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    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि फेसबुक जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लोगों के विचारों को प्रभावित करने की क्षमता है। उन्हें जवाबदेह होना चाहिए, फेसबुक द्वारा अपनाए गए “सरल दृष्टिकोण” को स्वीकार करना मुश्किल है कि यह केवल तीसरे पक्ष की जानकारी पोस्ट करने वाला एक मंच है और उस मामले को उत्पन्न करने, नियंत्रित करने या संशोधित करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत की ‘अनेकता में एकता’ को बाधित नहीं किया जा सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि दिल्ली में पिछले साल जैसी हिंसा को फिर से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता भारत की अनेकता में एकता की ताकत को किसी भी कीमत पर खराब नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और एमडी अजीत मोहन और अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा फेसबुक के अधिकारियों को दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति के सामने पेश होना होगा। फेसबुक जैसी संस्थाओं, जिनके भारत में लगभग 27 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स हैं, फेसबुक को उन लोगों के प्रति जवाबदेह रहना होगा। आपकों बता दें कि पिछले साल दिल्ली में हुई हिंसा से 200 लोग घायल हो गए थे जबकि 50 से अधिक लोगों की जान गई थी।

    ‘सोशल मीडिया मैनिपुलेशन से लोकतंत्र की बुनियाद को खतरा’

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘…दुनियाभर में स्थापित स्वतंत्र लोकतंत्रों में इस तरह का असर देखा जा रहा है और वो चिंतित हैं। चुनाव और वोटिंग प्रक्रिया जो लोकतांत्रिक सरकार की बुनियाद होती हैं, उनके लिए सोशल मीडिया तिकड़मों से खतरा बना हुआ है।’

    ‘पूरी तरह अनियंत्रित भी हो सकते हैं डिजिटल प्लेटफॉर्म’

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘तकनीकी युग ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पैदा किए हैं- ये रेलवे प्लेटफॉर्म्स की तरह नहीं हैं जहां ट्रेनों का आना-जाना नियंत्रित होता है। ये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स किसी समय पूरी तरह अनियंत्रित हो सकते हैं, इनकी अपनी चुनौतियां हैं।’

    फेसबुक के वीपी को समिति के समक्ष पेश होना ही होगा

    पीठ ने कहा, दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द समिति के पास यह पूरा अधिकार है कि वह फेसबुक के अधिकारियों को किसी मसले पर समन कर सके। समिति के पास सवाल करने का अधिकार है, लेकिन वह कोई सजा नहीं सुना सकती है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने समिति द्वारा भेजे गए समन को रद्द करने से इनकार कर दिया। ऐसे में अब फेसबुक के वीपी को अजित मोहन को समिति के समक्ष पेश होना पडे़गा।

    कोर्ट ने अजीत मोहन द्वारा की गई दंडात्मक कार्रवाई की आशंका को प्रीमैच्योर करार दिया। कोर्ट ने कहा, फेसबुक एक ऐसा मंच है जहां राजनीतिक मतभेद नजर आते हैं, ऐसे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को दंगों के मुद्दे से अपना हाथ झाड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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