Fri. Apr 19th, 2024

    तमाम रिकॉर्ड तोड़कर सर्वश्रेष्ठ गुजराती फीचर फिल्म बनी ‘हेलारो’ का प्रदर्शन आज शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पीवीआर चाणक्य सिनेमा हॉल में होगा। ‘हेलारो’ ऐसी पहली गुजराती फीचर फिल्म है जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। ‘हेलारो’ का निर्माण हरफनमौला फिल्म्स के सहयोग से सारथी प्रोडक्शंस के बैनर तले किया गया है।

    शुक्रवार को यह जानकारी गुजरात सरकार के संयुक्त निदेशक (सूचना एवं प्रचार) नीलेश शुक्ला ने आईएएनएस को दी। उन्होंने बताया, “‘हेलारो’ ऐसी पहली गुजराती फीचर फिल्म है जिसे 66वें राष्ट्रीय पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म से नवाजा गया है। ‘हेलारो’ में अभिनय करने वाली 13 अभिनेत्रियों को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में ‘विशेष जूरी’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।”

    संयुक्त निदेशक ने आगे कहा, “‘हेलारो’ पहली गुजराती फीचर फिल्म है जिसने, गोल्डन और सिल्वर लोटस, दोनो पुरस्कार भी हासिल किए। आईएफएफआई जूरी ने ‘हेलारो’ को भारत के 50वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में ओपनिंग फिल्म के रुप में भी चुना था। यह समारोह नवंबर 2019 में गोवा में आयोजित किया गया था। फिल्म के निर्देशक अभिषेक शाह को आईएफएफआई में स्पेशल मेंशन अवार्ड (विशेष उल्लेख पुरस्कार) से नवाजा गया था।”

    ‘हेलारो’ के अगर रिकार्डस तोड़ने की बात की जाए तो उसे दिसंबर 2019 में केरल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी स्क्रीनिंग के लिए चुना गया था। आईएएनएस से बातचीत करते हुए संयुक्त निदेशक नीलेश शुक्ला ने बताया, “दिसंबर 2019 में इटली में आयोजित 19वें रिवर-टू-रिवर फ्लोरेंस इंडियन फिल्म फेस्टिवल में भी हेलारो को स्क्रीनिंग के लिए चयनित किया गया था।”

    फिल्म निर्देशक अभिषेक शाह ने आईएएनएस से कहा, “‘हेलारो’ महिलाओं के एक खास समूह की सीधी-सच्ची या यूं कहें कि देसी सी कहानी है। जिसमें वर्षों से पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों, अत्याचारों और उत्पीड़न से महिलाओं के अचानक ही मुक्त हो जाने की दिलचस्प हकीकत पेश की गई है। ‘हेलारो’ की कहानी के मुताबिक, जंगल में खोया हुआ अजनबी ढोल की थाप और संगीत के जरिये रुढ़िवादिता की बेड़ियों में जकड़ी महिलाओं को मुक्त कराने का जरिया बन जाता है।”

    ‘हेलारो’ की कहानी के बारे में बात करते हुए फिल्म के निर्देशक अभिषेक शाह ने आगे कहा, “एक छोटे से शहर की लड़की मंझरी (श्रद्धा डांगर) को शादी के बाद दूर रेगिस्तान के पास स्थित समरपुरा गांव में भेज दिया जाता है। समरपुरा गांव की महिलाओं की जिंदगी-दुनियादारी महज घर की चार-दिवारी के अंदर ही सिमटी होती है। घर की चार-दिवारी से बाहर निकलने का मौके उन्हें तभी नसीब होता है जब, दूर खेतों में मौजूद कुएं से पानी लाना होता है।”

    जबकि गांव के पुरुष हर रात बारिश के वास्ते देवी को प्रसन्न करने को गरबा नृत्य करते हैं। हालांकि तब महिलाएं घरों के अंदर ही होती हैं। फिल्म की कहानी के मुताबिक, “एक दिन जब गांव की महिलाएं पानी लेने घर से बाहर जा रही होती हैं, तभी रास्ते में उन्हें रेत से सना और बेहद थका हुआ सा इंसान दिखाई देता है। तमाम रुढ़िवादिता के चलते चाहने के बाद भी महिलाएं उस अजनबी की मदद करने से कन्नी काट लेती हैं। यह सोचकर कि किसी ने देख लिया तो न मालूम क्या नया बखेड़ा खड़ा हो जाए।”

    उन्होंने बताया कि इस सबसे अलग हटकर सोचने वाली मंझरी को मगर उस अजनबी शख्स पर रहम आ जाता है। वो उस अजनबी को पानी दे देती है। वो अजनबी अपना परिचय मूलजी (जयेश मोरे) के रुप में मंझरी को देता है। दरअसल मूलजी एक ढुलकया (ढोलक बजाने वाला) है। जमाने से बेखबर अल्लहड़ सी हरफनमौला मंझरी मूलजी से ढोल बजाने की जिद करती है। जिद आग्रह के साथ ही वो खुद नाचना शुरू कर देती है। मंझरी को बेखौफ नाचता देखकर उसके साथ मौजूद बाकी महिलाएं भी गरबा नाच नाचने लगती हैं।

    उस दिन के बाद इन महिलाओं का मूलजी से मिलना-जुलना रोज-मर्रा की बात हो जाती है। फिल्म ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती है, त्यों-त्यों फिल्म ‘हेलारो’ में, रुढ़िवादिता की बेड़ियों में जकड़ी गांव की महिलाएं खुद को आजाद होता महसूस करने लगती हैं। फिल्म का अंत सुखद अनुभूति पर पहुंचकर होने की वजह से भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *