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    नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)| चरक, सुश्रुत और धन्वंतरी की धरती पर होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का सूत्रपात करने का श्रेय रोमानिया में पैदा हुए डॉ. जॉन मार्टिन होनिंगबर्गर को जाता है। डॉ. बर्गर महाराजा रणजीत सिंह का इलाज करने के लिए जर्मनी से भारत आए थे। वह होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जनक व जर्मन डॉक्टर सैम्युएल हैनिमैन के शिष्य थे।

    दिल्ली के होम्योपैथी विशेषज्ञ डॉ. कुशल बनर्जी ने बताया कि तत्कालीन पंजाब प्रांत (आजादी के पहले का पंजाब) के शासक महाराजा रणजीत का इलाज करने के लिए डॉ. बर्गर जर्मनी से आए थे।

    उन्होंने महाराजा को वोकल कॉर्ड पैरालाइसिस से निजात दिलाने के बाद 1852 में होम्योपैथी पर एक किताब लाहौर में प्रकाशित की जो इस चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण साबित हुई।

    पद्मश्री डॉ.कल्याण बनर्जी के पुत्र डॉ. कुशल बनर्जी ने बताया कि इससे पहले 1810 ईस्वी में जर्मन मिशनरीज बंगाल आई थी जिन्होंने गरीबों के बीच होम्यापैथी दवाइयां बांटी थी, मगर महाराजा रणजीत सिंह के इलाज के बाद 1852 में जॉन मार्टिन होनिंगबर्गर द्वारा प्रकाशित किताब भारत में इस चिकित्सा पद्धति के प्रसार का स्रोत साबित हुआ।

    उन्होंने बताया कि इसके बाद राजेंद्रलाल दत्त ने कोलकाता में होम्यापैथी क्लिनिक खोली और उसमें एक फ्रांसीसी डॉक्टर टोनेरे को रखा, बाद में वह खुद प्रैक्टिस करने लगे। उन्होंने माइग्रेन से पीड़ित पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर का इलाज किया था।

    विद्यासागर के परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. कुशल ने बताया कि विद्यासागर खुद भी होम्योपैथी की दवा लोगों को देने लगे थे। पांच पीढ़ियों से होम्योपैथी की प्रैक्टिस कर रहे कुशल ने कहा कि दरअसल इस चिकित्सा पद्धति के प्रति परिवार में आकर्षण विद्यासागर ने ही पैदा किया।

    विद्यासगर के भतीजे परेशनाथ बनर्जी की पौत्री स्मिता बनर्जी के पुत्र कुशल बनर्जी ने हालांकि इस विद्या का गुर अपने पिता डॉ. कल्याण बनर्जी से सीखा लेकिन उन्होंने कहा कि इस पद्धति से रिश्ता उनके परिवार का पुराना है। उन्होंने बताया कि डॉ. महेंद्रलाल सरकार और राजेंद्रलाल दत्त के सहयोग से कलकत्ता होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई।

    डॉ. कुशल ने कहा, “होम्योपैथी औषधि का सेवन करने वाले मरीजों को लगता है कि एलोपैथी दवा लेने पर होम्योपैथी दवाओं का असर नहीं होता है। मगर, ऐसा नहीं है होम्योपैथी दवा अपना असर भी दिखाती है और दोनों पद्धतियों की दवाएं लेने से कोई नुकसान भी नहीं होता है क्योंकि होम्योपैथी दवाइयों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है।

    होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का विकास करीब ढाई सौ साल पहले जर्मनी में हुआ था।

    भारत में पहले होम्योपैथी चिकित्सा अध्ययन केंद्र के रूप में 1881 में कलकत्ता होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई। इसके बाद 1973 में भारत सरकार ने इतिहास होम्योपैथी को मान्यता प्रदान करते हुए सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी यानी सीसीएच की स्थापना की।

    डॉ. कुशल बनर्जी ने बताया कि अब देश में सिर्फ रजिस्टर्ड होम्योपैथी डॉक्टर ही मरीजों का इलाज कर सकते हैं।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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