Mon. Dec 23rd, 2024
    कंप्यूटर नेटवर्क में routing अल्गोरिथम routing algorithm in hindi

    विषय-सूचि


    कई स्थितियों में पैकेट्स को डेस्टिनेशन तक रास्ता तय करने में एक से ज्यादा hops की जरूरत पड़ती है। Routing पैकेट switched नेटवर्क डिजाईन के सबसे काम्प्लेक्स और जरूरी पहलुओं में से एक है।

    रूटिंग एल्गोरिथ्म की प्रॉपर्टी (routing algorithm in hindi)

    रूटिंग एल्गोरिथ्म की प्रॉपर्टी जो उसमे होनी चाहिए उसे निम्नलिखित लिस्ट किया गया है:

    • करेक्टनेस और सिम्प्लिसिटी: यानी कि वो सही से काम करना चाहिए और सादा होने चाहिए, ज्यादा काम्प्लेक्स नहीं।
    • रोबस्टनेस: फेलियर की स्थिति में भी किसी और रूट द्वारा पैकेट को डिलीवर करने की क्षमता होनी चाहिए।
    • स्टेबिलिटी: Algorithm बदलते हुए स्थितियों के अनुरूप तेजी से ढलने में सक्षम होना चाहिए ताकि डिलीवरी में कोई दिक्कत नही आये।
    • अल्गों फेयर और ऑप्टीमल होना चाहिए।
    • एफिशिएंसी: इसका अर्थ हुआ कि ओवरहेड कम से कम होना चाहिए।

    रूटिंग एल्गोरिथ्म के डिजाईन पैरामीटर (design parameter of routing algorithm in hindi)

    • परफॉरमेंस क्राइटेरिया: Hops की संख्या, खर्च (पैकेट को ज्यादा बैंडविड्थ के साथ भेजना क्योंकि खर्च कम आये),डिले (Queue का आकार), थ्रूपुट टाइम (खास समय के यूनिट में डिलीवर किये गया पैकेट्स की संख्या)
    • डिसिशन टाइम: पैकेट को कब रूट किया जाये इसका निर्णय। पर-पैकेट (डाटाग्राम) या पर-सेशन (वर्चुअल सर्किट)
    • डिसिशन प्लेस: Routing के बारे में कौन निर्णय लेकिन इसको तय करने के लिए। प्रत्येक नोड (डिस्ट्रिब्यूटेड), सेंट्रल नोड (सेंट्रलाइज्ड) या फिर आर्गनाइज्ड नोड (सोर्स)।
    • नेटवर्क इनफार्मेशन सोर्स: नॉन, लोकल, adjacent नोड, रूट के नोड या फिर सभी नोड।
    • नेटवर्क इनफार्मेशन अपडेट टाइम: कंटीन्यूअस, पीरियाडिक, मेजर लोड चेंज, टोपोलॉजी चेंज।

    रूटिंग स्ट्रेटेजी: फिक्स्ड रूटिंग

    फिक्स्ड routing एक रणनीति है जिसके द्वारा की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। इसमें;

    • नेटवर्क के अंदर सभी सोर्स और डेस्टिनेशन के पेअर के लिए एक रूट को चुना जाता है।
    • ये रूट फिक्स्ड होते हैं। इनमे बदलाव तभी आता है जब नेटवर्क की टोपोलॉजी में बदलाव किया जाए।

    फिक्स्ड रूटिंग का उदाहरण

    इस चित्र को देखिये जिसमे एक सिंपल पैकेट switched नेटवर्क को 6 नोड या राऊटर के द्वारा दर्शाया गया है:

    लीस्ट कोस्ट पाथ अलोगोरिथम द्वारा सेंट्रल routing टेबल बनाये जाने पर ये कुछ ऐसा बनेगा:

    • लीस्ट कोस्ट पाथ के आधार पर एक सेंट्रल routing मैट्रिक्स को बनाया गया जिसको नेटवर्क कण्ट्रोल सेंटर में स्टोर किया गया।
    • वो मैट्रिक्स नेटवर्क में उपस्थित सभी सोर्स-डेस्टिनेशन रूट के लिए रूट पर अगले नोड की पहचान को बताता है।
    • ड्राबैक: अगर नेटवर्क कण्ट्रोल सेंटर फ़ैल हो गया या उसने काम करना बंद क्र दिया तो सबकुछ ख़त्म हो जाएगा।  इसीलिए ये reliable यानी कि भरोसेमंद नही है।

