Sun. Nov 17th, 2024
    जम्मू और कश्मीर

    सुरक्षा बलों को जम्मू और कश्मीर में 2018 में बड़ी सफलता मिली है क्योंकि उन्होंने शीर्ष आतंकवादी कमांडर जैसे लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख नवीद जट्ट और 260 उग्रवादियों का खात्मा कर दिया है। मगर करीबन 100 जवानों को ड्यूटी के समय अपनी जान गवानी पड़ी।

    एक अधिकारी ने बताया कि 2018 में इतने आतंकवादी के मरने का कारण है सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खुफिया और सावधानीपूर्वक संचालन करना। मगर ये साल सुरक्षा बलों के लिए सबसे ज्यादा खूंखार भी साबित हुआ क्योंकि बाकी सालों के मुकाबले जैसे इन्होने आतंकवादी मारे, वैसे ही ज्यादा जवानों को खोया भी।

    पिछले साल 95 सुरक्षा बाल के जवान मरे थे जबकि 2017 में ये आकड़ा 83 का था। और इस लड़ाई में, 86 नागरिकों को भी अपनी जान गवानी पड़ी। या तो वे आतंकवादी के हमले से मर गए या फिर उनके और सुरक्षा बलों के बीच हुई क्रॉस-फायरिंग की चपेट में आ गए।

    मई-जून में रमजान के उपवास महीने के दौरान लड़ाकू अभियानों को ना शुरू करने के संदर्भ में, केंद्र द्वारा घोषित एकतरफा ‘युद्ध विराम’ भी देखा गया। जबकि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों और लोगों ने, बड़े पैमाने पर इस कदम का स्वागत किया, आतंकवादियों ने ‘युद्ध विराम’ को अस्वीकार कर दिया।

    हालांकि लोगो को राहत मिलने के बावजूद भी ‘युद्ध विराम’ को रमजान के महीने से आगे नहीं बढ़ाया गया।

    2018 में हिंसा तब शुरू हुई जब 6 जनवरी को उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के सोपोर शहर में आतंकवादियों द्वारा किए गए एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) ब्लास्ट में चार पुलिसकर्मी मारे गए और दो अन्य घायल हो गए।

    2018 में एक ही महीने में आतंकवादी हमलों की संख्या नवंबर में सबसे अधिक देखी गयी थी जब सुरक्षा बलों द्वारा 40 उग्रवादियों को मार दिया गया।

    साल के दूसरे हिस्से में, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर और नवंबर महीनों में, सुरक्षा बलों में हद से ज्यादा जोश आ गया और उन्होंने परिणाम स्वरुप 130 आतंकवादियों का खात्मा कर दिया जिसमे कई संगठनों के प्रमुख कमांडर भी शामिल थे।

    इससे पहले वर्ष में, 6 मई को, सुरक्षा बलों ने शोपियां जिले के बडीगाम गांव में हुई एक मुठभेड़ में एक बड़ी सफलता हासिल की जब हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (एचएम) के कमांडर सद्दाम पद्दर को चार अन्य उग्रवादियों के साथ मार दिया गया था, जिसमें कश्मीर विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर मोहम्मद रफी भट भी शामिल थे।

    11 अक्टूबर को, एचएम को एक और झटका लगा, जब उसके शीर्ष कमांडर मनन बशीर वानी को उसके सहयोगी के साथ उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा में सुरक्षा बलों के साथ एक गोलाबारी में मार दिया गया।

    वानी की हत्या के कुछ ही दिन बाद, लश्कर का शीर्ष कमांडर और सबसे पुराने जीवित आतंकवादियों में से एक, मेहराज-उद-दीन बांगरू की, 17 अक्टूबर को श्रीनगर के फतेह कदल इलाके में एक गोली लगने से मौत हो गई थी।

    साल भर चल रही आतंकवादी हिंसा में एक नया मोड़ तब आया जब 14 जून वाले दिन, ‘राइजिंग कश्मीर’ नामक अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार और मुख्य संपादक शुजात बुखारी और उनके दो निजी सुरक्षा अधिकारियों को उनके ऑफिस के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गयी। पुलिस ने इस हमले में, लश्कर-ए-तैयबा का हाथ बताया था।

    आतंकवादियों ने भी पूरे साल सुरक्षा बलों को निशाना बनाया और हथियारों के साथ फरार होना जारी रखा। उग्रवादियों ने कथित मुखबिरों पर हमले तेज कर दिए, उनमें से कई का अपहरण और हत्या कर दी और कई मौकों पर, उनके निष्पादन के वीडियो जारी किए।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *