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    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल मौत की सजा पाने वाले कैदियों सहित कैदियों को न्यूनतम 14 साल की जेल की सजा काटने से पहले ही माफ कर सकते हैं।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और ए.एस. बोपन्ना ने एक फैसले में कहा वास्तव में, क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति दंड प्रक्रिया संहिता – धारा 433 ए – में एक प्रावधान को ओवरराइड करती है, जिसमें कहा गया है कि कैदी की सजा केवल 14 साल की जेल के बाद ही माफ़ जा सकती है।

    अदालत ने फैसले में कि, “संहिता की धारा 433ए संविधान के अनुच्छेद 72 या 161 के तहत क्षमादान देने के लिए राष्ट्रपति/राज्यपाल को प्रदत्त संवैधानिक शक्ति को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं कर सकती है और न ही प्रभावित करती है। अगर कैदी ने 14 साल या उससे अधिक वास्तविक कारावास की सजा नहीं ली है तो भी राज्यपाल के पास क्षमा प्रदान करने की शक्ति है। धारा 433 ए के तहत लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ऐसी शक्ति संप्रभु की शक्ति का प्रयोग करती है, हालांकि राज्यपाल राज्य सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है।” अदालत ने कहा कि वास्तव में अनुच्छेद 161 के तहत एक कैदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जाती है, न कि राज्यपाल अपने दम पर यह फैसला लेता है।

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने फैसले में कहा कि, “राजीव गांधी की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले में छूट की शक्ति पर फैसला उपयुक्त सरकार की सलाह राज्य के प्रमुख को बांधती है।”

    अदालत ने कहा कि, “संशोधन और रिहाई की कार्रवाई इस प्रकार एक सरकारी निर्णय के अनुसार हो सकती है और राज्यपाल की मंजूरी के बिना भी आदेश जारी किया जा सकता है। हालाँकि, व्यवसाय के नियमों के तहत और संवैधानिक शिष्टाचार के रूप में, सरकार राज्यपाल की मंजूरी ले सकता है अगर ऐसी रिहाई संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत है।” पीठ हरियाणा में रिहाई की छूट नीतियों की व्यवहार्यता पर विचार कर रही थी।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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