Sat. Apr 20th, 2024
    सोनिया गाँधी और अशोक चौधरी

    जब से बिहार में महागठबंधन का बिखराव हुआ है, यहाँ की राजनीति में रोज नए-नए रंग देखने को मिल रहे हैं। जेडीयू के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा का हाथ थामने के बाद से ही सभी दलों में बगावत के स्वर फूटने लगे थे। जेडीयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार के सारथी रहे शरद यादव ने नीतीश के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया वहीँ आरजेडी के कई विधायकों ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर पुत्रमोह का आरोप लगाया। बिहार कांग्रेस भी इस बगावत की बयार से अछूती नहीं रही और दो दशकों बाद सत्ता का स्वाद चखने वाली कांग्रेस के कई विधायकों का पार्टी से मोहभंग हो गया। ऐसी खबर आ रही थी बिहार कांग्रेस के 18 विधायक टूटकर सत्ताधारी भाजपा-जेडीयू गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।

    गंभीर होती परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने बिहार में अपने तीन वरिष्ठ नेताओं को अलग-अलग भेजा। इन नेताओं ने अपनी-अपनी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को सौंपी और स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बिहार कांग्रेस प्रदेशध्यक्ष, पार्टी प्रभारी और सभी विधायकों को दिल्ली तलब किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बिहार कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अशोक चौधरी से मुलाकात की और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी निजी तौर पर बिहार कांग्रेस के सभी 27 विधायकों से अलग-अलग मिले। यह मेल-मिलाप का कार्यक्रम दो दिनों तक चला और मंगलवार, 26 सितम्बर को पार्टी आलाकमान ने इसपर अपना फैसला सुनाया। इस बगावत की गाज बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी पर गिरी और उन्हें तत्काल प्रभाव से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष कौकब कादरी नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति तक यह जिम्मेदारी संभालेंगे।

    अपमानित महसूस कर रहे हैं अशोक चौधरी

    बिहार कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाए गए अशोक चौधरी ने कहा है कि वह पार्टी के फैसले का स्वागत करते हैं। लेकिन जिस तरह से अपमानित करके उन्हें निकाला गया है उन्हें उसकी अपेक्षा नहीं थी। उन्होंने कहा कि यह पार्टी में ही मौजूद मेरे विरोधियों की साजिश है। अशोक चौधरी ने हाल ही में आरोप लगाया था कि बिहार कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें बदनाम करने की साजिश कर रहा है और बगावत की हवा बनाकर उनका नाम खराब कर रहा है। महागठबन्धन में बिखराव के बाद से ही बिहार कांग्रेस में बगावत की आशंका थी। हालाँकि तब कांग्रेस ने दावा किया था कि स्थिति उसके नियंत्रण में है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अशोक चौधरी को पद से हटाया है। नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति तक बिहार कांग्रेस उपाध्यक्ष कौकब कादरी यह जिम्मेदारी सँभालेंगे।

    बिहार पर ढ़ीला रवैया अपना रही थी कांग्रेस

    कभी बिहार की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस पिछले दो दशकों से राज्य में हाशिए पर जा चुकी थी। 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुए महागठबंधन ने बिहार कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया था। कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीतने में सफल रही थी। पिछले 20 वर्षों में बिहार विधानसभा चुनावों में यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन ने मोदी लहर को रोक कर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई थी। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से दामन छुड़ा भाजपा का हाथ थाम लिया था।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस बाबत नीतीश कुमार से दिल्ली में मुलाक़ात भी की थी। लेकिन उनकी मुलाक़ात के 2 दिनों बाद ही नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर भाजपा के समर्थन से सरकार बना ली। राहुल गाँधी ने तब नीतीश कुमार को विश्वासघाती कहा था। कांग्रेसी विधायक पार्टी आलाक़मान के इस निर्णय से बेहद नाराज थे और सत्ता सुख का छिनना उन्हें रास नहीं आ रहा था। कई कांग्रेस विधायकों ने स्पष्ट तौर पर पार्टी आलाकमान के लालू यादव का साथ देने के निर्णय की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि पार्टी को नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहना चाहिए था। आलाकमान से बिहार इकाई के आपसी संवाद और तालमेल में कमी के बाद पार्टी में बगावत के सुर फूटने लगे थे।

    लालू की रैली में खल रही थी सोनिया-राहुल की कमी

    अगस्त के आखिर में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पटना के गाँधी मैदान में केंद्र की सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ “भाजपा हटाओ, देश बचाओ” रैली का आयोजन किया था। इस रैली में उन्होंने सभी गैर एनडीए दलों को आमंत्रित किया था लेकिन बिहार में महागठबनधना में उनकी सहयोगी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से कोई भी इस रैली में शामिल नहीं हुआ था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जहाँ नॉर्वे सरकार के बुलावे पर विदेश यात्रा पर थे वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर रैली से दूरी बनाई। हालाँकि सोनिया गाँधी का रिकार्डेड भाषण और राहुल गाँधी का लिखित सन्देश रैली में पढ़ा गया पर गाँधी परिवार के किसी सदस्य की मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने का काम करती और इससे पार्टी विधायकों को भी मजबूत सन्देश मिलता।

    कांग्रेस की तरफ से रैली में राज्यसभा के नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद, हनुमंत राव और बिहार प्रभारी सीपी जोशी ने शिरकत की थी। हालाँकि इन तीनों नेताओं की सम्मिलित उपस्थिति से ज्यादा प्रभावशाली गाँधी परिवार के किसी एक सदस्य की मौजूदगी होती। लालू यादव और राहुल गाँधी अब एक साथ मंच साझा नहीं करते हैं पर प्रियंका गाँधी मंच पर आकर पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन कर सकती थी। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह आज भी कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा हैं और उनकी उपस्थिति भी कांग्रेस को बल देती। लेकिन दिग्गजों की उपेक्षा से कांग्रेस बिहार में फिर से हाशिए की तरफ जाने लगी है। यह 2 दशकों बाद बिहार में महागठबंधन की संजीवनी पाए कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है।

    राहुल गाँधी ने की थी बिहार कांग्रेस विधायकों से मुलाकात

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने गुजरात दौरे से लौटने के बाद बिहार कांग्रेस के विधायकों से मुलाकात की थी। 2 दिनों में राहुल गाँधी बिहार कांग्रेस के सभी 27 विधायकों से निजी तौर पर मिले थे और उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की थी कि आखिर वह कौन है जो पार्टी में विभीषण का काम कर रहा है। इस मुद्दे पर पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी और विधायक दल के नेता सदानंद सिंह से मुलाक़ात कर चर्चा की थी। टूट की आशंका को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी के 3 वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद, जेपी अग्रवाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अलग-अलग दिन बिहार में भेजा था और हालातों का जायजा लिया था।

    गुलाम नबी आजाद, जेपी अग्रवाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बिहार दौरे के बाद जो रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी थी उसी आधार पर राहुल गाँधी बिहार ने कांग्रेस के विधायकों से निजी तौर पर मिलकर उनकी शंकाओं-समस्याओं का निवारण किया था। बिहार कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी का भी रुख इस मामले में अहम रहा था। कांग्रेस बिहार में तकरीबन दो दशकों से हाशिए पर चल रही थी और महागठबंधन से उसे बिहार में संजीवनी मिली थी। बिहार विधानसभा चुनावों में 27 विधायकों के साथ पहुँची कांग्रेस का यह पिछले दो दशकों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। ऐसे में सत्ता सुख छिनने के बाद विधायकों का सत्ताधारी दल की और झुकना स्वभाविक था।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।