Thu. Apr 25th, 2024
    संजय गांधी अपनी मां इंदिरा के साथ

    कहतें है लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी, उस दौरान संजय गांधी संविधानेत्तर सत्ता केंद्र की तहर उभरे। संजय के आगे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को भी झुकना पड़ा। वास्तविकता यह है कि संजय गांधी संविधान और लोकतंत्र में ज्यादा यकीन नहीं रखते थे। कुछ जानकारों का मानना है कि यदि संजय गांधी जीवित होते तो भारत का राजनीतिक तंत्र ही बदल डालते।

    संजय गांधी ने कांग्रेस या एनएसयूआई के नाम पर ‘लुंपेन’ युवाओं की एक फौज एकत्र की और ऐसे युवाओं को ज्यादा बढ़ावा दिया जिन्हें समाज में सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता था। जिसका परिणाम यह निकला कि संजय गांधी के दौर में जहां भी कांग्रेस का सम्मेलन होता वहां अराजकता, मारपीट, रेलगाड़ियों में महिलाओं की बेइज्जती, स्टेशनों पर लूटपाट की खबरें प्रमुखता से छाई रहती थीं। लेकिन संजय गांधी की मौत के साथ ही ये सारी बातें एक साथ दफन हो गई। संजय गांधी की मौत भारतीय जनमानस के बीच एक प्रश्नचिन्ह छोड़ गया। संजय गांधी की मौत विमान दुर्घटना और षड्यंत्र के पेंच में आज तक फंसी हुई है।

    संजय गांधी के राजनीतिक हस्तक्षेप

    विमान हादसे से ठीक एक माह पहले संजय गांधी को कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया था। इसके पहले संजय गांधी मात्र इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में किसी कैबिनेट मिनि​स्टर अथवा बड़े प्रशासनिक अधिकारी पर अपना प्रभाव जमाने में पूरी तरह सक्षम दिखे।

    संजय गांधी का रसूख

    बतौर उदाहरण सूचना प्रसारण विभाग के हेड इंद्र कुमार गुजराल को केवल इसलिए मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि उन्होंने संजय के आदेशों को मानने से इन्कार कर दिया था। यही नहीं प्रख्यात गायक किशोर कुमार के गानों को आॅल इंडिया रेडियो पर बजाने से केवल प्रतिबंधित कर दिया गया, उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस के एक कार्यक्रम में गाने से मना कर दिया था।

    मारूति कार निर्माण, सरकार नहीं संजय गांधी की निजी सोच

    जून 1971 में मारूति मोटर्स की स्थापना की जाती है, संजय गांधी इसकी कंपनी मैनेजिंग डायरेक्टर बने। ऐसा सिर्फ इ​सलिए संभव हो सकता है, क्योंकि 1971 में इंदिरा सरकार की कैबिनेट आम लोगों के लिए कार बनाने का निर्णय कंपनी को दे दिया।

    इस बात को सभी जानते हैं कि इससे पहले कार निर्माण को लेकर संजय गांधी के पास कोई अनुभव नहीं था। संजय गांधी के इस फैसले का विरोध विपक्षी पार्टियों ने जमकर किया। संजय गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए।

    मारूति कंपनी में संजय गांधी

    इमरजेंसी के दौरान कार विवाद को लेकर एक नया जुमला लोगों ने रटना शुरू कर दिया था…

    संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी।
    बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है।

    अंत में 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तब ‘मारुती लिमिटेड’ को बंद कर दिया गया। हालांकि मारूति प्रोजेक्ट डूब ही चुका था, लेकिन संजय गांधी की मौत के एक साल बाद 1980 में इंदिरा गांधी के आदेश पर केंद्र सरकार ने मारूति लिमिटेड को बचा लिया। साल 1980 में वी. कृष्णामूर्ति के संघर्षों के चलते मारूति उद्योग लिमिटेड की स्थापना की गई, जापानी कंपनी सुजुकी ने भी भारत में कार बनाने में अपनी रूचि दिखाई। फलस्वरूप भारत की पहली सामान्य कार मारूति 800 सड़कों पर फर्राटे के साथ दौड़ने लगी।

