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    कारसेवक,बीजेपी

    देश की सियासत में हिंदुत्व की राजनीति एक बार फिर उफान पर है। हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात से निकलकर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो दूसरी ओर देश के सबसे बड़े सूबे का सीएम भी हिंदुत्व का बड़ा चेहरा है। बीजेपी की फेहरिश्त में देखा जाए तो एक शख्स ऐसा है, जिसने एक दौर में हिंदुत्व के नाम पर अपनी सत्ता को बलि चढ़ा दिया था। ये शख्स कल्याण सिंह हैं, जिन्होंने राम मंदिर के लिए सत्ता ही नहीं गंवाई, बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वे एकमात्र शख्स हैं। यही वजह है कि कारसेवक कल्याण सिंह को बीजेपी का असली हिंदू हृदय सम्राट मानते हैं।

    बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार होने वाले कल्याण सिंह मौजूदा समय में राजस्थान के राज्यपाल हैं। एक दौर में वे राममंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में से एक थे। उनकी पहचान कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी और प्रखर वक्ता की थी। हालत ये थी कि कल्याण सिंह का नाम आते ही मुस्लिम समाज के लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते थे। 30 अक्टूबर 1990 को जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी। प्रशासन कारसेवकों के साथ सख्त रवैया अपना रहा था। ऐसे में बीजेपी ने उनका मुकाबला करने के लिए कल्याण सिंह को आगे किया। कल्याण सिंह बीजेपी में अटल बिहारी बाजपेयी के बाद दूसरे ऐसे नेता थे जिनके भाषणों को सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे। कल्याण सिंह उग्र तेवर में बोलते थे, उनकी यही अदा लोगों को पसंद आती।

    कल्याण सिंह ने एक साल में बीजेपी को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर यूपी में सरकार बना ली। कल्याण सिंह सरकार का एक साल भी नहीं गुजरा थे कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। जबकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र देकर कहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, वह मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देंगे। इसके बावजूद 6 दिसंबर 1992 को वही प्रशासन जो मुलायम के दौर में कारसेवकों के साथ सख्ती बरत रहा था, मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रहा था।

    लेकिन वर्त्तमान सरकार की तरफ से कोई कार्यवाई नहीं करने से मामला बिगड़ता गया। कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तिफ़ा देना पड़ा और साथ ही एक दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा। वहीँ केंद्र की सरकार ने इस मामले में यूपी सरकार को बर्खास्त कर दिया था।