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    Rahul Gandhi

    डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का प्रस्ताव रखा था। स्टालिन के इस प्रताव के बाद ही 2019 में भाजपा विरोधी दलों के विपक्षी एकता के सपनों की धज्जियाँ उड़ गई।

    स्टालिन ने कहा था “सेक्युलर ताकतों को एकजुट करने के लिए राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार घोषित करना चाहिए।”

    डीएमके नेता स्टालिन ने सोमवार का ज्यादातर समय राहुल गाँधी के साथ बिताया और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। कांग्रेस शपथ ग्रहण समारोह को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का मेगा शो बनाना चाहती थी लेकिन बसपा सुप्रीम मायावती, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह इस समारोह से नदारद रहे।

    बड़े नेताओं के नादारद रहने से ये सन्देश गया कि स्टालिन द्वारा राहुल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने से ये नाराज हो गए हैं। अब स्टालिन ने इस पर सफाई देते हुए कहा “हमें लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है इसलिए मैंने राहुल गाँधी का नाम प्रस्तावित किया। राहुल की पहुँच पुरे देश में हैं और वो भाजपा को रोकने के लिए बड़े मोर्चे का नेतृत्व कर सकते हैं।”

    स्टालिन का प्रस्ताव बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और सीपीएम को ज्यादा पसंद नहीं आया। इसलिए अगले ही दिन सबसे पहला बयान पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से आया – “प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद सभी दलों को बैठ कर करना चाहिए। चुनाव से पहले इस तह की घोषणा एक अपरिपक्व घोषणा है और इससे विपक्षी एकता खतरे में पड़ सकती है।”

    उसके बाद सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि भारतीय राजनीति में ऐसा पहले भी हुआ है कि प्रधानमंत्री की घोषणा चुनावों के बाद हुई है। 1996  में देवेगौडा और 2004 में मनमोहन सिंह इसके उदाहरण है। प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा चुनाव के बाद होनी चाहिए।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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