    पुरूष नसबंदी कार्यक्रम

    कहते हैं इंदिरा के इस फैसले के पीछे संजय गांधी का हाथ था। बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए सितंबर 1976 में देश में पुरूष नसबंदी कार्यक्रम चलाया गया। इस कार्यक्रम के तहत लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती थी। कुछ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, नसबंदी कार्यक्रम का आयोजन सरकार ने नहीं बल्कि संजय गांधी ने किया था।

    इस नसबंदी कार्यक्रम का जनता ने जमकर विरोध किया, लोग अब ये मानने लगे कि इंदिरा सरकार संजय गांधी के इशारों पर ही चलती है।  नसबंदी कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जनता ने यह में यह नारा काफी लोकप्रिय हुआ था…

    जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में
    द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में

    इसके अलावा यह भी नारा लगा- इंदिरा हटाओ, इंद्री बचाओ।

    संजय, इंदिरा गांधी और राहुल

    झोपड़ियों पर चले बुलडोजर, 150 की मौत, 70,000 लोग बेघर

    कहते हैं एक बार संजय गांधी तुर्कमान गेट देखने गए लेकिन वहां उन्हें पुरानी जामा मस्जिद नहीं दिखाई दी। इससे संजय को काफी गुस्सा आया तुर्कमान गेट के पास से झोपड़ियों को हटाने का ​आदेश दिया गया। 13 अप्रैल 1976 को संजय गांधी के आदेश पर दिल्ली विकास विभाग के चेयरमैन जगमोहन ने इन झोपड़ियों पर बुलडोजर चलवा दिया। इस विरोध-प्रदर्शन के दौरान करीब 150 लोग मारे गए तथा 70000 लोग बेघर हो गए।

    इमरजेंसी घोषणा में संजय का प्रभाव

    विपक्षी पार्टियां संजय को इमरजेंसी का खलनायक बताया। इमरजेंसी के दौरान पत्रकारों को धमकाना संजय के लिए आम बात बन चुकी थी। जब कोर्ट के खिलाफ जाकर इंदिरा ने 25 जून 1975 को इमरेजेंसी की घोषणा की उस वक्त कमोबेश संजय गांधी अपनी मां के विशेष सलाहकार साबित हो चुके थे। इस दौरान छुटभैया नेताओं की औकात ही क्या, जयप्रकाश जैसे लोकप्रिय नेता तक को गिरफ्तार कर लिया गया था।

    संजय और इंदिरा गांधी

    मार्क टुल्ली के शब्दों में- संजय गांधी का राजनीतिक रूप से अनुभवी ना होना, उन्हें अपनी मां की ताकतों और अधिकारों के इस्तेमाल करने से नहीं रोकता, स्वयं इंदिरा गांधी ने भी संजय को बिनी किसी पद के कैबिनेट में शामिल कर रखा था। जनता में यह चर्चा आमबात हो चुकी थी कि इंदिरा सरकार प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं वरन प्रधानमंत्री आवास से चलाई जा रही है। संजय गांधी ने कांग्रेस में ज्यादातर अपने लोगों और युवाओं को भर्ती कर रखा था, और जो भी नेता इंदिरा गांधी की बात नहीं मानता उसे पार्टी से बाहर निकाल दिया जाता था।

    इंदिरा गांधी को थप्पड़ मारने वाली बात

    इमरजेंसी के दिनों में अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट में एक खबर छपी। खबर यह थी कि ए​क डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी को 6 थप्पड़ मारे थे। दरअसल पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार लुईस एम सिमंस द वाशिंगठन पोस्ट संवाददाता के रूप में दिल्ली में मौजूद थे।

    लुईस कहना है कि आपातकाल से एक दिन पहले एक सज्जन ने मुझे घटना की जानकारी दी। वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर अपनी किताब द इमरजेंसी : अ पर्सनल हिस्ट्री में लिखते हैं कि यह खबर चारो तरफ तेजी से फैली थी। लेकिन सेंसरशिप के चलते किसी भी भारतीय अखबार इस बात को उजागर करने की हिम्मत नहीं दिखाई। थप्पड़ वाली घटना का जिक्र करते ही लुईस को तुरंत देश छोड़ने का आदेश दिया गया था। इस मामले पर लुईस लिखते हैं, इस बात से सबक मिलता है कि किसी भी संवेदनशील खबर को लिखते समय अपना नाम कभी मत लिखो।

