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    नागरिकता विधेयक का हवाले देते हुए भूपेन हजारिका को मिलने वाले भारत रत्न को उनके बेटे ने स्वीकार करने से किया मना

    पूर्वोत्तर भारत से नागरिकता संसोधन विधेयक को बहुत आलोचना मिल रही है और केंद्र के लिए हाल ही में सबसे बड़ा झटका लगा है संगीत सम्राट दिवंगत भूपेन हज़ारिका के बेटे से जिन्होंने क्षेत्र में चल रही हालत का हवाला देते हुए अपने पिता को मिलने वाले सम्मान को स्वीकार करने से मना कर दिया है।

    टाइम्स नाउ से बात करते हुए उन्होंने इस विवादास्पद विधेयक के ऊपर अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि उनके पिता भी यही महसूस करते। उन्होंने आगे ये भी स्पष्ट किया कि उन्होंने भारत रत्न को नहीं बल्कि इस सम्मान को देने का वक़्त सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जरिया बताया।

    उन्होंने फ़ोन पर कहा-“इस वक़्त जब पूर्वोत्तर के बहुमत लोग इस विधेयक को रद्द करवाना चाहते हैं, पूर्वोत्तर के आइकॉन को भारत रत्न से सम्मानित करना सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जरिया है।”

    तेज़ हज़ारिका का पूरा बयान:

    डॉक्टर भूपेन हज़ारिका का बेटा होने के नाते-जो पूर्वोत्तर के लोगों के लिए सबसे मशहूर और सांस्कृतिक और सामाजिक-राजनीतिक व्यक्तित्व में से एक, मुझे लगता है कि मेरे पिता का नाम सार्वजनिक तौर पर लिया जा रहा है जबकि योजना इस दर्दनाक अलोकप्रिय विधेयक को पारित कराने की है जो वास्तव में उनके प्रलेखित स्थिति को कम कर रहा है। भूपेन दिल से जो चाहते थे, ये सब कुछ उसका उल्टा हो रहा है।

    उनके प्रशंसकों के लिए-पूर्वोत्तर के लोगों और भारत की सभी स्वदेशी आबादी सहित भारत की महान विविधता के लिए, वो कभी इच्छा और लाभ के खिलाफ किसी कानून को आगे बढ़ाकर बहुसंख्यक को फायदा नहीं पहुंचाते जो इस तरह से गैर-संवैधानिक, गैर-लोकतांत्रिक और गैर-भारतीय है।

    विधेयक किसी भी रूप में इस वक्त या भविष्य में दुखद होगा। इससे ना केवल लोगों का जीवन, उनकी भाषा, पहचान और क्षेत्र में सत्ता का संतुलन प्रभावित होगा बल्कि इससे मेरे पिता की स्थिति भी कमतर होगी। एक लोकतांत्रिक गणराज्य में सांप्रदायिक सद्भाव और अखंडता को झटका लगेगा।

    भारत रत्न और बड़े बड़े पुल, देशवासियों के बीच शांति और समृद्धि का प्रचार नहीं करेंगे। केवल नेतृत्व के तौर पर, लोकप्रिय कानून और दूरदर्शिता करेगी। काफी मीडिया पत्रकार मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या मैं अपने पिता का भारत रत्न स्वीकार करूँगा या नहीं। मैं सिर्फ दो बाते कहना चाहूँगा-पहला कि मुझे निमंत्रण मिला ही नहीं तो अस्वीकार करने के लिए कुछ है ही नहीं और दूसरा कि केंद्र के ऐसे वक़्त में सम्मान देना और देश भर में इसे अहमियत मिलना, कुछ नहीं बस सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जरिया है।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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