    फिक्स्ड routing का दूसरा उदाहरण:

    ये नेटवर्क के अलग-अलग नोड में स्टोर हुए routing टेबल को आप उपर चित्र में देख सकते हैं। इसमें हर एक नोड के लिए routing टेबल को क्रिएट किया गया। इसको डिस्ट्रिब्यूटेड routing अल्गोरिथम कहते हैं।

    routing टेबल को क्रिएट करने के लिए या तो लीस्ट mean पाथ का प्रयोग होता है नही तो मिन-hop-रीच मेथड का। दो प्रसिद्ध पाथ अल्गोरिथम हैं:

    1. Dijkstra Algorithm
    2. Bellman Ford Algorithm

    फायदे:

    • ये सिंपल होता है।
    • अगर नेटवर्क reliable हो और लोड स्टेबल हो तो अच्छे से काम करता है।
    • वर्चुअल सर्किट और डाटाग्राम के लिए समान है।

    खामियां:

    • फ्लेक्सिबिलिटी में कमी होती है।
    • नेटवर्क congestion या फेलियर की स्थिति में कुछ एक्शन नही ले पाता।

    Flooding: रूटिंग स्ट्रेटेजी

    Flooding की कार्य-प्रणाली

    • किसी भी प्रकार के नेटवर्क इनफार्मेशन जैसे कि टोपोलॉजी, लोड कंडीशन, कास्ट, पाथ इत्यादि की जरूरत ही नहीं पड़ती।
    • नोड पर आने वाले सभी पैकेट्स को अगले नोड पर वैसे ही भेजा जाता है जैसे कि ये यहाँ पर आया था।
    • उपर वाले चित्र की बात करें तो:

    (1) पर आने वाले पैकेट को (2),(3) पर भेज दिया जाता है।

    उसे (2) से (6),(4) तक भेजा जाता है और (3) से उसे (4),(5) तक भेजा जाता है।

    फिर उसे (4) से (6),(5),(3) तक भेजा जाता है , और(6) से उसे (2),(4),(5) तक भेजा जाता है, (5) से फिर वो (4),(3) तक जाता है।

    Flooding के Characteristics–

    • सोर्स और डेस्टिनेशन के बीच सारे रास्तों पर प्रयास किया जाता है। अगर दोनों के बीच कोई रास्ता होगा तो पैकेट डिलीवर होगा ही।
    • सारे रूट जिस पर प्रयास किये जाते हैं उनमे से किसी एक को ही shortest के तौर पर चुना जाता है।
    • सभी नोड जो कि डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से कनेक्टेड हैं उन्हें विजिट किया जाता है।

    Flooding के limitation–

    • ये बहुत ज्यादा संख्या में डुप्लीकेट यानी कि नकली पैकेट्स generate करता है।
    • इसके लिए कोई अच्छा डंपिंग मैकेनिज्म को प्रयोग करना चाहिए।

    हॉप काउंट (hope count in hindi)

    • एक हॉप काउंटर पैकेट के हेडर में हो सकता है जिसे प्रत्येक हॉप के बाद तय किया जाता है। जब काउंटर 0 हो जाता है तो पैकेट को डिस्कार्ड कर दिया जाता है।
    • सबसे पहले सेंडर हॉप काउंटर को शुरू करता है. अगर इसका अनुमान सही है,ये सबनेट का पूरा चक्कर लगाना शुरू कर देता है।
    • जो भी पैकेट flooding के लिए जिम्मेदार हैं उनका ट्रैक रखता है और ये सीक्वेंस संख्या द्वारा किया जाता है।  ये उन्हें फिर से दुबारा भेजने से रोकता है।

    Selective Flooding: Routers सभी आने वाले पैकेट को जाने वाले लाइन पर बाहर नहीं भेजते, बल्कि उन्ही लाइन्स पर भेजते हैं जो डेस्टिनेशन की तरफ जाता है।

    Flooding के एडवांटेज:

    • बहुत ही ज्यादा रोबस्ट यानी मजबूत होता है, तत्काल या तुरंत सन्देश भेजने में सक्षम (जैसे कि मिलिट्री में इसका उपयोग किया जाता है।
    • वर्चुअल सर्किट में रूट सेट-अप करता है।
    • ये हमेशा सबसे छोटा संभव रास्ता ही चुनता है।
    • सभी नोड्स को ब्रॉडकास्ट मैसेज भेजता है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *