Sat. Nov 23rd, 2024
    नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत का रहस्य

    भारतीय इतिहास की अधिकांश पुस्तकों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत का पटाक्षेप केवल इस तथ्यविहीन तर्क के साथ कर दिया जाता है कि उनकी मौत 18 अगस्त 1945 को जापान अधिकृत ताइवान में हवाई दुर्घटना में हुई थी। इस घटना से पर्दा उठाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में शहनवाज खान समिति गठित की थी। इस समिति ने जापान सरकार की रिपोर्ट का समर्थन कर अपना काम पूरा कर लिया।

    लेकिन इसके कुछ दिन बाद खुद जापान सरकार ने इस बात की पुष्टि की थी कि, 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था। इसलिए आज भी नेताजी की मौत का रहस्य खुल नहीं पाया है। खोसला आयोग ने भी शाहनवाज खान रिपोर्ट को मात्र दोहराया लेकिन मुखर्जी कमिशन ने नेताजी की मौत के रहस्य को बरकरार रखा। हांलाकि यह विवाद तब गहरा गया जब फ्रांसीसी खुफिया रिपोर्ट ने भी यह कहा कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी।

    नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत

    जाहिर है नेताजी ने अपना पूरा जीवन रहस्यमय तरीके से ही जिया, पर उनकी मौत भी इतने रहस्यमय तरीके से हुई होगी जिसके बारे में आज तक किसी ने सोचा तक नहीं होगा। पीएम मोदी ने भी 2014 चुनाव से पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य से पर्दा उठाने का वादा किया था, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।

    जापान सरकार की रिपोर्ट

    जापान सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में हुई थी। इस रिपोर्ट में यह कहा गया कि जो विमान दुघर्टनाग्रस्त हुआ उसमें बोस भी सवार थे, घायल बोस को इलाज के लिए अपराह्न करीब तीन बजे ताइपेई सैन्य अस्पताल की नानमोन शाखा में ले जाया गया जहां शाम सात बजे उनका देहांत हो गया। इसके बाद 22 अगस्त को ताइपेई निगम श्मशानघाट में सुभाष चंद्र बोस का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

    जापान सरकार की इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जमीन 20 मीटर उठने के बाद असंतुलित विमान जैसे ही कंकड़-पत्थरों की ढेर पर गिरा यह आग की लपटों में पूरी तरह से घिर गया। इस दौरान कर्नल हबीबुर रहमान सहित उनके अन्य सा​थियों ने 48 वर्षीय बोस के कपड़ों में लगी आग को बुझाने का प्रयास किया लेकिन उनका शरीर बुरी तरह से झुलस चुका था।

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस

    शाहनवाज खान समिति की रिपोर्ट, 1956

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से रहस्य से पर्दा उठाने के लिए 1956 में नेहरू सरकार ने शाहनवाज खान समिति गठित की। इस समिति ने जापान सरकार के रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए नेताजी के मौत की तिथि 18 अगस्त 1945 की पुष्टि की। लेकिन मामला शक के घेरे में तब आ गया जब जापान की सरकार ने कुछ दिनों बाद अपनी रिपोर्ट से मुकरते हुए यह कहा कि 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू एयरपोर्ट पर कोई हवाई दुर्घटना हुई ही नहीं थी।

    शाहनवाज समिति ​की रिपोर्ट पर शक का दायरा तब बढ़ गया जब इस घटना के चश्मदीद गवाह कर्नल हबीबुर रहमान ने अपने वक्तव्य बार-बार बदले। कभी रहमान ने यह कहा कि दुघर्टना के वक्त वो विमान में बेहोश पड़े थे, तो कभी कहा जब उनकी आंख खुली तो उन्होंने खुद को ताइवानी अस्पताल के बेड पर पाया। यही नहीं रहमान ने हवाई दुघर्टना की तारीख भी 20-22 अगस्त मुकर्रर की। यहीं नई आजाद हिंद फौज के कई अधिकारियों ने भी कहा कि नेता जी की मौत विमान हादसे में हुई ही नहीं। इस प्रकार शाहनवाज रिपोर्ट नेताजी की मौत को लेकर दिए गए साक्ष्यों में उलझ कर रह गई।

    खोसला आयोग, 1970

    इंदिरा गांधी के निर्देश पर साल 1070 में खोसला कमिशन का गठन किया। खोसला आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र की मौत 18 अगस्त 1945 को जापान के ताइपे के ताइहोकू एयरपोर्ट पर विमान हादसे में हुई थी। यानि खोसला आयोग ने जापानी सरकार के रिपोर्ट और शहनवाज खान समिति के रिपोर्ट की एक प्रकार से पुष्टि की।

    मुखर्जी कमेटी का गठन, 1999

    मुखर्जी कमीशन का गठन 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने किया। इस एक सदस्यीय समिति के सदस्य सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मनोज मुखर्जी ने 7 वर्ष बाद अपनी रपट प्रस्तुत की, जिसके अनुसार नेताजी की मृत्यु विमान दुघर्टना में नहीं हुई थी।

    सुभाषचंद्र बोस

    आपको बता दें कि मुखर्जी कमिशन की रिपोर्ट 17 मई 2006 को संसद में पेश की गई जिसे तत्कालीन सरकार ने मानने से इनकार कर दिया। इस रिपोर्ट के बारे में तब नेताजी के परिवार ने कहा था कि अगर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को बिना किसी छेड़छाड़ के जनता के सामने रखी जाए तो सच सामने आ जाएगा। मुखर्जी कमिशन ने अपनी रिपोर्ट देकर एक बार फिर से नेताजी के मौत के रहस्य को गहरा कर दिया।

    फ्रांसीसी सरकार के इस खुफिया रिपोर्ट से गहराया विवाद

    बोस की मौत पर फ़्रांसिसी सरकार की एक रिपोर्ट ने खलबली मचा दी। पेरिस के इतिहासकार जेबीपी मूर ने इस बात का दावा किया है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत ताइवान के विमान दुघर्टना में नहीं हुई थी। इस इतिहासकार का यहां तक कहना है कि नेताजी 1947 तक कहीं ना कहीं जिंदा थे।

    फ्रांसीसी गुप्त दस्वावेजों के अनुसार 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मौत नहीं हुई थी, इसे केवल प्रचारित किया गया था। 11 दिसंबर 1947 के गुप्त दस्तावेजों के अनुसार सुभाषचंद्र बोस अपनी पहचान छिपाकर कहीं ना कहीं रह रहे थे।

    सुभाषचंद्र बोस के बारे में यह खुफिया रिपोर्ट होट कमिसरीट डी फ्रांस फॉर इंडोचाइना एसडीईसीई इंडोचाइना आधारित बीसीआरआई नंबर 41283 सीएसएएच ईएक्स नंबर 616, शीर्षक के तहत उपलब्ध है।