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    मालदीव द्वीप

    मालदीव में राजनीतिक संकट पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई है। मुख्य रूप से चीन व भारत इस स्थिति पर नजर बनाए हुए है। दक्षिण-पश्चिम में एक दक्षिण एशियाई देश मालदीव को जी बहुत सुंदर द्वीप माना जाता है। मालदीव की प्रगतिशील पार्टी (पीपीएम) के राष्ट्रपति यामीन अब्दुल ने जब 5 फरवरी को आपातकाल की घोषणा की थी उसके बाद से ही वहां संकट पैदा हो गया है।

    सेना ने सुप्रीम कोर्ट में हमला करके पांच जजों को गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति सहित कई विपक्षी नेताओं को जेल में भिजवा दिया। आइए मालदीव संकट के बारे मे विस्तृत रूप से जानते है।

    मालदीव संकट कैसे शुरू हुआ?

    मालदीव संकट की शुरूआत पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम व मोहम्मद नशीद से जुडी हुई है। गयूम को राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों में हराकर नशीद ने सत्ता प्राप्त की थी। लेकिन गयूम ने वापिस से इसे हटवाकर अब्दुल्ला यामीन को राष्ट्रपति बनवाया। अब यामीन व गयूम के बीच में तनाव है। इससे पहले 2009 में दुनिया की पहली पानी के नीचे की कैबिनेट की बैठक आयोजित मोहम्मद नशीद ने की थी।

    पूर्व राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने के बाद ही उन पर संकट के बादल छाने शुरु हो गए। 2013 में मालदीव में चुनावों में भारी अनियमितता मानी गई। साल 2016 के बाद से नशीद ने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण की मांग की। अब मालदीव में इसे गिरफ्तार कर लिया है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यामीन गयूम की ताकत कैसे खतरे में है?

    सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति के दो कार्य असंवैधानिक है। जिसे यामीन ने मानने से इंकार कर दिया था। पहला, पूर्व राष्ट्रपति गयूम ने नौ राजनीतिक नेताओं को गलत तरीके से कैद करवाया था,इन्हें तुरंत छोड़ना चाहिए। मौजूदा राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने से इंकार करते हुए पूर्व राष्ट्रपति मौमून गयूम को भी हिरासत में लिया।

    मार्च 2017 में विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के बाद गयूम लोकतंत्र को बहाल करने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अभियान चला रह थे। कोर्ट ने दूसरा फैसला सुनाया कि मौमून गयूम ने 12 सीटों पर नेताओं को गलत तरीके से हटाया था।

    मालदीव में आपात स्थिति क्या है ?

    मालदीव मे यामीन ने 15 दिन के आपातकाल की घोषणा की है। ये राष्ट्रपति को सभी शक्तियां प्रदान करता है। आपातकाल में सुरक्षा बलों को प्रमुख विपक्षी व्यक्तियों को हिरासत में लेना पड़ता है और संसद और सुप्रीम कोर्ट की पहुंच को सीमित कर देता है।

    देश में राष्ट्रपति का ही शासन सर्वोच्च रहता है। आपातकाल में जबरन राष्ट्रपति को पद से नहीं हटाया जा सकता है। साथ ही यह विपक्षी नेताओं को कैद रखने का अधिकार देता है। आपातकाल में कई संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया है।

    नवंबर में होने वाले चुनावों मे इसका प्रभाव

    मालदीव की सेना ने राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल लगाने के बाद स्थिति संभाली हुई है। सुप्रीम कोर्ट के तीन बचे हुए जजों ने पहले वाले फैसले को उलटते हुए नौ राजनीतिक नेताओं को दोषी ठहराना बरकरार रखा है।

    जजों ने कहा कि किसी भी फैसले की आलोचना कोर्ट की अवमानना होगी। इस साल नवंबर में मालदीव में चुनाव होने वाले है। आपातकाल का समय भी बढ़ाया जा सकता है। लेकिन माना जा रहा है कि तब तक स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी।

    अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हस्तक्षेप करना कितना जरूरी

    मालदीव संकट के बीच पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने भारत से सैन्य विकल्प का इस्तेमाल करने व संकट को दूर करने के लिए दखल देने की मांग की थी। हालांकि, भारत सरकार अपनी सेना वहां भेजने के लिए अनिच्छुक दिखती है। चीन की वजह से भारत वहां पर कोई सैन्य कदम नहीं उठा रहा है। मालदीव में भारत का स्थिति पहले काफी मजबूत थी। लेकिन वर्तमान में चीन व मालदीव में ज्यादा घनिष्ठता है।

    यदि भारत मालदीव में हस्तक्षेप करेगा तो निश्चित रूप से चीन इसका विरोध कर सकता है। अमेरिका ने कहा कि मालदीव सरकार को कानून के शासन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संस्थानों का सम्मान करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है। अभी तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस स्थिति पर नजर ही बनाए हुए है।