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    चीन और भारत के सम्बन्ध

    भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद के बाद बीजिंग ने बुधवार को भारत की सीमा के साथ तनाव को खत्म करने और स्थिरता का प्रचार करने के रोडमैप को रेखांकित किया था। चीन के स्टेट काउंसिल इनफार्मेशन ऑफिस ने “चीन की राष्ट्रीय रक्षा का नया युग” के शीर्षक से एक दस्तावेज जारी किया था और कहा कि “वह भारत की सीमा के साथ सुरक्षा और स्थिरता का प्रचार करने के लिए उत्सुक है। साथ ही बह डोकलाम विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म करने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए तैयार है।”

    भारत-चीन सम्बन्ध

    उन्होंने कहा कि “भारत और चीन के नेताओं द्वारा तय किये गए महत्वपूर्ण सर्वसम्मति को अमल में लाया जायेगा, दोनों देशों की सेनाओ ने उच्च स्तरों की यात्रा की है और सीमा रक्षा सहयोग व सीमा प्रबंधन के लिए तंत्र पर जोर देंगे।” डोकलाम का मतभेद जून 2017 में शुरू हुए थे और और अगस्त के अंत तक खत्म हो गया था। द्विपक्षीय संबंधों में तल्खी के कारण प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2018 में शी जिनपिंग से मुलाकात के लिए वुहान की अनौपचारिक यात्रा की थी।

    इसके बाद से ही सीमा पर दोनों देशों के सम्बन्ध काफी शांत है। दोनों नेताओं ने अपनी सेनाओं को रणनीतिक दिशा निर्देश दिए थे ताकि लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर शान्ति को कायम रखा जा सके। भारतीय सरकारों के सूत्रों के मुताबिक, दोनों देशों की सेनाओं के बीच मतभेद काफी बढ़ गया था।

    चीन की सेना पर खर्च कम

    चीनी राष्ट्रपति इस वर्ष अक्टूबर में भारत की यात्रा पर आयेंगे और यह दूसरा अनौपचारिक सम्मेलन होगा और शायद यह आयोजन वाराणसी में होगा। सूत्रों के मुताबिक, वह भारी सैन्य खर्च पर कमी करने की कोशिश करेंगे। भारत, अमेरिका और अन्य देशों के मुकाबले चीन जीडीपी के मुकाबले अपने रक्षा बजट पर कम खर्च कर रहा है।

    स्टॉकहोल्म इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के मुताबिक, विश्व में रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वालो में चीन दूसरे पायदान पर है। साल 2018 में भारत के 66.5 अरब डॉलर खिलाफ चीन ने पांच फीसदी यानी 250 अरब डॉलर की वृध्दि की थी। इस वर्ष रक्षा पर खर्च करने वाल विश्व का सबसे बड़ा देश अमेरिका, 649 डॉलर है।

    चीन का रक्षा पर खर्च वाजिब और उपयुक्त है। एक समृद्ध देश और मज़बूत सेना के निर्माण के लिए यह एक एकजुट प्रयास है। राष्ट्रीय रक्षा और अर्थव्यवस्था के विकास में समन्वय बनाना है। चीन का रक्षा पर खर्च सबके सामे और पारदर्शी है।

    इस सफ़ेद कागज़ में अलगाववादी आंदोलनों के खिलाफ कार्रवाई के बाबत भी बताया गया है। तैवान की आज़ादी की खिलाफ है और इसके लिए अलगावादी आंदोल और पूरी तुर्किस्तान के निर्माण पर कार्रवाई भी की गई है ताकि राष्ट्र की संप्रभुता, एकता, क्षेत्रीय अखंडता और सुरक्षा और विदेशों में चीन के हितो की रक्षा की जा सके।

    समस्त विश्व में प्रमुख देश अपनी सुरक्षा और सैन्य रणनीतियों का पुनः समायोजन कर रहे हैं और ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, जर्मनी और भारत अपने सिंय बलों के ठिकानों में सुधार और दोबारा संतुलित कर रहे हैं। चीनी न्यूज़ एजेंसी क्सिन्हुआ के मुताबिक साल 1998 से चीनी सरकार का राष्ट्र की सुरक्षा पर यह दसवां दस्तावेज है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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