भूटान की जनता ने सत्ता की कमान एक नए सियासी दल सेंटर लेफ्ट नयमरूप त्शोगपा (डीएनटी) को सौंप दी है। भूटान में गुरुवार को हुए चुनाव में जनता ने हैरअंगेज़ निर्णय सुनाते हुए एक सर्जन द्वारा संस्थापित नईनवेली पार्टी को पर्वतीय राष्ट्र की कुर्सी दे दी।
भूटान आठ लाख नागरिकों का देश है जिसके दो पड़ोसियों भारत और चीन के मध्य दशकों से जुबानी जंग छिड़ी हुई है। भूटान में राजशाही का अंत साल 2008 में हो गया था और उसके बाद से प्रत्येक चुनाव में एक नए दल को सरकार बनाने का मौका दिया जाता है।
डीएनटी का गठन साल 2013 में हुआ था। भूटान के सदन में 47 राष्ट्रीय सीट हैं। शुक्रवार को हुए परिणामों की घोषणा में डीएनटी ने 30 सीट जीती है। वहीँ विपक्षी पार्टी डीपीटी ने 17 सीटें जीती है।
चुनाव में जीतने वाली पार्टी का नेता लोटय त्शेरिंग हैं। 50 वर्षीय सर्जन ने बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया में तालीम हासिल की थी। सर्जन लोटय राष्ट्र निर्माण करना चाहते हैं साथ ही विदेशी कर्ज से भूटान को निजात दिलाना चाहते हैं विशेषकर भारत से लिया गए उधार से।
साथ ही युवाओं को रोजगार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी से मुक्ति और आपराधिक समूहों का सफाया प्रचार के दौरान उनके दावे रहे हैं। दोनों विपक्षी दलों ने अर्थव्यवस्था को उभारने का व्यादा किया था। लोटय त्शेरिंग के दल ने ‘नरोइंग दी गैप’ यानी कर्ज के अंतर को काम करने का नारा दिया था।
भूटान में साल 2008 में चुनाव जीतने वाली पार्टी डीपीटी को साल 2013 के चुनावो में एक भी सीट नहीं मिली थी। इनका मकसद हीड्रोपॉवरप्लांट के जरिया अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना था। इसके उलट डीएनटी हीड्रोपॉवरप्लांट की लागत से बढ़ते कर्ज को लेकर चिंतित थी।
हाइड्रोपावरप्लांट की अनुमानित लागत 1.5 बिलियन डॉलर थी। इससे भूटान पर 80 फीसदी कर्ज का बोझ बढ़ जाता। जो ज्यादातर भारत से लिया गया है। भारत ने भूटान में पांच में चार हाइड्रोपावरप्लांट के निर्माण में आर्थिक मदद की है।