Thu. Apr 25th, 2024

    हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार का शोर आज शाम को थम जाएगा। हिमाचल प्रदेश के सत्ताधारी दल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा हर मुमकिन कोशिश करती नजर आ रही है। भाजपा के सभी शीर्ष नेता लगातार हिमाचल प्रदेश का दौरा कर रहे हैं और सियासी माहौल भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में भाजपा शासित उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द सिंह रावत ने सोमवार को हिमाचल प्रदेश का दौरा किया। भाजपा के स्टार प्रचारक त्रिवेन्द सिंह रावत का कार्यक्रम ऐन वक्त पर जोड़ा गया क्योंकि मौसम खराब होने की वजह से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हिमाचल नहीं आ सके थे। ऐसे में भाजपा आलाकमान ने अमित शाह की जगह पड़ोसी पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द सिंह रावत को हिमाचल भेजने का फैसला किया।

    रावत ने किया रजवाड़ा शाही उखाड़ फेंकने का आह्वान

    उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द सिंह रावत अपने सम्बोधन के दौरान आक्रामक अंदाज में नजर आए। रावत ने हिमाचल प्रदेश की जनता से रजवाड़ा शाही को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। रावत ने कहा कि 2014 लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने रानी को हराकर सत्ता से उखाड़ फेंका था। अब मैं हिमाचल प्रदेश की जनता से कहना चाहूँगा कि आगामी विधानसभा चुनावों में राजा को हराकर हिमाचल में रजवाड़ा शाही का अंत करें। उत्तराखण्ड में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है और हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा को 60 सीटों पर जीत हाथ लगेगी। बता दें कि पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दत्तनगर और आनी में चुनावी रैलियों को सम्बोधित करने वाले थे। पर खराब मौसम के चलते वह हिमाचल प्रदेश नहीं आ सके। ऐन वक्त पर रावत को दत्तनगर की रैली में भेजा गया।

    उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द सिंह रावत ने अपने सम्बोधन में हिमाचल प्रदेश की सत्ताधारी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा और भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल की तारीफों के पुल बाँधे। रावत ने कहा कि अपने चुनावी घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार मुक्त शासन की बात करने वाली कांग्रेस के मुख्यमंत्री स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। जनता से झूठे वादें करने से पहले कांग्रेस को अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए था। अपने भाषण में रावत ने मुख्यतः वीरभद्र सिंह, कांग्रेस और भ्रष्टाचार को निशाने पर रखा। बता दें कि त्रिवेन्द सिंह रावत का नाम भाजपा द्वारा जारी की गई स्टार प्रचारकों की सूची में था पर अब तक वह चुनावी प्रचार अभियान में नहीं उतरे थे। भाजपा ने रावत को हिमाचल प्रदेश के चुनावी प्रचार में उतारकर ‘किंग मेकर’ राजपूत समाज को साधने का प्रयास किया है।

    भाजपा ने साधा हिमाचल का जातीय समीकरण

    हिमाचल प्रदेश की प्रमुख विपक्षी दल भाजपा सत्ता में आने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सियासी रणनीति का हिस्सा है। हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज ‘किंग मेकर’ है और उसके समर्थन बिना हिमाचल की सत्ता तक पहुँचना नामुमकिन है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल को आगे करने जातीय और सियासी समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। हिमाचल प्रदेश में धूमल की अच्छी-खासी लोकप्रियता है और उनके पूर्ववर्ती कार्यकालों के दौरान राज्य में सड़क निर्माण, पेयजल सुविधा जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ था। इस वजह से उन्हें ‘सड़क वाला चीफ मिनिस्टर’ भी कहा जाता है।

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    भाजपा ने साधा हिमाचल का जातीय समीकरण

    हिमाचल प्रदेश में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से 9 दिन पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल का नाम आगे कर सबको हतप्रभ कर दिया था। हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। इसी वजह से भाजपा ने सियासी समीकरणों में फिट बैठ रहे धूमल पर दांव खेला है।

    सियासी रण में अकेले पड़े वीरभद्र सिंह

    हिमाचल प्रदेश के सियासी रण में दिग्गज कांग्रेसी वीरभद्र सिंह अकेले पड़ गए हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अजेय रहने वाले वीरभद्र सिंह पहले ही कह चुके हैं कि यह उनके राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव होगा। इसके बावजूद भी उन्हें कांग्रेस आलाकमान से कोई खास सहयोग नहीं मिल रहा है और वह अभिमन्यु की तरह अकेले ही भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने की कोशिश कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस इकाई और आलाकमान के बीच उभरे मतभेद स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले पा रही हैं वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी एक महीने बाद चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में खानापूर्ति करने हिमाचल पहुँचे थे। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को बचाने का पूरा दारोमदार अब वीरभद्र सिंह के कन्धों पर हैं।

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    सियासी रण में अकेले पड़े वीरभद्र सिंह

    हिमाचल प्रदेश की जनता ने हमेशा ही ‘राजा साहब’ को पलकों पर बिठाया है पर इस बार सियासी समीकरण कांग्रेस के खिलाफ जा रहे हैं। वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं और राज्य में कांग्रेस का प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। हिमाचल प्रदेश में सारे सियासी आंकलन और पूर्वानुमान गलत साबित होते आए हैं। हिमाचल प्रदेश की सियासत का मिजाज ही कुछ ऐसा है कि भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से अपनी सरकार बनाते आए हैं। इस लिहाजन हिमाचल प्रदेश में इस बार भाजपा की सरकार बनने के आसार नजर आ रहे हैं। अब तो हिमाचल प्रदेश की जनता के साथ-साथ सियासी पण्डितों को भी 18 दिसंबर का इंतजार है जब वीरभद्र सिंह की आखिरी सियासी पारी का प्रदर्शन सबके सामने आएगा।

    नतीजों पर जमी निगाहें

    हिमाचल प्रदेश का सियासी दंगल कई राजनीतिक दिग्गजों के लिए उनके सियासी जीवन की आखिरी पारी साबित हो सकती है। इसमें हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल तक के नाम शामिल हैं। हालाँकि वीरभद्र सिंह पहले ही इसकी घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। वहीं अगर प्रेम कुमार धूमल की बात करें तो वह भी 16 महीनों के बाद 75 वर्ष की आयुसीमा पार कर जाएंगे। ऐसे में भाजपा के ‘रूल 75’ के हिसाब से उनकी भी सक्रिय राजनीति में कोई भूमिका नहीं रह जाएगी। अब सबकी निगाहें इस पर जमी हैं कि सियासी जीवन की यह आखिरी बाजी किसके हाथ लगती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।