    संजय की शव यात्रा

    संजय की मौत से बड़ा असम का मुद्दा

    रानी सिंह ने अपनी किताब ‘सोनिया गाँधी: एन एक्सट्राऑर्डिनरी लाइफ़’ में इस बात का खुलासा किया है कि विमान हादसे के बाद जिस वक्त संजय गांधी का शव राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रखा हुआ था, उस वक्त इंदिरा भी वहां विद्यमान थीं। इंदिरा गांधी के साथ अटल विहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर भी मौजूद थे।

    इंदिरा गांधी ने उस दौरान काला चश्मा लगा रखा था। पूपुल जयकर ने अपनी किताब ‘इंदिरा गाँधी’ में लिखती है कि इंदिरा को इस मौके पर अकेले खड़े देखकर वाजपेयी ने आगे बढ़कर कहा इंदिरा जी इस कठिन मौके पर आपको साहस से काम लेना, इंदिरा ने वाजपेयी को घूरा। वाजपेयी को लगा यह बात कहकर कोई बड़ी गलती कर दी।

    इतने में इंदिरा चंद्रशेखर की तरफ मुड़ती हैं और कोने में ले जाकर बोलीं, मैं कई दिनों से आप से असम मुद्दे पर बात करना चाह रही थी, वहां के हालात काफी गंभीर हैं। चंद्रशेखर ने जैसे ही कहा इस मुद्दे पर हम बाद में बात करेंगे, इंदिरा ने बोली नहीं-नहीं ये मामला बहुत महत्पूर्ण है। चंद्रशेखर भी अपने जीते जी यह बात नहीं समझ पाए कि एक बेटे का शव बगल में पड़ा हुआ है और मां असम मुद्दे के बारे में बात कर रही है।

    वीपी सिंह को बैरंग लौटाया

    संजय गांधी की मौत के दौरान यूपी के चीफ मिनिस्टर वीपी सिंह भी इंदिरा गांधी के पीछे-पीछे राम मनोहर लोहिया अस्पताल तक गए थे। लेकिन सिंह को देखते ही इंदिरा गांधी ने कहा आप तुरंत लखनऊ लौटिए, क्योंकि वहां पर इससे बड़े मसले हल करने को पड़े हैं। संजय के क्षत-विक्षत शव को ठीक करने तक डॉक्टरों के साथ उसी कमरे में इंदिरा गांधी खड़ी रहीं।

    एक और अफवाह

    जब डाक्टर संजय गांधी के मृतक शरीर को पैच कर रहे थे, उस दौरान इंदिरा उस जगह गईं जहां संजय का विमान दुघर्टनाग्रस्त हुआ था। बाद में अफवाह फैली की इंदिरा संजय की घड़ी और चाबियों का गुच्छा ढूढ़ने गई थीं। लेकिन यह बात सबको पता थी कि अब इंदिरा को संजय के निजी सामान में कोई रूचि नहीं रह गई थी।

    विमान का मलबा

    मानो कुछ हुआ ही नहीं…

    इंदिरा की निगरानी में ही संजय के क्षतविक्षत शव को अकबर रोड लाया गया, संजय के अंतिम संस्कार तक इंदिरा गांधी मेनका को ढांढस बंधाती नजर आईं। अंतिम संस्कार के वक्त जैसे ही राजीव ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, इंदिरा ने इशारा किया और संजय के शव के उपर से लकड़ियों को हटाकर संजय के शरीर से लिपटे तिरंगे झंडे को हटाया गया, इसके बाद अंतिम संस्कार किया गया।

    संजय की मौत के चार दिन बाद 27 जून को इंदिरा गांधी साउथ ब्लॉक के अपने कार्यालय में फाइलों पर हस्ताक्षर करती नजर आईं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। राज थापर ने अपनी किताब ‘ऑल दीज़ इयर्स’ में लिखते हैं- संजय की मौत पर देश गमगीन था लेकिन भारत की जनता ने एक अजीब किस्म की राहत महसूस की।

    आप को बता दें कि 23 जून 1980 को संजय गांधी ने कैप्टेन सुभाष सेक्सेना के साथ उड़ान भरी थी, लेकिन उड़ान के कुछ देर बाद ही विमान के इंजन ने काम करना बंद कर दिया और वह दिल्ली के अशोका होटल के पास क्रैश होकर कई टुकड़ों में गिर गया। संजय गांधी से जुड़ी उपरोक्त बातें उनके मौत और जिंदगी के बीच एक सवालिया निशां खड़ा करती हैं।