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    prime minister narendra modi and benjamin netanyahu

    भारत इजराइल, ईरान व सऊदी अरब का बहुत नजदीकी मित्र है लेकिन यह तीनो राष्ट्र एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। भारत ने गुटनिरपेक्षता का चयन किया था और शीट युद्ध के दौरान वह न पश्चिमी देशों के पाले में गया और न सोवियत संघ के गठबंधन का हाथ थामा। भारत ने उस गुट को अपनाया जो किसी पाले में नहीं था और इसे तीसरी दुनिया भी करार दिया गया।

    ईरान की सऊदी अरब और इजराइल से दुश्मनी की गवाह पूरी दुनिया है और ईरान व सऊदी अरब अपनी पारम्परिक दुश्मनी को बड़ी शिद्द्त से निभाते आ रहे हैं। मिडिल ईस्ट से ही भारत की ऊर्जा जरूरते पूरी होती है,भारत के लाखों लोग खाड़ी देशों में कार्यरत है, कारणवश खाड़ी देशों के साथ भारत को फूंक-फूंक का कदम उठाना पड़ता है।

    दुनिया में मध्य पूर्व वह क्षेत्र है जहां ताकतवर देशों की महफ़िल सी है। यहां रूस, अमेरिका के साथ ही चीन की भी सक्रियता काफी अधिक है। सऊदी अरब और ईरान की दुश्मनी की शुरुआत साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद शुरू हुई थी। इस दौरान ईरान ने सब्भी मुस्लिम देशों से राजशाही को हटाकर इस्लामिक धर्म का शासन लागू करने का आग्रह किया था।

    ईरानी क्रांति से सऊदी सल्तनत में भय का माहौल उत्पन्न हो गया कि वहां भी सुन्नी समुदाय क्रांति का ऐलान न कर दे। इसके बाद दोनों राष्ट्रों की दुश्मनी पक्की हो गयी। मौजूदा समय में यमन में सऊदी ने ईरान समर्थित हुथी विद्रोहियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इसी तरह सीरिया में भी दोनों राष्ट्र दो गुटों में बंट रखे हैं। सऊदी अरब को गैर बर्दाश्तन है कि उसके पडोसी राष्ट्र ईरान की छत्रछाया में आये।

    बहरहाल, भारत का दोनों ही राष्ट्रों के साथ फायदा है, और जाहिर है इससे नई दिल्ली कई बार असमंजस की स्थिति से भी गुजरी होगी। ईरान और सऊदी के टकराव से भारत की चिंताओं में इजाफा हो जाता है, क्योंकि भारत का दोनों राष्ट्रों के साथ व्यापार जारी है।

    यदि ईरान और सऊदी के बीच युद्ध होता है तो भारत को अपने नागरिकों को बाहर निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। भारत के नागरिकों की संख्या काफी अधिक होगी। खाड़ी युद्ध के दौरान भारत ने कुवैत से तक़रीबन एक लाख भारतीयों को बचाया था। इस स्थिति में गैस निर्यात को भी झटका लगेगा। सऊदी से रोजाना भारत साथ लाख 50 हज़ार बैरल तेल का आयत करता है।

    साल 2016 में भारत ने ईरान और अफगानिस्तान के साथ मिलाकर चाहबार बंदरगाह को विकसित करने का बीड़ा उठाया था ताकि अफगानिस्तान तक पंहुच सके। सऊदी और अमेरिकी दबाव के कारण भारत खुलकर ईरान का समर्थन करते से कतराता है, हालाँकि बावजूद इसके ईरान व सऊदी दोनों ही भारत के नजदीकी मित्र है।

    सऊदी और ईरान की दुश्मनी के मध्य भारत ने इजराइल के साथ भी अपनी यारी को मज़बूत किया। बीते दशकों में भारत ऐसा करने से बचता था क्योंकि इससे  रह रहे नागरिकों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती थी। अलबत्ता, मौज़ूदा समय में। हालात काफी बदल गए हैं।

    मौजूदा वक्त में सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और कुवैत को इजराइल-फिलिस्तीन मसले को सुलझाने से अधिक दिलचस्पी ईरान को मात देने में हैं। बीते वर्ष इजराइल की यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन और इजराइल के मध्य जारी गतिरोध का जिक्र तक नहीं किया था।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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