बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ भारतीय सरकार द्वारा शुरू की गयी एक ऐसी योजना है, तो देशभर की बेटियों के कल्याण के लिए काम कर रही है। इस योजना का लक्ष्य है कि देश में लड़कियों को उनके वे सभी अधिकार मिलें, जिनमे अबतक उनके साथ भेदभाव हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को जनवरी 2015 में शुरू किया था। इस योजना के जरिये कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं और गिरती बाल लिंग अनुपात जैसी समस्याओं का समाधान किया जाएगा। इसके अलावा इस योजना के जरिये समाज में लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाएगा कि लड़कियों की पढ़ाई भी उतनी ही जरूरी है, जितना लड़कों की।
इस योजना को साकार बनाने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ और परिवार नियोजन मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय एक साथ काम कर रहे हैं।
2016 में भारत की सफल एथलिट खिलाड़ी साक्षी मलिक को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का ब्रांड एंबेसडर चुना गया था।
योजना की जरूरत क्यों पड़ी?
भारत में आजादी के बाद से ही लड़कों के खिलाफ लड़कियों की संख्या कम होनी शुरू हो गयी थी। देश में उदारीकरण और आधुनिकताओं के आने के बाद तो हालात और खराब हो गए थे। उदाहरण के तौर पर साल 1991 में बाल लिंग अनुपात प्रति 1000 लड़कों पर 945 लड़कियां था।
यह अनुपात 2001 में गिरकर 932 लड़की प्रति 1000 लड़के हो गया था। इसी तरह साल 2011 में यह और गिरकर 918 हो गया था। सरकार का अनुमान था कि यदि यही गति रही तो साल 2021 तक यह अनुपात घटकर 900 लड़कियां प्रति 1000 लड़के हो जाएगा।
ये आंकड़े चिंताजनक थे। भारत जैसे उभरते शक्तिशाली देश में लड़कियों की संख्या यूँ कम होना बहुत बड़ी चिंता का विषय था। देश में आजादी के बाद बच्चियों के कल्याण के लिए काफी योजनाएं शुरू की गयी थी, लेकिन जमीनी तौर पर इनमे सफलता नहीं पायी जा सकी।