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    राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिराम दास जी छावनी पीठाधीश्वर महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने नौ नवंबर को जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है, और उसके बाद अब छह दिसंबर को खुशी और गम जैसे कार्यक्रम का कोई औचित्य नही रह जाता है। नृत्यगोपाल दास शनिवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

    उन्होंने कहा, “अयोध्या शांत है, आगे भी ऐसा ही रहना चाहिए। कोर्ट के फैसले के दौरान जिस प्रकार सभी देशवासियों ने एकसाथ मिलकर सम्पूर्ण विश्व को शांति और आपसी समन्वय का संदेश दिया, ठीक उसी प्रकार आने वाले छह दिसंबर को भी हम किसी प्रकार के सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन कर तनाव का माहौल नहीं बनने दें। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद खुशी और गम मनाने का कोई औचित्य नहीं बनता है।”

    महंत ने कहा कि साधु-संत और रामभक्त मंदिरों और घरों में भगवान श्रीराम की आरती उतारें और दीपक जलाकर देश को सामाजिक समरसता का पवित्र संदेश दें। न्यास अध्यक्ष ने यह अपील विभिन्न संगठनों द्वारा प्रत्येक वर्ष छह दिसंबर पर आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के मद्देनजर की है।

    उन्होंने कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर को सत्य पर अपनी मोहर लगाकर राम जी को कपड़े के अस्थाई मंदिर से मुक्त कर भव्य मंदिर में विराजमान करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अब शौर्य और कलंक जैसे कार्यक्रमों का औचित्य नहीं। श्रीराम भक्त अदालत का सम्मान करते हुए अब सीधे मंदिर निर्माण करेंगे।”

    उन्होंने आगे कहा, “सन् 1528 की क्रिया में छह दिसंबर की प्रतिक्रिया हुई। अब राष्ट्र और समाज हित में दोनों तिथियों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। अयोध्या के संतों, धर्माचार्यो में ट्रस्ट संबंधित न्यायालय के निर्देश को लेकर किसी प्रकार का विभाजन नहीं है, संत भगवान रामलला को भव्य मंदिर में विराजमान कराने हेतु एकजुट हैं।”

    ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने पहले मीडिया में बयान जारी कर शौर्य दिवस न मनाने की बात कही थी। इसके बाद खूब हो हल्ला होने पर विहिप ने अपने दूसरे बयान में कहा कि दिसंबर में मनाए जाने वाले शौर्य दिवस के कार्यक्रमों में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है।

    विहिप के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव मिलिंद परांडे ने शुक्रवार को कहा कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी शौर्य दिवस (गीता जयंती) को पूरे हषरेल्लास, उत्साह और संयम से मनाया जाएगा। हालांकि अभी इसे मनाने को लेकर विहिप में उहापोह की स्थिति है। क्योंकि गीता जयंती आठ दिसंबर को है। जबकि शौर्य दिवस छह दिसंबर को। विहिप का एक धड़ा इसे मनाना चाह रहा है, वहीं एक धड़ा इसे टालना चाह रहा है।

    इस बीच, बाबरी मस्जिद के पैरोकार रहे हाजी महबूब ने कहा कि ‘बाबरी विध्वंस का गम हमारी कौम को ताउम्र रहेगा।’

    उन्होंने कहा कि हर साल की तरह इस साल भी बंद परिसर में यौम-ए-गम का इजहार किया जाएगा।

    हाजी महबूब के मुताबिक, “यह कार्यक्रम परंपरागत है। इसलिए शांतिपूर्ण तरीके से गम का इजहार करने में किसी को (प्रशासन को) ऐतराज नहीं होना चाहिए। इसका सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है।”

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