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    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह देश भर की जेलों में अपने जमानत आदेशों के सुरक्षित डिजिटल प्रसारण के लिए एक प्रणाली लागू करेगा, क्योंकि कई बार जमानत मिलने के बाद अधिकारी कैदियों को रिहा करने के लिए जमानत के आदेशों की प्रतीक्षा करते हैं। देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट जमानत के आदेशों को सीधे जेलों तक पहुंचाने के लिए एक प्रणाली विकसित करने के बारे में सोच रहा है, ताकि जेल अधिकारी आदेश की प्रमाणित प्रति का इंतजार कर रहे कैदियों की रिहाई में देरी न करें।

    सीजेआई एनवी रमना ने कहा- ”हम प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) के उपयोग के समय में हैं। हम एएसटीईआर: आस्क एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नामक एक योजना पर विचार कर रहे हैं। इसका मतलब संबंधित जेल अधिकारियों को बिना प्रतीक्षा किए सभी आदेशों को संप्रेषित करना है।”

    मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के महासचिव को इस योजना पर एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसका पालन किया जा सकता है और साथ ही कहा है कि इसे एक महीने में लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने सभी राज्यों से देश भर की जेलों में इंटरनेट कनेक्शन की उपलब्धता पर प्रतिक्रिया देने को कहा, क्योंकि इस सुविधा के बिना जेलों में ऐसे आदेशों को नहीं भेजा जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने योजना को लागू करने में सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को न्याय मित्र नियुक्त किया है।

    हाल ही में 13 जुलाई को दोषियों को जमानत मिलने पर रिहाई में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 दोषियों को तत्काल अंतरिम जमानत दी थी। आदेश 8 जुलाई को पारित किया गया था, लेकिन दोषियों को जेल से बाहर नहीं आ पाए, क्योंकि जेल अधिकारी कह रहे हैं कि उन्हें आदेश की प्रमाणित प्रति डाक से नहीं मिली है। अपराध करने के समय किशोर होने के बावजूद दोषियों ने 14 से 20 साल जेल में बिताए थे।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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