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    BIHAR MAHAGATHBANDHAN

    पटना, 29 मई (आईएएनएस)| बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से लोकसभा चुनाव में मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने महागठबंधन बनाया, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को छोड़कर राजद सहित अन्य दलों के सूपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता महागठबंधन को छोड़कर अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं।

    इस चुनाव में वोट प्रतिशत के मामले में कांग्रेस, राजद और भाजपा सहित कई दलों से भले ही पीछे रह गई हो, परंतु इस चुनाव में कांग्रेस की सफलता का प्रतिशत (स्ट्राइक रेट) राजद से बेहतर है। इस चुनाव में 19 सीटों पर लड़ने वाली राजद एक भी सीट नहीं जीत सकी, लेकिन कांग्रेस ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारकर किशनगंज सीट पर जीत का पताका फहरा दिया। यही एकमात्र सीट है, जो इस चुनाव में महागठबंधन जीत सकी है।

    वरिष्ठ कांग्रेसी और बिहार विधानसभा में कांग्रेस के नेता सदानंद सिंह ने गठबंधन से अलग होकर कांग्रेस को चुनाव में उतरने की सलाह देते हुए स्पष्ट कहा, “पार्टी को बैसाखी से उबरना होगा। अपनी धरातल, अपनी जमीन को तो मजबूत करना ही होगा।”

    महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर नाइंसाफी के विषय में सिंह कहते हैं, “महागठबंधन में कमियां तो थीं ही, कांग्रेस को भी कम सीटें मिली हैं। समझौता समय से पहले नहीं हो पाया।”

    कांग्रेस की बिहार इकाई के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा भी कहते हैं, “यह मेरी पुरानी मांग है। मैं तो 1998 से ही इसका प्रयास कर रहा हूं। मेरा मानना है कि कांग्रेस बिहार में अकेले बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।”

    बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार भी कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने का समर्थन करते हुए कहते हैं कि महागठबंधन में सीटों के बंटवारे, टिकट बांटने और प्रचार अभियान में कमी रही। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगले साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए।

    इधर, कांग्रेस के एक नेता ने तो नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि गठबंधन एक विचारधारा वाले दलों के बीच हो सकता है, परंतु राजद या महागठबंधन में शामिल अन्य दल कांग्रेस की विचारधारा से अलग हैं।

    उन्होंने दावा किया कि इस चुनाव में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को आरक्षण का विरोध करने वाले राजद के साथ जाने के कारण भी कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है। इसके अलावा भी उनका कहना है कि कांग्रेस और राजद में कई मूल अंतर है।

    इधर, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ़ मदन मोहन झा ने इस पर कुछ भी खुलकर नहीं कहा। उन्होंने कहा कि पार्टी के सभी नेता हैं और सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि चुनाव में हार को लेकर जल्द ही समीक्षा की जाएगी, इसके बाद फैसला लिया जाएगा।

    इधर, राजद से नाराज नेताओं का कहना है, “वैसे मतदाता जो राजद, कांग्रेस को एक ही थैली के चट्टे-बट्टे मानते हैं, उन्हें भी कांग्रेस के बारे में नए सिरे से विचार करने का मौका मिलेगा और कांग्रेस के विषय में सही जानकारी होने पर कांग्रेस से नए मतदाता जुड़ेंगे।”

    बहरहाल, करीब तीन दशकों से बिहार में बैसाखी के सहारे चल रही कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने ‘एकला चलो’ की बात शुरू कर दी है, लेकिन बिहार की राजनीति को नजदीक से समझने वालों का कहना है कि कांग्रेस के लिए यह फैसला भी उतना आसान नहीं है।

    पटना के वरिष्ठ पत्रकार मनोज चौरसिया कहते हैं कि कांग्रेस के संगठन को मजबूत करना और कांग्रेस के पारंपरिक वोट को फिर से कांग्रेस की ओर लेकर आना आसान नहीं है। हलांकि वे यह भी कहते हैं कि कांग्रेस के लिए फिलहाल ‘एकला चलो’ आसान नहीं।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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