राजस्थान में भाजपा से सत्ता छिनने के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए माथापच्ची शुरू कर दी है। पार्टी ने भाजपा को सत्ता से भले ही बेदखल कर दिया हो लेकिन उसे वैसी सफलता नहीं मिल पायी जैसी उम्मीद की जा रही थी। पार्टी ने अनुमान लगाया था कि राज्य में वसुंधरा के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी के कारण उसे जबरदस्त सफलता मिलेगी लेकिन पार्टी बहुमत से 1 सीट पीछे जा कर अटक गई। भाजपा और कांग्रेस के वोटों के बीच का अंतर सिर्फ 0.5 फीसदी रहा।
ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रभाव का सामना करने के लिए पार्टी राजस्थान की कमान युवा सचिन पायलट के बजाये अनुभवी अशोक गहलोत को सौंप सकती है। गहलोत के पास गांधी परिवार की 3 पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है। उन्होंने इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, सोनिया गाँधी के साथ काम किया है और अब राहुल गाँधी के साथ काम कर रहे हैं और ये अनुभव गहलोत के पक्ष में जाता दिख रहा है।
पार्टी आलाकमान ने के सी वेणुगोपाल को नयुई सरकार के गठन के लिए राज्य में पर्यवेक्षक बना कर भेजा है। वेणुगोपाल ने कहा “पार्टी की परंपरा के अनुसार आखिरी निर्णय पार्टी अध्यक्ष का ही होगा कि कौन संभालेगा राजस्थान की कमान।”
राजस्थान कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी अविनाश पाण्डेय ने घोषणा किया है कि बुधवार को 11 बजे पार्टी के विधायक दल की बैठक होगी। बैठक के दौरान, नव निर्वाचित विधायक एक प्रस्ताव पारित करेंगे जबकि केंद्रीय पर्यवेक्षक विधायकों की व्यक्तिगत राय सुनेंगे और फिर विधायकों के विचारों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अवगत कराएंगे। पाण्डेय कहा कि बुधवार दोपहर पार्टी की एक और मीटिंग होगी और उसमे मुख्यमंत्री के बारे में घोषणा की जायेगी।
चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत ने इशारों इशारों में खुद को सीनियर बता कर मुख्यमंत्री पद का योग्य दावेदार बताने का एक भी मौका नहीं गंवाया। हालाँकि पुरे चुनाव अभियान के दौरान गहलोत और पायलट ये ही दोहराते रहे कि मुख्यमंत्री का फैसला पार्टी हाई कमान करेगा।
मंगलवार को चुनाव प्रचार के दौरान पायलट और गहलोत में प्रतिद्वंदिता साफ़ देखने को मिली जब पार्टी ऑफिस में कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा हुआ था तब दोनों ने चुनाव परिणाम अपने आवास पर देखा और वहीँ से अलग अलग मीडिया को संबोधित किया। जव आलाकमं ने वेणुगोपाल को पर्यवेक्षक बना कर भेजा तो दोनों शाम को पार्टी मुख्यालय पहुंचे।