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    चीनी रेल परियोजना

    भारत ने अब नेपाल रेलवे ट्रैक के बीच निर्माण में कार्य में चीन को बाहर कर दिया है। भारत नेपाल में नेपाल के दक्षिण से एक व्यापक स्तर पर रेलवे लाइन का निर्माण कर रहा है, जबकि चीन उत्तर से रेलवे ट्रैक का निर्माण करना चाहता है। यह भारत और नेपाल को भविष्य में जुड़ने के मौको को बंद कर देगा।

    यह शायद पहली दफा है कि दो देश भारत और चीन किसी तीसरे देश में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। चीन की रेलवे लाइन इंडो-नेपाल सीमा के काफी करीब पंहुच गयी है। सूत्रों ने कहा कि भारत ने नेपाल से जुड़ने वाले  पांच रेलवे लिंक में तेजी लाने का निर्णय लिया है, यह पानीटंकी, ककार्बित्ता, जोगबनी-बिराटनगर, बिर्गुंज-रक्सौल, सुनौली-भैरवा और रुपैदिआह-कोहलापुर है।

    सबसे महत्वपूर्ण यह ग्रीन लाइट की विद्युत् रेलवे ट्रैक है जिसका रक्सौल से काठमांडू तक मजीद विस्तार किया जायेगा।  हाल ही में नेपाल के मंत्री ने ऐलान किया था कि चीनी गेज समस्त राष्ट्र में इस्तेमाल किया जायेगा हालाँकि जमीनी हकीकत मके मुताबिक भारत ने इस मामले में चीन से बाजी मार ली है। भारत ने रोलिंग स्टॉक, कोच और लोकोमोटिव को लागू किया है।

    जानकारों ने कबूल किया है कि चीनी गेज पहाड़ी इलाको के लिए अधिक अनुकूल है। ट्रोपोग्राफी भारत द्वारा निर्मित ट्रैक के अवरोध के लिए अनुकूल नहीं होगा। चीन की दोगुनी दिक्कत है। पहली उनकी तिब्बत से रेलवे लाइन, जो विश्व के सबसे मुश्किल इलाकों में हैं। चीन ने तिब्बत से केरुंग तक की रेलवे लाइन के विस्तार की समयसीमा को पीछे धकेल रहे हैं। दूसरा, केरुंग से काठमांडू तक दूसरे निर्माण की अनुमानित लगत छह अरब डॉलर है।

    सूत्रों ने कहा कि “अभी तक नेपाल में चीनी लाइन के विस्तार की नई समयसीमा के बारे में कोई संकेत नहीं दिया है। दूसरी तरफ भारत रक्सौल-काठमांडू लाइन की कम खर्चीली कीमत को उठाने के लिए विचार करने को तैयार है। सीनों-भारत रेलवे की भूराजनीतिक प्रतिद्वंदिता चीनी आधिपत्य पर खत्म नहीं है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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