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    संयुक्त राष्ट्र की जारी रिपोर्ट के मुताबिक बीते वर्ष चौथा सबसे गर्म साल था और इस स्तर से सरकारों को यह धरती के लिए खतरनाक लग रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अलावा नासा और अन्य अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं नें भी इसकी पुष्टि की है।

    साल 2018 में कैलोफोर्निया और ग्रीस में जंगलों में आग लगी, दक्षिण अफ्रीका में सूखा पड़ा और केरल में भयंकर बाढ़ आयी। मानवनिर्मित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, अधिकतर जीवाश्म ईंधन को जलाने से अधिक गर्म होता है।

    संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम संगठन के मुताबिक वैश्विक औसत तापमान 1.0 डिग्री सेल्शियस हैं। यह अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और यूरोपीय मौसम एजेंसियों के आंकड़ो का आधार पा कहा गया है। डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेट्री तालास के मुताबिक बीते 20 वर्षों में 22 सबसे गर्म साल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए लगभग 200 सरकारों ने साल 2015 में हुए पेरिस समझौते को अपनाया था और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बंद करने की प्रतिज्ञा ली थी।

    नासा के निदेशक गाविन स्चमीद ने कहा कि लांग टर्म ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव महसूस होने लगे हैं। तटीय बाढ़, गरम लहरे, तीव्र वर्षा और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव देखे जा सकते हैं।

    बीते वर्ष अमेरिका ने 14 मौसम और जलवायु आपदाओं के सामना किया था। इसमे हर एक मे एक अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है। इस वर्ष की शुरुआत भी भीषण गर्मी के साथ हुई है। इसमे ऑस्ट्रेलिया में जनवरी में सबसे अधिक तापमान भी दर्ज किया गया है। अमेरिका ने आर्कटिक से आने वाली सर्द हवाओं के कारण कंपकपाने वाली ठंड का सामना किया है।

    डब्ल्यूएमओ के आंकड़ों को जुटाने में योगदान देने वाले ब्रिटिश विभाग ने कहा कि पूर्व औद्योगिक समय से तापमान में 1.5 डिग्री सेल्शियस का इजाफा हो सकता है। विभाग ने कहा कि अगले पांच वर्षों में 1.5 डिग्री से कम तापमान होने का चांस 10 में से एक हैं। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नही कि पेरिस संधि पूरा हो चुका है लेकिन यह चिंताजनक संकेत हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 30 वर्षों के औसत से 1.5 डिग्री सेल्शियस तापमान का का लक्ष्य दिया था।

    संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि विश्व इस वक्त साल 2021 तक 3 या उससे अधिक डिग्री सेल्शियस तापमान बढ़ने की तरफ अग्रसर है। साल 1992 में हुए यूएन समझौते के की प्रतिक्रिया पेरिस समझौता है। जिसके तहत सभी सरकार मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन को खतरनाक स्तर तक पंहुचने से रोकने के लिए रज़ामंद हुई थी।

    यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व का तापमान साल 2030 या 2052 तक 1.5 डिग्री सेल्शियस को पार कर सकता है।  इनके कारण सूखा, बाढ़, ताकतवर तूफान और समुद्री स्तर मव वृद्धि जैसी समस्याएं हो सकती है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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