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    निसान मामला

    जापान की कार कंपनी निसान ने भारतीय सरकार को यह शिकायत की है कि कंपनी को सरकार की और से सहायता राशि नहीं प्रदान की गयी है। आपको बता दें निसान ने तमिल नाडू में कार की एक फैक्ट्री शुरू की थी, जिसपर सरकार ने उन्हें कहा था कि उन्हें टैक्स और अन्य चीजों में मदद दी जायेगी।

    अब सरकार द्वारा कंपनी की मदद ना करने पर कंपनी ने सरकार के खिलाफ शिकायत की थी। इस घटना की वजह से भारत सरकार को विश्व भर में आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता है। आपको बता दें निसान ने सरकार के खिलाफ करीबन 770 मिलियन डॉलर की राशि भुगतान करने को कहा है।

    मामले को आगे बढ़ता देख अब ​तमिलनाडु सरकार ने निसान की ओर से मांगी गई प्रोत्साहन राशि भुगतान मामले में एक सकारात्मक संकेत दिए हैं। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह विवाद वैट में छूट तथा वैट रिफंड को लेकर है।
    अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस मामले को निपटाने के लिए केंद्र सरकार से मिली मंजूरी के बाद तमिलनाडु सरकार ने कंपनी से बातचीत शुरू कर दी है।

    क्योंकि कंपनी निसान ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) के तहत केंद्र से इस मामले को सुलझाने की मांग की थी। दरअसल साल 2008 में निसान ने अपने ग्लोबल पार्टनर व फ्रांसीसी कार निर्माता रेनॉल्ट के साथ मिलकर चेन्नई में एक कार संयंत्र स्थापित के लिए निवेश की सहमति जताई थी, उस दौरान तमिलनाडु सरकार ने टैक्स रिफंड्स के साथ कई तरह की प्रोत्साहन राशि भी देने का वायदा किया था।

    पिछले साल प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई नोटिस के अनुसार, अब निसान ने तमिलनाडु सरकार के साथ 2008 समझौते तहत इसी प्रोत्साहन राशि की मांग की है। नोटिस के मुताबिक, साल 2015 में निसान ने राज्य सरकार के अधिकारियों से प्रोत्साहन राशि के भुगतान की मांग दोहराई लेकिन कंपनी के इस अनुरोध को अनेदखा कर दिया गया।

    पिछले साल मार्च में कंपनी के चेयरमैन कार्लोस घोसन ने पीएमओ में भी अपनी बात रखी लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। साल 2016 के जुलाई महीने में निसान के वकील द्वारा भेजे गए नोटिस के बाद केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों तथा निसान के बीच दर्जनभर से ज्यादा बैठकें आयोजित की।

    तत्पश्चात केंद्रीय अधिकारियों तथा कई मंत्रालयों ने निसान को इंसेन्टीव भुगतान का भरोसा दिलाया और कहा कि इसे मामले को कानूनी बनाने से बचना चाहिए। अब निसान ने इस मामले में मध्यस्थ नियुक्त करने के लिए भारत सरकार को एक अल्टीमेटम दिया है जिसकी सुनवाई दिसंबर के मध्य तक होनी संभव है।

    हांलाकि निसान के प्रवक्ता का कहना है कि कंपनी इस मामले के सुलझने पर भारत सरकार के साथ काम करने को तैयार है।
    इस संबंध में तमिलनाडु के एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि सरकार इस मसले को बिना किसी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के सुलझा लेगी। रॉयटर्स से बातचीत के दौरान अधिकारी ने बताया कि प्रोत्साहन राशि को लेकर कोई समस्या नहीं, हम इस मसले को सुलझाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

    कार निर्माता कंपनी निसान अपने नोटिस में 29​ बिलियन रूपए की अवैतनिक प्रोत्साहन राशि तथा 21 अरब रूपए का नुकसान, अतिरिक्त ब्याज आदि लागतों का दावा कर रही है। गौरतलब है कि निसान भारत कार बाजार में 2 फीसदी से भी कम की हिस्सेदारी रखता है। कंपनी माइक्रा हैचबैक, सनी सेडान और टेरेना स्पोर्ट जैसे वाहनों की बिक्री करती है।

    निसान डेटसन ब्रांड जैसी कम कीमत वाली कारें भी बेचता है। कंपनी के प्रवक्ता के अनुसार निसान भारत में 40,000 लोगों को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रोजगार मुहैया कराती है।

    मुद्दे को कैसे सुलझाएगी मोदी सरकार?

    भारत में विदेशी कंपनियों के निवेश को लेकर कई मुद्दे सामने आते रहे हैं। हाल ही में एक चीनी बैंक ने भी अनिल अंबानी की कंपनी के खिलाफ शिकायत की थी, कि उन्हें अपनी निवेश राशि वापस नहीं मिली है। ऐसे में मोदी सरकार को ऐसे मामलों से निपटने के लिए नए और कठोर कानून की जरूरत है।

    इस मामले में यह खबर है कि मोदी सरकार ने सभी राज्यों की सरकारों से इस मामले में बात की है और सभी राज्यों को यह आदेश दिए हैं कि विदेशी कंपनियों से साथ अच्छा आचरण किया जाए। इसके अलावा सरकार ने राज्यों से कहा है कि किसी भी तरह की ऐसा घटना ना हो जिससे वैश्विक स्तर पर भारत को नीचा देखा पड़े।

    यदि जल्द ही मोदी सरकार ने विदेशी निवेश के मामले को नहीं सुलझाया, तो सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ योजना और अन्य विदेशी निवेश लाने की योजनाओं को गहरा झटका लग सकता है।