संयुक्त राष्ट्र की जांच समिति ने सुरक्षा परिषद् में एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों का नरसंहार अभी भी जारी है। उन्होंने इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक अदालत में भेजने का अनुरोध किया था।
म्यांमार में खोजी अभियान के प्रमुख मर्ज़ुकी दरुस्मन ने मीडिया से मुखातिब होकर बताया कि रोहिंग्या नागरिकों की हत्या करने के साथ ही उन्हें समाज से बहिष्कृत किया गया था। साथ ही प्रजनन पर रोक और शिविरों में मुस्लिमों को भेजा गया था।
मर्ज़ुकी दरुस्मन ने कहा कि नरसंहार अभी जारी है। यूएन की सुरक्षा परिषद् में जारी की रिपोर्ट का रूस और चीन ने विरोध किया है। इस अभियान की 444 पन्नों की रिपोर्ट पिछले माह जारी की गयी थी। इस रिपोर्ट को जारी करते हुए अभियान के प्रमुख ने म्यांमार के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भेजे जाने की मांग की थी।
जारी रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार के वरिष्ठ अधिकारियों समेत कमांडर इन चीफ मिन औंग ह्लैंग की भी रखाइन के नरसंहार में जांच होनी चाहिए। चूँकि वह इस नरसंहार में संलिप्त थे।
म्यांमार ने इन आरोपों को खारिज किया कि सेना ने रखाइन में नरसंहार अभियान चलाया था। हालांकि सेना के अत्याचार के कारण ही 720,000 रोहिंग्या मुस्लिम नागरिक बांग्लादेश की सरहद पर शरण के लिए गए थे।
मर्ज़ुकी दरुस्मन ने बताया कि इस हिंसा में लगभग 390 गाँव बर्बाद किए गए हैं जबकि 10000 रोहिंग्या नागरिकों की हत्या की गयी थी। उन्होंने चेताते हुए कहा कि म्यांमार का रखाइन प्रांत बंगलादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सुरक्षित और रहने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा शरणार्थियों को वापस भेजना उनकी जिंदगियों को खतरे में डालना होगा।
म्यांमार में नियुक्त यूएन के राजदूत ने कहा कि राष्ट्रीय एकजुटता के दो पहलुओं में से एक दायित्व होता है जबकि वार्ता दूसरा स्तंम्भ होता है। उचित तथ्यों को खोजना दायित्व की ओर पहला कदम है।
म्यांमार के मुताबिक रखाइन में हिंसा रोहिंग्या चरमपंथियों ने फैलाई है। अगस्त 2017 से रोहिंग्या चरमपंथी बॉर्डर के पोस्ट पर हमला कर रहे हैं। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए म्यांमार की सेना अभियान चला रही है।