तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने गुरुवार को दूसरी बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्य में केसीआर के नाम से मशहूर चंद्रशेखर राव का यहाँ तक का सफ़र आसान नहीं रहा। कभी अविभाजित आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगु देशम पार्टी में अदने से सिपाही से एक अलग राज्य तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनना और वो भी चन्द्रबाबू नायडू कि पार्टी को ही मात दे कर… ये कहानी काफी फ़िल्मी सी लगती है।
1985 में तेलुगु देशम पार्टी की टिकट पर अपना पहला चुनाव जीतने वाले केसीआर ने 1985 से 1999 तक लगातार 4 बार विधानसभा चुनाव जीता। 1987 में वो एनटी रामा राव के मंत्रिमंडल में पहली बार मंत्री बने। उसके बाद जब तेलुगु देशम पार्टी की कमान चन्द्रबाबू नायडू के हाथों में आई तो वो चन्द्रबाबू नायडू की सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री बने। 1999 में जब चुनाव जीतने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें मंत्री बनाने की बजाये विधानसभा का उपसभापति बनाया तो केसीआर को ये रास नहीं आया क्योंकि उनके पास उस रोल में करने को कुछ नहीं था।
साल 1996 की बात है जब केंद्र में देवेगौडा की सरकार थी उसवक्त अविभाजित बिहार में झारखण्ड और अविभाजित उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड आन्दोलन जोर पकड़ रहा था। उसी वक़्त आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद के आईटी हब के रूप में विकसित होने की शुरुआत हुई।
जब आईटी कम्पनियां हैदराबाद में अपने पाँव पसारने लगी तो राज्य के रियल एस्टेट के कारोबार में तेजी आई और सीमान्ध्र की तरफ से हैदराबाद की रोजगार के तलाश में लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। 15 नवम्बर 2000 को जब अटल बिहारी वाजपेयी ने बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को बाँट कर झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के गठन की मंजूरी दी तो केसीआर को लगा कि तेलंगाना का सपना भी साकार हो सकता है।
27 अप्रैल 2001 को आन्ध्र प्रदेश से अलग कर नए तेलंगाना राज्य के गठन की मांग के साथ केसीआर ने अपनी नई राजनितिक पार्टी ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति’ का गठन किया।
2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 5 सीटें जीती। वाई एस राजशेखर रेड्डी और कांग्रेस गठबंधन के हाथों नायडू के तेलुगु देशम पार्टी को कड़ी हार झेलनी पड़ी। केसीआए यूपीए-1 में पहली बार कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन जब उन्हें लगा कि कांग्रेस तेलंगाना के गठन में टाल मटोल कर रही है तो उन्होंने कैबिनेट छोड़ दिया और वापस आंध्र प्रदेश आ गए।
2009 के चुनाव में उन्हें उम्मीद थी कि वो ज्यादा सीटें जीतेंगे इसी उम्मीद के साथ उन्होंने लोकसभा चुनाव परिणाम के एक दिन पहले ही लाल कृष्ण आडवानी के नेतृत्व वाली एनडीए में शामिल हो गए लेकिन उनका आंकलन गलत साबित हुआ। केसीआर की पार्टी टीआरएस को सिर्फ 2 लोकसभा सीटों पर जीत मिली और कांग्रेस 206 सीटों के साथ फिर सत्ता में आ गई। राज्य में भी कांग्रेस -वाई एस राजशेखर रेड्डी फिर से सत्ता में आ गए।
इन नतीजों के बाद मीडिया ने कह दिया कि अब केसीआर और उनकी पार्टी समाप्त हो चुकी है और उसी के साथ समाप्त हो चूका है उनका तेलंगाना का सपना। तब अमेरिका से लौटी केसीआर की बेटी कविता ने कहा कि तेलंगाना के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी और ये सपना एक दिन जरूर पूरा होगा।
कुछ महीनो बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वायएसआर की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। और आंध्र प्रदेश कांग्रेस में अराजकता फ़ैल गई उस वक़्त केसीआर को लगा ये प्रहार और वापसी करने का सही मौका है और उन्होंने तेलंगाना के निर्माण के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया। अविवाजित आंध्र का तेलंगाना हिस्सा एक सप्ताह तक थम गया तब केंद्र सरकार ने जल्दीबाजी में तेलंगाना के निर्माण की घोषणा कर दी।
तेलंगाना के गठन के बाद केसीआर पहली बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने दिखाया कि वो एक योद्धा है जो चुनौतियों से घबराकर पीछे नहीं हटते।
लगातार दूसरी बार तेलंगाना में सरकार बनाने के बाद केसीआर ने अपनी राजनितिक महत्वकांक्षाएं भी जाहिर कर दी कि अब उनका अगला मिशन हैदराबाद से निकल कर दिल्ली की सियासत में आने का है।