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    कंप्यूटर नेटवर्क में इंटर vlan routing in hindi

    विषय-सूचि

    inter VLAN routing क्या है?

    आपको ये पता होना चाहिए कि सभी vlan अपने अलग सबनेट पर होते हैं और स्विच मुख्यतः OSI के दूसरे लेवल पर काम करते है। इसीलिए वो लॉजिकल एड्रेस कि जांच नहीं करते।

    अलग-अलग vlan पर रहने वाले यूजर नोड्स डिफ़ॉल्ट रूप से आपस में संचार नहीं कर सकते। बहुत सारे केस में हमे अलग-अलग vlan पर रहने वाले users के बीच सम्बन्ध स्थापित करने की जरूरत पड़ती है।

    और ऐसा करने के लिए जिस प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है उसे ही इंटर vlan routing कहते हैं।

    इंटर vlan routing को हम एक राऊटर को स्थापित कर के विभिन्न vlan के बीच फॉरवर्ड ट्रैफिक का रास्ता निकालने का कार्य कह सकते हैं। vlan लॉजिकल रूप से स्विच को अलग-अलग सबनेट में सेगमेंट कर देता है।

    जब एक राऊटर को स्विच से कनेक्ट किया जाता है तब एक संचालक राऊटर को कॉन्फ़िगर कर के ट्रैफिक को अलग-अलग स्विच पर कॉन्फ़िगर हुए VLANs के बीच फॉरवर्ड कर सकता है।

    VLANs के यूजर नोड्स ट्रैफिक को राऊटर की तरफ फॉरवर्ड करते हैं और जो कि फिर उसी ट्रैफिक को डेस्टिनेशन नेटवर्क पर फॉरवर्ड करता है (इसके बावजूद कि स्विच पर vlan कॉन्फ़िगर किया हुआ है)।

    वीलेन रूटिंग की प्रक्रिया (vlan routing process in hindi)

    आप नीचे इस चित्र द्वारा समझ सकते हैं कि कैसे VLAN की प्रक्रिया काम करती है:PC B के लिए भेजी गई सूचना PC A से vlan20 टैग के साथ निकलती है और जब को R1 तक पहुँचती है तो राऊटर इस मैसेज के फॉर्मेट को बदल कर के vlan20 से vlan30 कर देता है। फिर ये इसे वापस स्विच को भेज देता है और स्विच इसे PC B के पास भज देता हैं, जहां इसे पहुंचना था।

    इंटर vlan routing को प्राप्त करने के ये दो निम्न तरीके होते हैं:

    1. ट्रेडिशनल इंटर vlan routing, और
    2. राऊटर on a स्टिक

    ट्रेडिशनल इंटर VLAN routing

    इंटर vlan routing के इस प्रकार में राऊटर को एक से ज्यादा इंटरफ़ेस का प्रयोग कर के स्विच से कनेक्ट कर दिया जाता है। हर vlan एक साथ एक।

    राऊटर के सारे इंटरफ़ेस को हर स्विच पर कॉन्फ़िगर हुए vlan के लिए डिफ़ॉल्ट गेटवे कि तरह कॉन्फ़िगर कर दिया जाता है।

    राऊटर को स्विच से कनेक्ट करने वाले पोर्ट्स को अपने-अपने vlan में एक्सेस मोड में कॉन्फ़िगर किया जाता है।

    जब कोई यूजर अलग vlan से जुड़े हुए यूजर को कोई सन्देश भेजता है तो मैसेज सबसे पहले उसके नोड से उस एक्सेस पोर्ट को जाता है जो राऊटर को vlan से जोड़ता है।

    जब राऊटर पैकेट को प्राप्त करता है तब वो पैकेट पर डेस्टिनेशन का IP एड्रेस जंचता है और vlan के डेस्टिनेशन के लिए एक्सेस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए सही नेटवर्क में फॉरवर्ड कर देता है। अब स्विच फ्रेम को डेस्टिनेशन नोड तक फॉरवर्ड कर सकता है क्योंकि राऊटर ने vlan सूचना को बदल कर सोर्स vlan से डेस्टिनेशन vlan कर दिया है।

    इंटर vlan routing के इस भाग में राऊटर के पास उतने ही LAN इंटरफ़ेस होने चाहिए जितना VLANs स्विच में कॉन्फ़िगर किया हुआ है। इसीलिए अगर स्विच के पास 10 VLANs हैं तो राऊटर के पास भी इतने ही इंटरफ़ेस होने चाहिए।

