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    सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि दिन-प्रतिदिन दहेज हत्या जैसा खतरा बढ़ रहा है, लेकिन साथ ही कहा कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि ऐसे मामले में पति के उन रिश्तेदारों को फंसा दिया जाता है जिनका मामले में कोई भूमिका नहीं होती है। ऐसे मामले में अदालत को सजग रहने की जरूरत है। दहेज हत्या मामले में आरोपियों को दोषी करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।

    दहेज हत्या के मामले में यह महत्वपूर्ण फैसला प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने दहेज कानून में आरोपित का ट्रायल करते वक्त किन बातों का ध्यान रखा जाए इसके दिशानिर्देश जारी किए हैं। हरियाणा के सतवीर ¨सह एवं अन्य के मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। इस केस में जुलाई, 1994 में शादी हुई थी और एक साल बाद जुलाई, 1995 में महिला की जलने से मौत हो गई थी जिस पर पति और ससुराल वालों पर हत्या का मुकदमा चला और 1997 में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को सजा सुना दी। हाई कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद अभियुक्त पति व अन्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज हत्या की धारा 304बी के तहत अभियुक्तों को दी गई सजा को सही ठहराया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले में दखल नहीं देगा। हालांकि उसने अभियुक्तों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोपों से बरी कर दिया।

    शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में हालांकि कहा है कि वह दहेज हत्या के खतरों से भलीभांति अवगत है। दहेज हत्या की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कभी-कभी पति के परिवार के उन सदस्यों को फंसाया जाता है जिनकी अपराध में कोई सक्रिय भूमिका नहीं होती है और बल्कि वे दूर भी रहते हैं।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे में अदालतों को सावधानी वाला रवैया अपनाने की जरूरत है।

    शीर्ष अदालत ने हालांकि यह भी कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दहेज हत्या मामलों का परीक्षण करते समय दुल्हन को जलाने व दहेज की मांग जैसी सामाजिक बुराई को रोकने के लिए विधायी मंशा को ध्यान में रखा जाना चाहिए। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले के परीक्षण को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

    अभियोजन पक्ष को यह बताना होता है कि मरने से पहले मृतका को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। लेकिन ये चिंता का विषय है कि जब ट्रायल कोर्ट अभियुक्त का बयान दर्ज करता है तो वह बहुत ही कैजुअल तरीके से करता है। जबकि आरोपी का धारा-313 के तहत दर्ज होने वाले बयान सिर्फ औपचारिक नहीं होना चाहिए। यह धारा-313 आरोपी को इस बात का अधिकार देता है कि उसके खिलाफ जो भी तथ्य हैं उसका वह स्पष्टीकरण दे पाए। ऐसे में ये अदालत का दायित्व बनता है कि वह देखे कि आरोपी को पूरा मौका मिले और उससे निष्पक्ष तरीके से सवाल किया जा सके।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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