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    नीतीश कुमार एनडीए

    पटना में आयोजित जदयू कोर कमेटी की मीटिंग के बाद जदयू के प्रवक्ता पवन वर्मा ने कहा कि बिहार में एनडीए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का चेहरा नितीश कुमार हैं।

    यह सभा बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के आवास पर आयोजित की गई थी, जिसमें जदयू के वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी व राजनैतिक व्यूहकार प्रशांत किशोर भी शामिल थे।

    यह बैठक 7 जून को तय एनडीए की कार्यकारिणी सभा के पहले रखी गई थी।

    एनडीए की बैठक 2019 से पहले घटक दलों के बीच समीकरण तय करने के लिए बुलाई गई है। उससे पहले जदयू की यह बैठक व नीतीश कुमार को बिहार का बॉस घोषित करना कई राजनैतिक सरगर्मियों की ओर इशारा करता है।

    राजनैतिक रिश्ते

    यह बात किसी से छुपी नहीं है कि जदयू का भाजपा के साथ वापस आना भाजपा और जदयू दोनों की मजबूरी थी। और 2019 से पहले दोनों ही पार्टियां बिहार में अपना कद जरूर बढाना चाहेंगी।

    2014 में जहां भाजपा को 40 में से 32 सीटें मिल गई थी, वहीं जदयू को मात्र 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि विधानसभा में भाजपा की 53 सीटें हैं तो जदयू के पास 70 सीटें हैं। ऐसे में 2019 लोकसभा चुनाव में किसे कितनी सीटें मिलेंगी इसके लिए अंदरूनी आंखें तरेरना का खेल जारी है। उसी क्रम में हाल में ही हुए उपचुनाव में हार का ठीकरा जदयू ने पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर थोड़ा था।

    2019 की तैयारी भाजपा-जदयू गठबंधन के बावजूद जोकीहाट उपचुनाव में राष्ट्रीय जनता दल की जीत ने बिहार की राजनीतिक पिच के घुमाव को दर्शाया है। पूरे भारत में जहां विपक्ष की एकता के कारण भाजपा के पसीने छूट रहे हैं। वहीं बिहार में स्थिति उलट है, कांग्रेस का बिहार में दृश्य अस्तित्व ना होने के कारण मुकाबला एनडीए बनाम राजद का ही होगा।

    पर यहां भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत उसके सहयोगियों से तालमेल बनाकर रखना है। जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तान आवाम मोर्चा सेक्यूलर पहले ही एनडीए छोड़कर लालू यादव का हाथ थाम चुकी है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा से कुछ नाराज चल रही है। ऐसे में भाजपा के सामने लालू और तेजस्वी से बड़ी चुनौती अपना खुद का किला बचाना है।

    जदयू का दबाव

    नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताना जदयू का राजनैतिक खेल है। जदयू दर्शाना चाहती है कि बिहार में भाजपा नहीं बल्कि वह बड़े भाई का किरदार निभाएंगे।

    इस हिसाब से उन्हें 2019 में लोकसभा सीटें भी ज्यादा चाहिए व अपने नेता नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा कद भी चाहिए। खुद गठबंधन तोड़कर जाने के बाद वापस आने से जदयू की मांगे थोड़ी कमजोर अवश्य हुई हैं पर फिर भी भाजपा उन्हें हल्के में नहीं लेगी।

    विशेष राज्य का दर्जा

    बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने को लेकर क्या नीतीश कुमार के दोहरे मापदंड हैं ऐसा पूछने पर जदयू प्रवक्ता ने सफाई देते हुए कहां की जदयू विशेष राज्य के दर्जे को लेकर प्रतिबंध है व वह इस संबंध में उनका संघर्ष जारी रहेगा।

    2013 में एनडीए से गठबंधन तोड़ते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि जो पार्टी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाएगी जनता दल (यूनाइटेड) उसी का समर्थन करेगी।

    हांलकि 2013 से अबतक ना यूपीए ना ही एनडीए ने इस बाबत चर्चा की है, पर चार सालों में ही नीतीश दोनों घाटों का चक्कर लगा चुके हैं।

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