    अब इस चित्र को ध्यान से देखें:अगर vlan20 में PC A अगर कोई सूचना vlan30 में PC B को भेजना चाहता है तो उसके लिए निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करना पडेगा:

    • PC A सबसे पहले इस बात कि जांच करेगा कि डेस्टिनेशन का ip4v एड्रेस उसके vlan में है या नहीं और अगर नही है तो उसे ट्रैफिक को डिफ़ॉल्ट गेटवे कि तरफ फॉरवर्ड करना पड़ेगा जिसका ip एड्रेस R1 में fa0/0 है।
    • इसके बाद PC AS1 को R1 में Fa0/0 के फिजिकल एड्रेस को पता करने के लिए एक ARP निवेदन भेजेगा। जब राऊटर वापस रिप्लाई करेगा तब PC A फ्रेम को unicast के रूप में राऊटर को भेज सकता है। चूँकि AS1 के पास Fa0/0 मैक एड्रेस है, ये फ्रेम को सीधा R1 तक भेज सकता है।
    • जब राऊटर फ्रेम को प्राप्त करेगा तो ये अपने routing टेबल में देख कर डेस्टिनेशन के ip एड्रेस कि जांच करेगा जिसके बाद वो ये निर्णय लेगा कि डाटा को डेस्टिनेशन नोड की तरफ किस इंटरफ़ेस में भेजा जाये।
    • इसके बाद राऊटर बाहर डेस्टिनेशन vlan से कनेक्ट हुए इंटरफ़ेस को ARP निवेदन भेजेगा (इस केस में Fa0/1)। जब स्विच मैसेज को प्राप्त करेगा तो इसे अपने पोर्ट्स को भेज देगा जिसके बाद PC B अपने मैक एड्रेस के साथ रिप्लाई करेगा।
    • R1 इस सूचना का प्रयोग पैकेट को फ्रेम करने के लिए करेगा और अंत में इसे PC B को एक unicast फ्रेम के रूप में भेज देगा।

    Router on a Stick

    इंटर vlan routing के दूसरे प्रकार यानी राऊटर on a स्टिक में राऊटर को सिंगल इंटरफ़ेस का प्रयोग करते हुए स्विच से कनेक्ट किया जाता है।

    राऊटर से कनेक्ट हो रहे स्विचपोर्ट को ट्रंक लिंक की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद राऊटर पर के सिंगल इंटरफ़ेस को VLANs से जुड़े सारे ip एड्रेस से कॉन्फ़िगर कर दिया जाता है।

    ये इंटरफ़ेस सारे vlan से ट्रैफिक स्वीकार करता है और सोर्स पर आधारित डेस्टिनेशन नेटवर्क का और पैकेट पर के डेस्टिनेशन ip एड्रेस का फैसला करता है।

    आप नीचे इस चित्र में देख सकते हैं कि कैसे एक राऊटर को AS1 स्विच से एक सिंगल और फिजिकल नेटवर्क कनेक्शन का प्रयोग करते हुए कनेक्ट किया गया है :

    इस प्रकार के इंटर vlan routing में राऊटर को स्विच से कनेक्ट करने वाला इंटरफ़ेस ट्रंक लिंक होता है। राऊटर वो ट्रैफिक स्वीकार करता है जो ट्रंक लिंक में  स्विच पर के vlan से टैग किये हुए हैं।

    राऊटर पर के फिजिकल इंटरफ़ेस को छोटे-छोटे इंटरफ़ेस में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें हम सब-इंटरफ़ेस कहते हैं। जब राऊटर टैग किया हुआ ट्रैफिक प्राप्त करता है, वो उस ट्रैफिक को उस सब-इंटरफ़ेस पर फॉरवर्ड कर देता है जिसके पास डेस्टिनेशन का ip एड्रेस हो।

    सब-इंटरफ़ेस वास्तविक इंटरफ़ेस नहीं होते लेकिन वो LAN के फिजिकल interfaces का प्रयोग डाटा को विभिन्न vlan पर फॉरवर्ड करने के लिए करते हैं। सभी सब-इंटरफ़ेस को अलग-अलग ip एड्रेस से कॉन्फ़िगर किया जाता है उनके डिजाईन के हिसाब से vlan असाइन किया जाता है।

    VLANs का प्रयोग करते समय ये ध्यान रखें कि अधितर एरर जो आते हैं वो इनके सब-इंटरफ़ेस में मिस-कॉन्फ़िगरेशन यानी कि गलत कॉन्फ़िगरेशन के कारण आते हैं।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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