Fri. Apr 19th, 2024
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह चौकाने वाली बात है कि बिहार पुलिस पूर्व राज्य मंत्री मंजू वर्मा का पता लगाने और गिरफ्तार करने में असमर्थ रही, जिन्होंने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले की वजह से कैबिनेट छोड़ दिया था।

    न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की एक पीठ ने वर्मा के ठिकाने का पता न लगा पाने और उन्हें गिरफ्तार करने मे असफल होने पर बिहार के डीजीपी से जवाब माँगा।

    मुजफ्फरपुर मामले के बाद वर्मा ने बिहार सरकार में सामाजिक कल्याण मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया था, जहां घर के कई महिला कैदियों के साथ कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण किया गया था, इसके बाद यह भी पता चला था कि उनके पति चंद्रशेखर वर्मा ने मुजफ्फपुर मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर से जनवरी से जून के बीच कई बार बात की थी।

    बिहार सरकार के वकील का कहना है कि वर्मा को गिरफ्तार नहीं किया जा सका क्योंकि पुलिस उन्हें ढूंढने में असमर्थ रही। “खंडपीठ ने फटकार लगाते हुए कहा कि यह अच्छा है कि आप एक (पूर्व) कैबिनेट मंत्री का पता लगाने योग्य नहीं हैं। बढ़िया! यह कैसे हो सकता है कि कोई नहीं जानता कि वह कहाँ है? क्या आपको इस मामले की गंभीरता का एहसास है?”

    न्यायमूर्ति लोकुर ने राज्य के वकील से कहा, “यह अविश्वशनीय है, आप राज्य के डीजीपी को बुलाइए।” 27 नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए मामले की सुनवाई करने वाले खंडपीठ ने यह भी कहा, “हम बहुत चौंक गए हैं कि एक पूर्व कैबिनेट मंत्री को एक महीने से अधिक समय तक देखा ही नहीं गया।” इसने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस बीच वर्मा को गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो डीजीपी को उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।

    याचिकाकर्ता निवेदिता झा के लिए उपस्थित वकील फौजिया शाकिल ने बिहार में 14 अन्य शेल्टर होम्स में राज्य की स्थिति का मुद्दा उठाया, जिसे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने मार्च में बिहार सरकार को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में हाइलाइट किया था। शाकिल ने तर्क दिया कि इन मामलों में उच्च और शक्तिशाली लोग शामिल थे और इस तथ्य के बावजूद कि इन 14 शेल्टर होम्स में लड़कों और लड़कियों के बड़े पैमाने पर शारीरिक और यौन शोषण चल रहा था, अब तक राज्य द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई थी।

    खंडपीठ ने कहा, “बिहार के शेल्टर होम्स में व्यापक रूप से कुप्रबंधन प्रतीत होता है।” इसके साथ ही खंडपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव को 27 नवंबर को उपस्थित रहने के लिए कहा। हाल ही में एक न्यूज़ पेपर में छपी रिपोर्ट के अनुसार बिहार के एक शेल्टर होम से पांच लड़कियां भाग गईं।

    वकील अपर्णा भट्ट ने शेल्टर होम्स मामले में “अमीकस क्यूरिया” (किसी विशेष मामले में कानून की अदालत के लिए निष्पक्ष सलाहकार) के रूप में अदालत की सहायता करते हुए कहा कि बाल कल्याण समिति बिहार में ठीक से काम नहीं कर रही है। खंडपीठ ने कहा, “बाल कल्याण समिति? यहां तक ​​कि पुलिस बिहार में काम नहीं कर रही है।”

    31 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने वर्मा को गिरफ्तार करने में पुलिस की विफलता पर नाराजगी व्यक्त की थी, जिसकी अग्रिम जमानत याचिका 9 अक्टूबर को पटना उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। वर्मा के पति ने बिहार के बेगूसराय में एक अदालत के सामने गोला बारूद संबंधी मामले में आत्मसमर्पण कर दिया था।

    31 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि ठाकुर को बिहार के भागलपुर जेल से पंजाब के पटियाला जेल भेज दिया जाये। वही 25 अक्टूबर को सीबीआई ने कोर्ट को जानकारी दी कि भागलपुर जेल में ठाकुर के पास से एक मोबाइल फ़ोन भी जब्त किया गया है।

    20 सितंबर को अदालत ने कहा था कि यह रिकॉर्ड में था कि चंद्रशेखर वर्मा और उनकी पत्नी के यहाँ से काफी बड़ी मात्रा में गोला बारूद बरामद किये गए थे। यह स्पष्ट नहीं है कि वे अवैध हथियार भी थे।

    अदालत ने देखा था कि सीबीआई ने पहले दर्ज की गई अपनी स्पोर्ट में नोट किया था कि चंद्रशेखर और मंजू वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इन दोनों मामलों के मामलों को विशेष रूप से उनकी खरीद और अवैध गोला बारूद और अवैध हथियारों की उपलब्धता के संबंध में देखा जाना चाहिए। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि हम बिहार राज्य में स्थानीय पुलिस से कुछ हद तक इस पहलू को गंभीरता से देखने के लिए अनुरोध करते है।

    मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में 30 से अधिक लड़कियों के साथ कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण किया गया था और इस मुद्दे को पहली बार बिहार सरकार के सामाजिक कल्याण विभाग को टीआईएसएस द्वारा प्रस्तुत एक लेखा परीक्षा रिपोर्ट में हाइलाइट किया गया था। 31 मई को ठाकुर समेत 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जो आश्रय घर चला रहे थे। जांच बाद में सीबीआई ने ली और अब तक 17 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

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