हो जायेगी और भाजपा किसी नए राजपूत या ब्राह्मण नेता के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों में उतरेगी।
    ऐसी स्थिति में राजवर्धन सिंह राठौर एक विकल्प हो सकते हैं। अगर नए नेतृत्व के साथ बेनीवाल दुबारा भाजपा में आते हैं तो भाजपा के पास एक बड़ा सामाजिक समीकरण होगा और ऐसी स्थिति में लोकसभा के नतीजे विधानसभा से अलग हो सकते हैं।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *