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    tanveer hasan

    तनवीर हसन बेगूसराय, बिहार से महागठबंधन के प्रत्याशी हैं। इस बार बेगुसराय में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है, जिसमें तनवीर हसन के सामने सीपीआई के कन्हैया कुमार से बीजेपी के गिरिराज सिंह चुनाव लड़ेंगे।

    पिछले लोकसभा चुनावों में बेगूसराय में बीजेपी के भोला सिंह विजयी रहे थे, जिन्हें 4,28,227 वोट मिले थे। दुसरे स्थान पर तनवीर हसन थे, जिन्हें 3,69,892 वोट मिले थे। सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1,92,639 वोट मिले थे।

    पहले यह चर्चा थी कि सीपीआई के कन्हैया कुमार के सामने सिर्फ गिरिराज सिंह होंगे और महागठबंधन अपना प्रत्याशी यहाँ से नहीं उतारेगा। लेकिन खबर है कि महागठबंधन को लगा कि तनवीर हसन के यहाँ से जीतने के आसार ज्यादा हैं, ऐसे में वे एक सीट को छोड़ नहीं सकते हैं।

    आज तनवीर हसन नें घोषणा की कि वे कल बेगूसराय सीट के लिए नामांकन भरने जा रहे हैं।

    उन्होनें ट्विटर पर लिखा, “महागठबंधन प्रत्याशी के तौर पर बेगूसराय से नामांकन करने जा रहा हूं। आप सबों ने बीते 40 वर्ष में जो प्यार और आशीर्वाद दिया है उसका मैं कर्ज़दार हूं। धर्मनिरपेक्षता व सामाजिक न्याय की इस जंग में उम्मीद करता हूं कि मेरा बेगूसराय मेरे साथ खड़ा रहेगा।”

    कन्हैया कुमार और तनवीर हसन में असमंजस

    बिहार के बेगूसराय को पहले सीपीआई का गढ़ कहा जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह सीट बीजेपी और राजद के नेताओं के पास रही है।

    इस चुनाव में हालाँकि एक बड़ा तबका इस सीट के लिए कन्हैया कुमार के नाम का समर्थन कर रहा है।

    कन्हैया कुमार जवाहर जेएनयु छात्र तब चर्चा में आये थे, जब भाजपा सरकार और मीडिया के एक बड़े तबके नें उन्हें ‘देशद्रोही’ करार दे दिया था। कन्हैया पर आरोप थे कि उन्होनें यूनिवर्सिटी में देश विरोधी नारे लगाये हैं, लेकिन ये आरोप अदालत में साबित नहीं हो पाए थे।

    इसके बाद से कन्हैया लगातार नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को लगभग हर मुद्दे पर घेरते आये हैं और इसको लेकर जनता के एक बड़े तबके नें उनका समर्थन करना शुरू कर दिया था।

    बेगूसराय में धार्मिक और जातीय समीकरण एक बड़ा किरदार अदा करते हैं। बीजेपी नें हिन्दुओं की लगभग सभी जातियों से वोट हासिल किये हैं, ऐसे में गिरिराज सिंह को हारने का जिम्मा मुसलमानों के साथ में है।

    बेगूसराय में सीपीआई और राजद दोनों ही मुसलमानों का वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है।

    यह साफ़ है कि यदि सीपीआई लड़ाई से बाहर रहती, तो तनवीर हसन के जीतने के सीधे आसार थे। जाहिर है पिछले चुनावों में तनवीर हसन लगभग 1 लाख वोटों से हारे थे। उस समय राजद और सीपीआई नें लगभग 2 वोट काटे थे।

    ऐसे में यदि ये सभी पार्टियाँ तनवीर हसन का समर्थन करते, तो वे आसानी से गिरिराज सिंह को पछाड़ सकते थे।

    इस साल हालाँकि यह माना जा रहा है कि एक बड़ा मुस्लिम तबका भी इस असमंजस में है कि कन्हैया कुमार को वोट दिया जाए या फिर तनवीर हसन को।

    मोहम्मद सज्जद नें कन्हैया कुमार पर लेख लिखा है, जिसमें उन्होनें बेगूसराय के लिए कन्हैया को ‘उचित’ विकल्प बताया है।

    kanhaiyakumar

    उन्होनें इस लेख में लिखा है कि मुस्लिम समुदाय को सिर्फ समुदाय के आधार पर वोट नहीं देना चाहिए। उन्होनें कहा कि यदि ऐसी स्थिति बन जाए कि हिन्दू सिर्फ हिन्दू को वोट करे, तो क्या होगा?

    लेख में यह भी लिखा गया है कि किस प्रकार राजद नें एक ऊंची जाती का मुस्लिम उम्मेदवार खड़ा किया है और पिछड़े वर्ग के मुसलमानों के लिए कोई नहीं सोच रहा है। उनकी राय में कन्हैया कुमार आशा की एक किरण हैं। उन्होनें कहा है कि मुस्लिम समाज को बढ़-चढ़कर कन्हैया के लिए वोट देना चाहिए।

    कन्हैया के बारे में, एक लेख उमर खालिद नें लिखा है, जिसमें उन्होनें भी इसी तर्ज पर अपनी राय रखी है। उन्होनें कहा है कि ‘उग्रवाद’ के इस जमाने में हमें अपनी पहचान से ऊपर उठकर कन्हैया को वोट देना होगा।

    उमर खालिद नें कन्हैया के साथ घटी घटनाओं के जरिये बताया है कि किस तरह वे जनता की आवाज बन सकते हैं और क्यों बेगूसराय की जनता को उन्हें चुनना चाहिए।

    सीपीआई और मुसलमानों की स्थिति

    यदि मुसलमान समाज और सीपीआई की बात करें तो पश्चिम बंगाल में लम्बे अरसे तक मुसलमानों नें सीपीआई को वोट दिया है।

    बंगाल में हालाँकि अक्सर यह खबर आती थी कि सीपीआई में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया है और यही कारण है कि यह बड़ा ‘वोट बैंक’ धीरे-धीरे ममता बनर्जी के पक्ष में चला गया था।

    हाल के समय में यह भी देखा गया है कि सीपीआई ऊंची जाती के हिन्दू लोगों पर निर्भर है। कन्हैया उसी का उदाहरण है। रोचक बात यह है कि बीजेपी भी उसी जाती के वोट मांग रही है, जिस जाती से कन्हैया कुमार आते हैं।

    तनवीर हसन दूसरी ओर, एक कद्दावर नेता है जो 70 के दशक से ही सामाजिक मुद्दों से जुड़े हैं। पिछड़े वर्ग के मुसलमान का नेत्रत्व करने के लिए उन्हें एक उचित विकल्प माना जाता है।

    कन्हैया और तनवीर हसन के बैकग्राउंड को पढ़ें, तो यह साफ़ है कि मुस्लिमों की पहली पसंद तनवीर हसन होने चाहिए। लेकिन हाल की स्थिति कुछ अलग है और एक बड़ा मुस्लिम तबका कन्हैया को जिताने की जुगत में है।

     

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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