Thu. Apr 25th, 2024
    आर्टिकल 35ए कश्मीर

    अमरनाथ हमलों के बाद से जम्मू-कश्मीर एकबार फिर सुर्ख़ियों में हैं। कुदरत ने कश्मीर को इतना खूबसूरत बनाया है कि वो सुर्ख़ियों में रहने के क़ाबिल है। इसी वजह से कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा गया है। कश्मीर की खूबसूरती देखकर एक शायर ने कहा है कि –

    “जहाँ में जन्नत और कहीं नहीं है, वो यहीं है यहीं है यहीं है”

    पर कश्मीर अपनी खूबसूरती से इतर आतंकी गतिविधियों, देशविरोधी नारों और घाटी के पत्थरबाजों की वजह से चर्चा में है। घाटी में बिगड़ते हालात और बढ़ती आतंकी गतिविधियों से पूरा कश्मीर सुलग रहा है। आजादी के 70 सालों बाद भी सरकार कश्मीर समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल पाई है। कश्मीर में सेना की तैनाती का विरोध होता है और राष्ट्रध्वज का अपमान होता है। अलगाववादियों के बढ़ रहे दबदबे और देश विरोधी हरकतों का मुख्य कारण धारा 370 है।

    कश्मीर का इतिहास

    देश की आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के गृह मंत्री लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पर सभी रियासतों के विलय करने की जिम्मेदारी सौंपी। जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राजा महाराजा हरि सिंह ने पहले जम्मू और कश्मीर रियासत के हिन्दुस्तान में विलय की गृहमंत्री की शर्तों को ठुकरा दिया। वह डोगरा शासन के आखिरी राजा थे। वह कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाने के पक्षधर थे। पाकिस्तानी सेना द्वारा घुसपैठ करने के बाद इन्होंने सरदार पटेल से मदद मांगी और भारतीय सेनाओं ने रियासत को अपने नियंत्रण में ले लिया। भारतीय सेनाओ के पहुँचने से पहले पाकिस्तानी सैनिक रियासत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर अपना नियत्रण कर चुके थे और इस इलाके को आज पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है। सरकार की शर्तों के अनुसार उन्होंने अपने पुत्र तथा वारिस युवराज कर्ण सिंह को जम्मू का राज-प्रतिनिधि नियुक्त किया।

    धारा 370

    धारा 370 भारतीय संविधान का विशेष अनुच्छेद है जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। देश की राजनीति के इतिहास में यह धारा बहुत विवादित रही है। कई शीर्ष राजनीतिक दल और कानूनविद इस धारा को ही जम्मू-कश्मीर में उत्पन्न अलगाववाद की वजह मानते हैं। जब जम्मू-कश्मीर में इस धारा को लागू किया गया था तो इसे अस्थायी और संक्रमणकालीन परिस्थितियों तक ही लागू रखने का हवाला दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से इसे तैयार किया गया था।

    धारा 370 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकार

    – जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
    – जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रप्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है।
    – भारत के न्यायपालिका के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
    – भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में कोई बड़ा कानून नहीं बना सकती। कानून निर्धारण का दायरा सीमित है।
    – जम्मू-कश्मीर की महिला यदि किसी अन्य भारतीय राज्य के व्यक्ति से विवाह करे तो उसकी कश्मीरी नागरिकता समाप्त हो जायेगी। वहीं किसी पाकिस्तानी नागरिक से विवाह करने पर उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
    – धारा 370 की वजह से कश्मीर में रह रहे पाकिस्तानियों को भी भारत की नागरिकता मिल जाती है।
    – भारत के किसी अन्य राज्य का व्यक्ति कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता।
    – धारा 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में RTI, RTE और CAG लागू नहीं हैं। वहाँ अन्य भारतीय कानून भी बेअसर हैं।
    – जम्मू-कश्मीर का अलग राष्ट्रध्वज होता है।
    – जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है।
    – कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं हैं।
    – जम्मू-कश्मीर की महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होते हैं।
    – कश्मीर में चपरासी को 2500/- ही मिलते है।
    – कश्मीर में अल्पसंख्यकों(हिन्दू, सिख) को 16% आरक्षण नहीं मिलता है।

    सरकार के हाथ बाँध रखे हैं धारा 370 ने

    धारा 370 की वजह से सरकार स्वतंत्र रूप कोई कदम नहीं उठा सकती। कश्मीर में हालात बद से बदतर होते जा रहे है और लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है और हमेशा रहेगा। सरकार को धारा 370 पर जनता और जनप्रतिनिधियों के साथ एक खुली बहस करनी चाहिए और अस्थायी रूप से लगाई गई इस धारा 370 की आवश्यकता के बारें में सोचना चाहिए। अगर शीघ्र ही इस धारा के भविष्य निर्धारण पर कोई उचित कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले वक़्त में यह समस्या देश के लिए नासूर बन जायेगी।

     

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।