भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था के मद्देनजर भारत सरकार द्वारा लिए जा रहे कुछ फैसलों से खफा अमेरिका ने कहा है कि वह भारत को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से हटा सकता है।
अमेरिका के अनुसार ‘भारत अपने आर्थिक सुधार के लिए बहुत से ऐसे कदम उठा रहा है, जो अमेरिका के हित में नहीं हैं। इसी के साथ भारत अमेरिकी शर्तों को भी अधिक गंभीरता से नहीं लेता है।’
भारत को इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने चीन, जर्मनी,जापान,दक्षिण कोरिया और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों के साथ ही अपनी मुद्रा निगरानी सूची में रखा था।
अमेरिका के राजकोष विभाग ने इस बाबत जानकारी देते हुए कहा है कि अगर भारत पिछले छः महीनों के ही तरह समान रवैय्या अपनाए रहा तो उसे तो अमेरिका उसे अगली छमाही रिपोर्ट से अलग कर देगा।
भारतीय मुद्रा के कीमत में गिरावट भी इसी क्रम का हिस्सा है। भारतीय मुद्रा में 7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ हुई है। हालाँकि अमेरिकी राजकोष ने कहा है कि भारत ने अमेरिका के साथ करीब 23 अरब डॉलर का व्यापार किया है, लेकिन भारत का व्यापार घाटा अभी भी उसकी कुल जीडीपी का 1.9 प्रतिशत है।
भारत का चालू वित्तीय घाटा पिछले 4 तिमाही से बढ़ा है। वर्ष 2012 में अपने सबसे निछले स्तर को छूने वाले इस घाटे ने हालाँकि बीच के सालों में कुछ सुधार भी किए हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रकोष ने इस वर्ष के लिए भारत के राजकोषीय घाटे को देश की कुल जीडीपी का 2.5 प्रतिशत अनुमानित किया है।
आरबीआई के अनुसार वर्तमान में भारतीय मुद्रा की कीमत पूर्णतया बाज़ार पर निर्धारित है। ऐसे में घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही बाज़ारों में देश को अपने प्रदर्शन का आंकलन करना होगा।
वहीं भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें तो जुलाई 2018 में देश में 380 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा संचित थी। इसके चलते भारत के कुल ऋण का तीन गुना व अगले 8 महीनों के लिए विदेशी आयत का भार वहन किया जा सकता है।