अमृतसर हमले की जांच में हुए खुलासे में पता चला कि इस हमले की साजिश जर्मनी और कनाडा के खालिस्तानी समर्थक समूहों के सहयोग से लाहौर में रची गयी थी। नई दिल्ली के वरिष्ठ रक्षा अधिकारी के मुताबिक पंजाब में चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए इस साजिश को मुक्कमल किया गया था लेकिन शायद यह विफल रही है।
अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इस हमले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जिसके ताल्लुक पाकिस्तान के आतंकी समूह से हैं। इस हमले में आतंकी ने पाकिस्तान से भेजे हथियारों का इस्तेमाल किया था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के नेतृत्व में आला अधिकारियों की बैठक हुई थी। साल 1980-90 में बढ़े सिख चरमपंथ को अजित डोभाल ने ही संभाला था।
अमृतसर के राजसानी में निरंकारी भवन में हुए हमले की जांच करते हुए पाया गया कि इस हमले का मकसद बॉर्डर पर अस्थिरता पैदा करना था, इस हमले में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। इस बैठक में गृह सचिव राजीव गौबा, पंजाब पुलिस के सचिव सुरेश अरोड़ा और ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख मौजूद थे। पाकिस्तान का आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद भारत में सक्रिय होकर आगामी चुनावों से पूर्व हमले करने की फ़िराक में है।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि हमले में इस्तेमाल किये गए ग्रेनेड की जांच में पता चला कि इस ग्रेनेड की पिन का निर्माण पाकिस्तान में हुआ है, और इस हमले का संकेत सीधा पाकिस्तान की ओर है। उन्होंने कहा कि इस हमले से राष्ट्र सुरक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि पंजाब में ऐसी वारदातें होती है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि चरमपंथ को दोबारा पंजाब में पैर पसारने का मौका दिया जायेगा या स्थनीय जनता अलगाववादियों का समर्थन करेगी।
भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी ने इस नेटवर्क के गठन में अल कायदा के कमांडर जाकिर मूसा भी हो सकता है, जो मोहाली में साल 2010 से 2013 तक अध्य्यन कर रहा था। रक्षा सूत्रों के मुताबिक इस हमले में खालिस्तान समर्थक सिखों की भूमिका थी। सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक इस हमले के लिए ग्रेनेड और हथियारों का इंतज़ाम मूसा नेटवर्क या जैश-ए-मोहम्मद ने बॉर्डर पार से किया था।